मैं और मेरी पंचायत. चाहे ऑफिस हो, या हो घर हम पंचायत होते हर जगह देख सकते हैं. आइये आप भी इस पंचायत में शामिल होइए. जिदगी की यही छोटी-मोटी पंचायतें ही याद रह जाती हैं - वरना इस जिंदगी में और क्या रखा है. "ये फुर्सत एक रुकी हुई ठहरी हुई चीज़ नहीं है, एक हरकत है एक जुम्बिश है - गुलजार"


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Monday, December 21, 2009

कुछ चीजें ध्यान रखने की, जब आप किसी को खाने पे घर बुलाये

The Gynecologist Dinner Guest [cartoon]
The Gynecologist Dinner Guest [cartoon] (Photo credit: methodshop.com)


  1. आपने किसी को बुलाया खाना बनाने में मदद करने में - वो आपके मित्र हैं - उन्होंने अपनी सबसे कीमती चीज़ दी है. उनके साथ आपने कैसे आदान प्रदान किया. यहाँ से शुरुवात होती है. मेहमानों के सामने तारीफ़ को अपने सभी सहयोगियों से बांटना कभी नहीं भूलना चाहिए.
  2. मेहमान ने घर में प्रवेश किया. तो आप जो भी कर रहे हैं, या तो किचेन में हैं या कहीं और - आप किस तरह से मुस्कुरा के .. अपने हाव - भाव से किस तरह से उनका अभिवादन करते हो. एक गहरी मुस्कराहट और नजरों से नजरों को मिला के.
  3. आपके मेहमान अगर अपने बच्चों के साथ आये हैं, तो उनके बच्चों के बारे में पूछना चाहिए. वो क्या कर रहे हैं. और आपको कोशिश करनी चाहिए कि आप उनके बच्चों को उनके नाम से बुलाएं.. अगर आपको मालूम हैं, कि बच्चे छोटे हैं, तो घर के टूटने वाले सामानों को पहले ही हटा दे - जिससे कि बच्चे के माँ बाप को कोई सामन ना टूट जाए इस डर से बच्चे के पीछे - पीछे ना भागना पड़े. 
  4. अगर डिनर पर बुलाया है, तो ये ज़रूर ध्यान दें कि बहुत देर ना हो जाए खाने में - सबका खाने का एक समय होता है. कोशिश ये रहे कि खाना समय पे रेडी रहे और आप भी सबके साथ हंसी मजाक में बातचीत में सम्मिलित हो सकें. अच्छा हो कि पहले ही पूछ ले कि कब खाना ठीक रहेगा सबी सहूलियत के अनुसार. 
  5. खाने के पहले चाय - कॉफ़ी के वक़्त कोशिश करिए कि रोजाना से हट के हो कुछ . बहुत भारी ना हो वरना खाना नहीं खा पायेंगे लोग. कोशिश करिए कि कुछ बहुत ही हल्का डिश हो, जो कि आपने खुद बनाया है - थोडा ही हो.. पर लोग जरूर पसंद करेंगे, क्योंकि आपने बनाया है. मेहमान लोग भी इससे प्रभावित होंगे और बातचीत में आपका इस विशेषता पे भी चर्चा हो जायेगी. आखिर आप ख़ास हैं. आप इन्टरनेट या मैगजीन से देख के कुछ ट्राई कर सकती हैं. 
  6. अपने बारे में ही बात नहीं करनी चाहिए. आपको अपने मेहमानों के शौक़ और पसंद के बारे में चर्चा करनी चाहिए. अगर मेहमान आपके पति के बॉस हैं, तो काम काज के बारे में ज्यादा चर्चा करने से या फिर अनायास की प्रशंशा करने से बचना चाहिए.
  7. अपने पति के बारे में - वो घर पे क्या करते हैं क्या नहीं करते हैं - हल्का फुल्का मजाक वगैरह पूरी सूझ बूझ के ही साथ करना चाहिए. कोशिश कीजिये की ऐसी कोई चर्चा ना हो जो कि आपके पति को पसंद नहीं है. बाहरी लोगों के बीच में जबकि लोग आपकी बातों का समर्थन कर रहे हैं - उस वक़्त किसी बहाव में बहने के बजाय, एक दायरे में ही मजाक करना चाहिए. 
  8. खाना खाते वक़्त ये ध्यान दें कि आप भी साथ में सबके साथ खाने बैठी हैं. व्यायवस्था  ऐसी करें कि आप बीच में ही सही पर सबके साथ ही खाना खाएं. 
  9. अच्छा हो कि खाते वक़्त किसी के कम और ज्यादा खाने पे कोई वक्तव्य देने से बचे. खाने में क्या क्या है, शुरू में ही किसी चर्चा के बहाने बता दें - लोग अपनी पसंद के अनुसार तैयार रहेंगे. बहुत चीज़े मेनू में रखने के बजाय क्वालिटी के बारे में सोचें. 
  10. डेजर्ट में थोडा कम स्वीट या फिर स्वीट्लेस - स्वीट ही रखे - आजकल लोग चीनी अवोइड करते हैं. तो कुछ अलग भी हो जाएगा. अंत में सौंफ जरूर रखें.
  11. विदा के वक़्त दरवाजे तक छोड़ने जरूर आयें - और ये कहना ना भूलें कि बहुत अच्छा लगा उनके आने से और आपका भी दिन अच्छा बीता. 

