Kabir Wani - At Kabir Wad (Photo credit: ajaytao) |
राम राम पंचों. आज भगत जी फिर से गाँव में आए हैं. हमेशा की तरह लोगों की भीड़ उनको घेरे हुए है. अन्तिम बार आए थे तो उन्होंने पंचों को ईमानदारी का अनमोल सबक दिया था. ये दो लाइनें कल्लू को अभी तक याद हैं.
हमको बहुत अच्छा लगा कि तुम बहुत ईमानदार हो, जो सबको होना चाहिए. अपनी ईमानदारी ही अध्यात्म और संसार दोनों में ऊंचाई तक ले जाती है. आपमें वो सब गुण है उसको विकसित करने की जरूरत है.
अब भगत जी सभी को समझाते फिर रहे हैं - और उनकी लोकप्रियता खूब बढ़ती जा रही है. लोग उनकी बात को ध्यान से सुनते थे. इस बार भगत जी, शिर्डी वाले साईं बाबा के यहाँ से हो के आए हैं तो कुछ जिज्ञासा ज्यादा है लोगों में. धीरे - धीरे वहाँ और भीड़ इकठ्ठा हो गई. कल्लू ने हमेशा की तरह सारा इन्तजाम किया और भगत जी ये कहते हुए पाये गए.
जब बच्चा छोटा होता है तो उसको बचाया जाता है हर टेंशन से. कि कहीं बच्चे के विकास में कोई रुकावट न आए. हर तरह से मजबूत हो जाए. कि संसार की सभी हवाओं को सहने लायक हो जाए क्योंकि हर किसी को अकेले ही इस संसार में हर परिस्थिति का सामना करना पड़ता है. बच्चे को जीना सीखाना पड़ता है कि वो अपने दिमाग और अपने विवेक का इस्तेमाल करना सीख जाए.
ये सब तो अच्छी बात थी. आख़िर कब से ये गाँव पारिवारिक कलह से जूझ रहा था. लोगों में एक दूसरे के कष्टों को देखने की ताकत ही ख़तम हो गई थी. अब कहाँ बच्चे ये सब समझ पाते हैं. बस भगत जी तो चाहते हैं, कि लोग अपनी जिम्मेदारी समझें. पर नहीं. भगत जी अपने में ही मगन हैं. वो तो बस इस आधुनिक युग में भी अपनी बातों के जरिये लोगों तक अपना संदेश पहुँचा देना चाहते हैं.
भगत जी एक दिन बता रहे थे - मजिल तक के रस्ते में बहुत रुकावट आती है उसको पार करना होता है. पार करने में भगवान् की मदद की जरूरत होती है. जब हम उस मालिक के सहारे होते हैं तो सब पार हो जाता है. एक बार की घटना है - एक संत बहुत ऊंचाई से झील में गिर गए, लोग सोचे अब तो वो आदमी मर गया होगा. बहुत खोजा गया - कहीं पता नहीं चला. कुछ दिन के बाद वो किनारे पर आ के लग गए. बाकी देखने वाले बहुत परेशान हुए, आख़िर ऐसा कैसे हो सकता है. लोगों के पूछने पर भगत जी ने लोगों को समझाते हुए बताया.
आदमी को कुछ करना नहीं होता है. पानी जिधर ले गया संत महाराज चले गए. संत इसीलिए सही सलामत रह गए क्योंकि उन्होंने कोई जबरदस्ती नहीं की. अगर उन्होंने जबरदस्ती की होती तो वो यहाँ नहीं होते. तात्पर्य ये है, हर किसी को वो करना होता है जो ऊपर वाला करता है. जब हम उसके बिधान में छेड़छाड़ करते हैं तो ठीक नहीं होता. हर किसी को अपने हिस्से का सब कुछ मिलता है, मांगने की जरूरत नहीं होती है. आप चलते जाओ, जो अपना है, वो आपको सब मिलेगा. इसी का नाम है श्रद्धा और सबुरी. ये बाबा का मंतर है - येही पर लगा देता है.
उपर्युक्त लाइनें श्रीकांत परासर जी के लिखे लेख नासमझ लोग से ली गई हैं
हमको बहुत अच्छा लगा कि तुम बहुत ईमानदार हो, जो सबको होना चाहिए. अपनी ईमानदारी ही अध्यात्म और संसार दोनों में ऊंचाई तक ले जाती है. आपमें वो सब गुण है उसको विकसित करने की जरूरत है.
अब भगत जी सभी को समझाते फिर रहे हैं - और उनकी लोकप्रियता खूब बढ़ती जा रही है. लोग उनकी बात को ध्यान से सुनते थे. इस बार भगत जी, शिर्डी वाले साईं बाबा के यहाँ से हो के आए हैं तो कुछ जिज्ञासा ज्यादा है लोगों में. धीरे - धीरे वहाँ और भीड़ इकठ्ठा हो गई. कल्लू ने हमेशा की तरह सारा इन्तजाम किया और भगत जी ये कहते हुए पाये गए.