Friday, December 18, 2009

हमारा शौक़ और काम ऐसा होने का है, कि दूसरों को भी खुशी हो उसमें.

Binnenhof
आज अनायास ही मन थोडा अजीब हो गया. एक तो ससुरा जुखाम है कि ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है. और दूसरा ये कि मैं दुनिया में जिस से भी मिलता हूँ उसके पास टाइम की बड़ी ही समस्या होती है. बड़े ही व्यस्त लोगों के बीच में उठना - बैठना है. सौभाग्य है कि दुर्भाग्य.

कभी इस तरह के मुस्कुराते चहरे को देखता हूँ और सोचता हूँ कि उनकी हालत कैसी है, फिर भी क्या मुस्कराहट है. और वहीँ एक तरफ थोडा नमक और चीनी कम हो जाने से मन खट्टा करने वाले भी लोग हैं. भाई, अगर बहाना बना के दुखी रहना है, तो कोई कुछ नहीं कर सकता है. टाईम निकाल के थोडा खुश भी हो जाइए - हमारे मास्टर कहते थे, कि इससे कुछ घट नहीं जाएगा.


मैंने एक चीज़ गौर की है, कि अगर हम दूसरे काम की तरफ अपना ध्यान नहीं लगायेंगे, तो हमेशा हमारा ध्यान एक तरफ ही खिंचा रहता है. अब ये दूसरी तरफ ध्यान लगाने के लिए बस एक चीज़ की ज़रुरत है, और वो है, कि एक छोटा सा चिरकुट सा काम और शौक ढून्ढ लेने का. जैसे हो सकता है, कि आपने सोचा है, कि बहुत दिन हुआ मंदिर नहीं गए, कोई नई किताब नहीं पढी, या फिर किसी दोस्त को फ़ोन नहीं किया या फिर कुछ भी. बस सोचना क्या है, कर डालिए. येही सब दूसरा काम है.

दूसरी एक बात और जो कि गौर करने कि है, वो ये कि, अगर आप सिर्फ ऐसे काम करेंगे जिससे कि आपको ही सुख मिलता हो, तो बात नहीं भी बन सकती है. हमारा शौक़ और काम ऐसा होने का है, कि दूसरों को भी खुशी हो उसमें. जैसे कि अगर हम किसी की तरफ देख कर जब मुस्कुराते हैं, तो दूसरे भी स्वतः: मुस्कुराने लगते हैं , उसी तरह से कई बार हमारे अच्छे और रोचक व्यावहार से दूसरों को गजब का मजा आता है. और आप भी मस्त हो जाते हैं.



Sunday, December 6, 2009

सब कुछ आपके अच्छे और भले के लिए ही हो रहा है.

Playground in Firehouse Mini Park and, in back...Image via Wikipedia
हम हमेशा से करना चाहते हैं. जैसे कोई किताब लिखना चाहता है, तो कोई कुछ जगहों पे घूमना चाहता है. तो किसी की ख्वाइश होती है, कि वो समाज-सेवा करे, वगैरह-वगैरह.  मेरे एक मित्र है, वो हमेशा जब भी वक़्त मिलता है, कहीं घूमने निकल जाते हैं. मेरे को बड़ा आश्चर्य होता है, कि भला आज की भागती-दौड़ती जिन्दगी में जबकि लोग हमेशा यही शिकायत करते हैं, कि समय नहीं है. भीड़ बहुत है. वहीँ ये जनाब है, कि बस मनमौजी की तरह जैसे ही वक़्त मिला - बस निकल लेते हैं. मैं बहुत कुछ सीखता हूँ उनसे. ऐसा नहीं कि उनके पास ऑफिस में काम कम है, या फिर वो बहुत ही फालतू है. जी नहीं. बहुत ही जिम्मेदारी वाला काम है ऑफिस में उनका भी. काफी दौड़ -धूप भी है. पर शायद अपने लिए इस तरह कुछ वक़्त निकाल लेने से वो काफी तरोताज़ा महसूस करते हैं. और बस वो वही करते हैं. और इससे उनको जो ताकत मिलती है, वो ही उनको खड़ा रखती है.

हम सब लोग हमेशा यही सोचते हैं, कि बस किसी तरह बस आज की समस्या से बाहर आ जाएँ, बाकी बाद में देखेंगे. लगता है कि हम ये मान के बैठे हैं, कि हमारे पास बहुत ही लम्बी ज़िंदगी है. और पूरा विश्वास है, कि कल कोई और समस्या अपना चौड़ा सा मुहं फैलाए उनके सामने नहीं आके खड़ी होगी . जी ये तो एकदम टॉप का सच है, कि समस्या कभी ख़त्म नहीं होती है, बस उसका स्वरुप बदल जाता है. तो ज़रुरत इस बात की है, कि समस्या को नजरंदाज कर के अपने जीने के लिए जो बहुत ही जरूरी है, उसके लिए समय निकालें. वो करें, जो करना आप हमेशा ही चाहते हैं. बड़ी ही शांती मिलती है. किसी ने  सही कहा है , कि अगर हमें ऐसा काम करना हो, जो कि हमें बहुत ही पसंद है, तो हमें उस काम में थकावट का एहसास नहीं होता है. तो अब होता ऐसा है कि हमेशा तो हमें मन माफिक काम मिलेगा नहीं. तो मैं क्या कहुँगा कि जो भी काम और परिस्थितियाँ  बने, बस अपना मन उसके माफिक बना लेना चाहिए. पर अक्सर होता ऐसा नहीं है, हम इसके विपरीत काम करते है. हमें अनायास ही अपनी सारी ऊर्जा उन परिस्थितियों को अपने अनुसार बनाने में खर्च कर देते हैं. और आप ज़रूर मानेंगे कि ऐसा करने से कुछ हासिल नहीं होता है.

एक कड़वा सच है, कि जो भी होता है, वो अच्छे के लिए ही होता है. बस हमें वक़्त लगता है उसे समझने और स्वीकार करने में. और ये वक़्त ज्यादा लगेगा या कम, ये इसपे निर्भर करता है कि हम कितना सकारात्मक सोचते हैं. कोई है, जो कि हमेशा आपके अच्छे के बारे में ही सोच रहा है, ये सारा संसार और आपके अगल-बगल की घटनाएं आपको आपकी सफलता की ओर ले जाने के लिए सारा जुगाड़ कर रही हैं. बस आप एक बार विश्वास भरी नज़र से देखिये तो. सब कुछ आपका अपने है. सब कुछ आपके अच्छे और भले के लिए ही हो रहा है.

Thursday, November 26, 2009

जय जवानी बाबा !

Modern Bishwamitra with Menkazz
Modern Bishwamitra with Menkazz (Photo credit: http://www.everestuncensored.org)

ये बाबा प्रकट नहीं हुए थे. जवानी बाबा का अवतार नहीं हुआ था. कलयुग में बड़ा ही महत्त्व है जवानी का. जवानी बाबा कहते हैं, कि हमें अपनी जवानी का घमंड नहीं होना चाहिए. कुछ लोग जवानी के जोश में पूरी दुनिया को बदल देना चाहते हैं. तो वहीँ जब एक बार जवानी चली जाती है, तो कुछ लोगों का तबका है, जो कि बड़ा ही शोक मनाता है जवानी जाने का. पर जवानी बाबा का कहना है, कि वो आपका साथ तब तक नहीं छोड़ते हैं, जब तक कि आप खुद उनको जाने के लिए नहीं कहते हैं. बोलिए जय जवानी बाबा की.


जो बुरा काम करता है, उससे जवानी बाबा रूठ जाते हैं. कुछ लडकियां अपनी जवानी में बहुत से जवान लड़कों को फांस्ती हैं - वैसे कुछ मनचले भी हवा में बह जाते हैं. जवानी बाबा का आदेश है कि अपने फायदे के लिए जवानी का प्रयोग नहीं करना चाहिए. अगर आप अपनी जवानी का सही उपयोग करते हैं, तो जवानी बाबा आपको बोनस में लम्बे समय तक जवान रहने का आशीर्वाद देते हैं.

कुछ बूढ़े लोग अपने अगल-बगल की जवानी को देख के इर्ष्या करते हैं - जवानी बाबा का सख्त आदेश है कि अगर वो ऐसा करना बंद नहीं करेंगे तो अगले जन्म में से उनकी जवानी काट ली जायेगी. कुछ लोग अपनी सारी जवानी किसी दूसरे की कहानी सुनने में बिता देते हैं, और उनको पता ही नहीं चलता कि समय कब निकल गया. जवानी बाबा का कहना है, कि ये जवानी का दुरूपयोग है.