जब बच्चा छोटा होता है तो उसको बचाया जाता है हर टेंशन से. कि कहीं बच्चे के विकास में कोई रुकावट न आए. हर तरह से मजबूत हो जाए. कि संसार की सभी हवाओं को सहने लायक हो जाए क्योंकि हर किसी को अकेले ही इस संसार में हर परिस्थिति का सामना करना पड़ता है. बच्चे को जीना सीखाना पड़ता है कि वो अपने दिमाग और अपने विवेक का इस्तेमाल करना सीख जाए.
ये सब तो अच्छी बात थी. आख़िर कब से ये गाँव पारिवारिक कलह से जूझ रहा था. लोगों में एक दूसरे के कष्टों को देखने की ताकत ही ख़तम हो गई थी. अब कहाँ बच्चे ये सब समझ पाते हैं. बस भगत जी तो चाहते हैं, कि लोग अपनी जिम्मेदारी समझें. पर नहीं. भगत जी अपने में ही मगन हैं. वो तो बस इस आधुनिक युग में भी अपनी बातों के जरिये लोगों तक अपना संदेश पहुँचा देना चाहते हैं.
भगत जी एक दिन बता रहे थे - मजिल तक के रस्ते में बहुत रुकावट आती है उसको पार करना होता है. पार करने में भगवान् की मदद की जरूरत होती है. जब हम उस मालिक के सहारे होते हैं तो सब पार हो जाता है. एक बार की घटना है - एक संत बहुत ऊंचाई से झील में गिर गए, लोग सोचे अब तो वो आदमी मर गया होगा. बहुत खोजा गया - कहीं पता नहीं चला. कुछ दिन के बाद वो किनारे पर आ के लग गए. बाकी देखने वाले बहुत परेशान हुए, आख़िर ऐसा कैसे हो सकता है. लोगों के पूछने पर भगत जी ने लोगों को समझाते हुए बताया.
आदमी को कुछ करना नहीं होता है. पानी जिधर ले गया संत महाराज चले गए. संत इसीलिए सही सलामत रह गए क्योंकि उन्होंने कोई जबरदस्ती नहीं की. अगर उन्होंने जबरदस्ती की होती तो वो यहाँ नहीं होते. तात्पर्य ये है, हर किसी को वो करना होता है जो ऊपर वाला करता है. जब हम उसके बिधान में छेड़छाड़ करते हैं तो ठीक नहीं होता. हर किसी को अपने हिस्से का सब कुछ मिलता है, मांगने की जरूरत नहीं होती है. आप चलते जाओ, जो अपना है, वो आपको सब मिलेगा. इसी का नाम है श्रद्धा और सबुरी. ये बाबा का मंतर है - येही पर लगा देता है.
- नासमझ लोग ऐसा ही करते हैं, समझने का प्रयास भी नहीं करते। कोई समझाए भी तो उसको बेवकूफ समझते हैं। दुनिया का कोई पागल अपने आपको कभी पागल नहीं मानता। वह उसी को पागल बताता है जो उसे पागलखाने में भर्ती कराने जाता है या इलाज कराने जाता है। बेवकूफ को बेवकूफ कहो तो उसको करंट लगता है परंतु नासमझ कहने से बात उतनी नहीं बिगड़ती, इसलिए हमेशा इस शब्द का ही इस्तेमाल करना चाहिए। बेवकूफ कहने से नामसझ कहना अच्छा है। थोड़ा 'सम्मानजनक' शब्द है।.
- ऐसा भी नहीं कि ऐसे नासमझों को समझाने में अपनी उर्जा लगाने वाला व्यक्ति समझदार होता है। अपनी उर्जा को व्यर्थ खर्च करने वाले ऐसे लोगों की गिनती भी नासमझों में ही की जाती है। फिर किया क्या जाए, यह एक यक्ष प्रश्न है जिसका उत्तर सहज ढूंढ पाना कठिन है, प्रयास करना चाहिए। आइये आप हम सब इस यक्ष प्रश्न का उपयुक्त उत्तर तलाशने की कोशिश करें।
उपर्युक्त लाइनें श्रीकांत परासर जी के लिखे लेख नासमझ लोग से ली गई हैं
- मूर्ख व्यक्ति से बहस न करें। पहले तो वे आपको उनके स्तर तक घसीट लाते हैं, फ़िर अपने अनुभव से आपको परास्त कर देते हैं।
Achhi post hai aapki, chalo aaj aapse bhi parichay hua. achhe sandesh wali post hai aapki. sahaj aur saral bhi hai.
ReplyDeleteAchhi post hai aapki, chalo aaj aapse bhi parichay hua. achhe sandesh wali post hai aapki. sahaj aur saral bhi hai.
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