सिनेमा में जवानी शब्द को बदनाम किया जा रहा है. इसका जवानी बाबा समर्थक पुरजोर विरोध करते हैं. जवानी को बड़े ही छिछोरे तरीके से प्रस्तुत किया जाता है. इससे जवानी में लोग बहक जाते हैं. एक गाने में तो हद ही हो गई है. गाने के बोल कुछ ऐसे हैं - 'निगोड़ी कैसी जवानी है, ये बात सुने ना मेरी .... बड़ी हरामी है.. ' जवानी बाबा अपनी कसम दिलाते हुए उनके नाम का दुरूपयोग किये जाने को सामजिक पतन की संज्ञा देते हैं.

आइये हम सब मिलकर सच्चे मन से कसम खाएं कि हम जीवनपर्यत्न जवानी बाबा के बताये रास्ते पे चलेंगे. जय जवानी बाबा की.

Monday, November 16, 2009

हमारी समझ और हमारी सोचने की ताक़त और क्षमता हमारी धारणा बनाती है

Robert Fludd, Utriusque cosmi maioris scilicet...Image via Wikipedia

मैं यहाँ कुछ बातें लिख रहा हूँ, कृपया इसे शिक्षा न समझें - और ये बस यूं ही कही जा रही है.. इसमें से जो लगे की आपके काम का है, ले लो.. बाकी समझो कि लिखा ही नहीं गया है. 

टाइम निकाल के थोडा इन्टरनेट पे कुछ अच्छे अंगरेजी और हिन्दी के अर्टीकील पढ़ा करो.. इससे दिमाग का पूरा विकास होता है. जैसे हमें खाना की ज़रुरत होती है, उसी तरह से अच्छी - अच्छी बातों की ज़रुरत होती है पढ़ते लिखते रहने की. ये दिमाग का आहार होता है. अगर उसे आहार न दिया जाए तो वो सही दिशा में सोचना बंद कर देता है. इसीलिए हमेशा कुछ न कुछ पढने की आदत डालो.

नौकरी - या कोई भी छोटा मोटा काम करना हो, तो उसके लिए नए जगह पर अपने को एडजस्ट करना बहुत ज़रूरी होता है. वहां की चीज़ों को अपने देश या शहर की चीज़ों से compare नहीं करना चाहिए. वहां की अच्छे चीज़ों को जल्द ही  अपनाना चाहिए. व्यर्थ की बहस से बचना चाहिए. तभी सम्पूर्ण विकास होगा.

सभी कुछ जो तुम वहां महसूस कर रही हो, उसको सकारात्मक लहजे में  व्यक्त करना सीखो. अपनी बातों को, बहुत ही clarity के साथ कहना बहुत ज़रूरी है. क्योंकि जब हम बाहर होते हैं, नए लोगों के बीच में होते हैं, तो कोई ज़रूरी नहीं कि वो हमारे प्यार और गुस्से के इज़हार को उसी तरह से समझें जैसे कि घर वाले समझते हैं. तो ये बहुत ज़रूरी है, कि हम कोई भी बात स्पष्ट रूप से कहें. ये बहुत ही ज़रूरी है. और अच्छे संबंधों को बनाने में बहुत ही मदद करते हैं.

दूसरों से जब भी बात करो, तो ये ध्यान दो कि उनके द्बारा कही गई बातों में त्रुटियों को नजरअंदाज करते हुए, तुम उनमें से कुछ भी अच्छा निकाल कर उनकी प्रशंशा करो. मैं झूठी प्रशंशा करने की हिमाकत नहीं कर रहा हूँ. अपितु, हर किसी की बातों में चाहे वो उम्र और अनुभव में छोटा हो या बड़ा, अच्छा खोजने की आदत डालने की बात कर रहा हूँ. ये अच्छे संबंधों को लम्बे समय तक बनाये रखने में काफी मदद करती है. कोई ज़रूरी नहीं कि हर दूसरा आदमी हमारी बातों से सहमत हो ही जाए. पर ऐसे मौकों पे हमें जिद से और बहस से बचना चाहिए. भले ही आपके अनुसार आपकी बात सहीं हो - और सामने वाला गलत.

जब हम कभी दूसरों से व्यावहार कर रहे होते हैं, तो हम आशा करते हैं, कि सामने वाला भी हमें उसी गर्माहट के साथ treat करे जैसा हमने किया. पर कई बार ऐसा हो जाता है, कि वक़्त और परिस्थितियों की वजह से, वो आपके साथ वैसा व्यावहार नहीं कर पाता है. अतः थोडा मौका और देना चाहिए. और तुंरत ही सामने वाले के बारे में कोई धारणा नहीं बना लेनी चाहिए. कुछ गलतियों को माफ़ कर देना चाहिए, इससे हमारा संतुलन सही रहता है. और हम तमाम ज़रूरी चीज़ों पे एकाग्र कर पाते हैं. दूसरे की मजबूरियों और विषम परिस्थितियों को बिना उनके द्बारा जिक्र किये बगैर समझ कर उनके प्रति अपने वाद - व्यावहार में परिवर्तन लाने से बहुत अच्छा होता है.

कभी अगर तुमसे कोई गलती हो जाए, तो उसे छिपाने के बजाय उसे स्वीकार करना चाहिए. इससे बड़ी ही शांती मिलती है, और संबंधों में कटुता आने से बचती है. अगर कोई हमसे ओहदे में, संबंधों में, पैसे रुपये में, या किसी भी और तरीके से छोटा या बड़ा हो, उसके सामने अपनी गलती के लिए माफी मांग लेने से आपके इज्ज़त कम नहीं होती, बल्की आप और भी मजबूत और विश्वसनीय हो जाते हैं. असल में जब हम अपनी गलती स्वीकार करते हैं, तो उस वक़्त हम अपने आप को उस की गई गलती के भार से मुक्त कर रहे होते हैं.

परिवर्तन ही संसार का नियम है. आज जो बातें हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, कल उनका महत्व नगण्य हो जाएगा. और जिन बातों को आज हम एकदम ही ध्यान नहीं देते, कल वो बहुत ज़रूरी हो जायेंगी. इसीलिए, ये बहुत ज़रूरी है, कि हर समय, हर छोटी - बड़ी बातों पे बराबर ध्यान दिया जाए. जीवन में संतुलन बनाने में इससे बड़ी ही मदद मिलती हैं. कुछ चीज़ें जो आज हमें फालतू की लगती हैं, या कुछ लोग जो हमें बिलकुल पसंद नहीं, कल वही महत्वपूर्ण हो सकते हैं. क्योंकि हमारी समझ हमेशा एक जैसी नहीं रहती है. हमारी समझ और हमारी सोचने की ताक़त और क्षमता हमारी धारणा बनाती है.

Sunday, October 11, 2009

सब कुछ हो गया - पर ये एक है कि अभी तक पकडा नहीं गया

The SamuraiImage via Wikipedia
ससुरे तालिबान बड़े जालिम लडाके हैं - बड़ी खतरनाक लड़ाई लड़ते हैं. अब अफगानिस्तान हो या पाकिस्तान का पेशावर - गजब जोखिम भरी लड़ाई लड़ रहे हैं. अब इनका खौफ कितना है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है - गत दिनों,  न्यूज़ आती है, कि काश्मीर में कुछ तालिबान लडाके घुस आये हैं - भारत सरकार की मिलिट्री के आकाओं को इसका खंडन करना पड़ता है,  कि नहीं ऐसा नहीं है. आतंकियों का मनोबल बढाने के लिए ये काफी था.

जब मैं इन तालिबान लडाकों को देखता हूँ, तो उनका ये गजब का जूनून मेरे को कुछ पुराने सिनेमा की याद दिलाता है. इनमें से आज के जमाने के कुछ सिनेमा हैं - The Last Samurai, Gladiator, troy  वगैरह वगैरह.. ये सारी सिनेमा में एक लडाका होता है, जो गजब का बहादुर होता है - बहुत लोगों को अकेले मौत के घाट उतार देता है. मैं सोच रहा था, कि शायद इन्हीं सब सिनेमा को देख के वो लोग इतने दिलेर बने हैं. वरना ज़रा सोचिये... पाकिस्तान के सेना के एक ब्रिगेडिअर और एक लेफ्टिनेंट कर्नल सहित कई सैनिको को उन्हीं की मांद में घुस के मार डालना और कुछ को बंधक बना लेना - जंगली आदिवासी टाइप के लडाकों की बस की बात नहीं थी.

अब पता नहीं किसकी गलती है, हो सकता है कि इसी तरह के कुछ सिनेमा शुरुवाती दौर में अमेरिकियों ने हालीवुड से ले आके तालिबानी ट्रेनिंग के वक़्त उनको दिखाया होगा (डिस्क्लैमेर - लोग कहते हैं कि तालिबान लोगों को बनाने में अंकल सैम का सहयोग हुआ करता था. मैं बहुत छोटा था उस वक़्त, कुछ बुजुर्ग जो इसे पढ़ रहे हैं, कृपया प्रकाश डालें. )

तो मैं ये सोच रहा हूँ, कि आखिर ससुर के नाती ये तालिबान कौन सी चक्की का आटा खाते हैं. या ऐसे पूछता हूँ, कि उधर पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा वाली घाटी में कौन सी फसल उगती है, कि लड़ने की इतनी ताक़त देती हैं. क्या मोटिवेशन है बाबा. वाह! वैज्ञानिकों को वहाँ की मिटटी की शोध करनी चाहिए.

अगर कारपोरेट जगत चाहे तो अपने executives को मैनेजमेंट ट्रेनिंग के लिए स्वाट घाटी भेज दे. जोखिम है - पर फायदा भी बहुत है. आखिर अर्सों से बस लड़े जा रहे हैं. पता नहीं क्या चाहते हैं. पर बस लगे हैं तो लगे हैं.. अगर लड़ाई बंद हो जाए तो ये लोग बैठे - बैठे यूं ही मर जायेंगे.. तो आखिर कुछ तो है. कुछ टी.वी. के प्रचार वाले भी इनसे अपने अगले प्रचार का आईडिया ले सकते हैं. जैसे - वगैरह - वगैरह खाइए - लगाइए - इस्तेमाल करिए और तालिबान जैसी प्रबल इच्छा-शक्ति और लगन और ताकत पाइए.

वैसे कुछ लोग हैं, जो इस महान लड़ाई के बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं. मेरे भाई ने पुछा .. ये तालिबान लोग कौन है? अल-कायदा और तालिबान अलग - अलग हैं क्या? उसको ये जान के हैरानी हुई कि कई देश की सेना (NATO) मिल के वहाँ लड़ाई लड़ रही है, पर फिर भी वहाँ मामला हल नहीं हो रहा है. वैसे मेरी माता जी, जो कि आस्था चैनल के बाबा लोगों के अलावा अगर कोई दूसरा चेहरा पहचानती होंगी तो वो है.. ओसामा बिन लादेन का. ससुरा इतनी बार टी.वी वाले उसका चेहरा दिखाते हैं कि कहो मत. कहने लगीं .."सब कुछ हो गया - पर ये एक है कि अभी तक पकडा नहीं गया"

(अगर किसी देश की खुफिया एजेन्सी - इस को पढ़ रही है, तो कृपया गलत मतलब न निकालें - हमारा उन लोगों से कोई लेना देना नहीं है.. हम तो बस यूं ही टाइम पास कर रहे हैं...)

Monday, October 5, 2009

अच्छा ही है, कि श्रीलंका और पाकिस्तान में आपस में दुश्मनी नहीं है

Exocet missile in flight
आपको लगता होगा कि भारत को चीन से खतरा है, पाकिस्तान से खतरा है. पर मैं आपको आज एक अन्दर की बात बताता हूँ. किस्सा कुछ इस तरह है. कुछ दिनों पहले आपको याद होगा कि पाकिस्तान में श्रीलंका क्रिकेट खिलाडियों पे हमला हुआ था, और श्रीलंका के खिलाडी किसी तरह से बच गए थे. अंतरराष्ट्रीय महकमें में काफी हलचल मची थी. भारत में मीडिया ने इस घटना को बहुत ज्यादा हवा नहीं दी थी. पर असल में मामला काफी खराब हो गया था.


उधर श्रीलंका में खुफिया जानकारी के आधार पे पाकिस्तान को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया था.

अच्छा ही है, कि श्रीलंका और पाकिस्तान में आपस में दुश्मनी नहीं है - और मामला वहीँ रफा दफा हो गया. फ़र्ज़ कीजिये श्रीलंका आक्रमण की तैयारी करता, तो क्या होता? अजी भाई जी, कुछ इस तरह हो गया होता..

श्रीलंका ने अपनी वो सारी मिसाइल निकाल ली जो कि लिट्टे से लड़ाई के बाद बची थी. अब लफडा ये था कि कोई भी मिसाइल की रेंज इतनी नहीं कि वो भारत को लांघते हुए पकिस्तान पे जा के गिरे. बड़ी भारी समस्या. भारत भी परेशान हो उठा. आप पूछेंगे - भारत का क्या जाता है - जिसको लड़ना है वो लड़े. अरे नहीं कक्का यहीं तुम धोखा खा गए. जरा सोचो - अगर श्रीलंका ने मिसाइल छोडी, तो वो तो भारत के ऊपर ही फुस्सी होगी न. तो भारत ने बीच-बचाव करना शुरू किया. सुरक्षा सलाहाकार समिति की बैठक में ये भी सलाह दिया गया की भारत देश को श्रीलंका की सहायता करनी चाहिए. वहीँ साउथ इंडिया के शांतिप्रिय प्रदेश घबरा गए. वरना अभी तक तो वो ये सोचते थे कि पाकिस्तान जितना भी हवा भर ले, इधर तक तो नहीं आयेगी उसकी मिसाइल. पर अब क्या होगा. न्यूज़ चैनल वालों ने चर्चा छेड़ दी - कि कर्नाटक, केरला, तमिलनाडु, सबसे सेफ कौन है. बस एक बार श्रीलंका की मिसाइल उनके प्रदेश के ऊपर से निकल जाए.

कुछ लोगों ने सलाह दी, कि भारत को कम से कम किराए पे अपना राकेट श्रीलंका को देना होगा. कि बम तो श्रीलंका का हो, पर किसी तरह से वो बम सुरक्षित तरीके से पकिस्तान में गिरे. पर लफडा ये कि, अंतर्राष्ट्रीय तबका इसकी मंजूरी देगा कि नहीं. आखिर कोई कानून तो ऐसा बनाना ही चाहिए कि अगर कोई देश दूर तक जाके लड़ना चाहता है, पर उसकी बम फेंकन ताकत उतनी नहीं है, तो दूसरे देश उसे कुछ राकेट किराए पे दे सकें. इसे मिसाइल हस्तांतरण के अर्न्तगत कतई ही नहीं देखा जाना चाहिए. आखिर एक देश को अपनी सेफ्टी वास्ते इतना तो करने ही देना चाहिए.

इन सबके बावजूद ... अगर पाकिस्तान और श्रीलंका के मिसाइल आपस में टकरायेंगे तो आखिर भारत के ही किसी शहर पे गिरेंगे. हे भगवान्.. भारत पूरी तरह से असुरक्षित. .. अगर पानी की लड़ाई हुई, तो श्रीलंका के जहाज इतने बड़े नहीं थे कि एक बार तेल भर के बिना भारत कि सीमा में प्रवेश किये बगैर पाकिस्तान से गोली बारी करें.

तो कुल ले दे के भारत के समझाने और भविष्य में मदद के आश्वासन देने के बाद और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के हस्तक्षेप के बाद मामला शांत हुआ.

Sunday, October 4, 2009

पहिये के बाद, दूसरा सबसे बड़ा आविष्कार..ईमेल

Settings: Setting Up Email AccountsImage by pouwerkerk via Flickr

पहिये के बाद, दूसरा सबसे बड़ा आविष्कार..ईमेल

जी ये न्यूयार्क टाईम्स की रिपोर्ट या फिर किसी नोबेल प्राइज़ विजेता की किताब के पन्नों से लिया गया वक्तव्य नहीं है.. ये पूर्णतया देशी पंचायतनामा की पेशकश है... जब हम पढ़ाई करते थे, तो एक बार माट्साब ने एक सवाल पूछा - कि बताओ, अभी तक की सबसे बड़ी खोज क्या है... बहुतों ने जबाब दिया.. हमने माट्साब के जबाब का इन्तेजार किया .. उन्होंने कहा.. 'पहिया'. तब तो मैं जबाब नहीं दे पाया था.. पर अभी मैं पूरी तरह से तैयार हूँ. कि अगर पहिया के बाद का कोई दूसरा सबसे बड़ा आविष्कार है, तो वो है ईमेल.

ईमेल एक ऍप्लिकेशन नहीं है, बल्कि, एक नशा है. हमें याद है - १९९९ में मैंने अपना पहला ईमेल आईडी बनाने का प्रयास किया था. कंप्यूटर की पढ़ाई थी और उसी की लैब क्लास थी. हमें अभी भी याद है, कि जब क्लास में सर ने पहली बार ईमेल क्या है और कैसे काम करता है, के बारे में बताया था.. तो जान कर बड़ी हैरानी हुई थी. फिर उन्होंने बड़ी ही अदा से अपने पर्स में से अपना विजिटिंग कार्ड निकाला और दिखाया कि उनका एक ईमेल आई-डी है. हम आगे बैठते थे और उन चंद खुशनसीबों में थे, जिन्होंने पहली बार कोई ईमेल आई-डी देखा था.


फिर लैब की क्लास में ऐसा मजमा लगा कि लोग पिल पड़े. http://www.yahoo.com/ जी हाँ, आज भी याद है, पूरा क्लास अगले ३ लैब क्लास्सेस में अपना ईमेल आई-डी बनाने में जुटा रहा. क्या लगन थी - हमारा भी पहला ईमेल-आई-डी तीन दिन के अथक प्रयास के बाद बना. कारण ये कि, १९९९ में एक तो स्लो इन्टरनेट कनेक्शन और उसमें पूरा क्लास एक ही वेबसाइट के पीछे पड़ा था.. भाई.. माट्साब ने कोई दूसरी वेबसाइट बताई ही नहीं, तो लोग खोलते कैसे.

थोड़े दिनों, के बाद जब थोड़ी और समझ आई, तो पहला सवाल मैंने ये पूछा (याद नहीं है कि किससे पूछा था ) कि भाई ये मेल में CC और BCC क्यो होता है. जबाब आया, कि अगर किसी का ईमेल आई-डी CC/BCC में रखेंगे तो वही मेल सारे लोगों को चली जायेगी. उस वक्त के मेरे ज्ञान के हिसाब से मेरे को ये बात बहुत ही अटपटी लगी.. कि ये क्या समझदारी की बात हुई, भला हम एक ही बात पहले तो कई लोगों से क्यों कहेंगे.. और अगर कहेंगे तो फिर TO में ही रख के भी तो कह सकते हैं, ये एक्स्ट्रा पंचायत करने की क्या जरूरत है. बहुत दिनों तक इसकी महिमा का पता नहीं चला.

फिर १ वर्ष की पढ़ाई के लिए बंगलोर आना हुआ.. वहां लोगों ने लैब में लाइनक्स (LINUX) रखा था. तो ईमेल की एक रेडीमेड सुविधा थी - नाम था उसका 'पाइन' (PINE). ये टेक्स्ट आधारित ईमेल प्रोग्राम था. क्या सुपर स्पीड थी.. वहीँ से नशा लगा ईमेल का तो अभी आज तक नहीं छूटा है. ईमेल - आई-डी (d0253102@ncb.ernet.in) बड़ी ही चिरकुट थी. पर क्या बला की स्पीड थी. लोग दो लाइन प्रोग्राम लिखते तो ४ बार बीच में मेल खोलते थे. शुरुवाती तीन महीने मानो काले पानी की सजा माफिक सिर्फ़ कीबोर्ड और काली स्क्रीन. न तो माउस दिया गया और न ही विन्डोज़..जब चौथे महीने विन्डोज़ के दर्शन हुए तो लगा कि स्वर्ग में आ गए हैं. पर फिर भी ईमेल का ये मजेदार दौर पूरे एक वर्ष चला. फिर वहीँ से नौकरी लग गई.. फिर ईमेल का सबसे रोचक दौर चालू हुआ.

अब ऑफिस की एक हमारे नाम की ख़ुद की ईमेल आई-डी थी. क्या सही लगा देख के. पहली बार मेरा फर्स्ट और लास्ट नेम पूरा लिखा था ईमेल आईडी में. जितनी बार देखो मन नहीं भरता था. आपको आश्चर्य हो रहा है. अरे कभी आपने मेरा दर्द देखा होता, तो न जानते.. जब मैंने अपने पहली ईमेल - आई-डी बनाई थी, तो तीन दिन के अथक प्रयास के बाद जो निकल के आई, कि उसमें 'नीरज' - की जगह मैंने 'नीरा_सिंग' से काम चलाया था. कितना दर्द होता था.. जब मैं नीरज से नीरा बना था.. तो मैं कह रहा था, कि बड़ा मुश्किल था कोई ऐसा ईमेल होना जिसमें आपका पूरा नाम आराम से आ जाए.. तो बड़ा सम्मान महसूस हुआ.. शायद उतना ही.. जितना हमारे माट्साब को किसी ज़माने में हुआ होगा, जब उन्होंने सारी क्लास के सामने अपना ईमेल आई-डी अंकित विजिटिंग कार्ड लहराया था..

जैसे जैसे दौर आगे बढ़ा.. लोगों का ईमेल का जूनून बढ़ता गया.. अब धीरे - धीरे मुझे CC/BCC का मतलब समझ में आने लगा. बाकी कुछ तो ऐसा समझ में आया, कि अगर CC/BCC न होता तो ऑफिस में लोग मेल कैसे करते. ऑफिस में बड़ा महत्व है कि आप किसको सीसी में रख के मेल करते हैं, उसी के हिसाब से मेल की वेलू घटती - बढ़ती रहती है. जैसे अगर आपने सीसी में बड़े ओहदे के साहब का ईमेल आई-डी दाल दिया तो मायने बदल जाया करते हैं. हमारे कितने बड़े बड़े ओहदे पे बैठे हुए लोग हैं, जो कि दिन भाई बस मेल के जरिये ही संवाद करते हैं और वही उनका सारा काम चलाता है.. ईमेल चला गया, तो वो बाकी अपनी जीविका कैसे चलाएंगे.. फिर ईमेल के अपने बहुत से फायदे हैं, वो आपको पता हैं.

बहुत जल्दी ही ईमेल ने हमारी दिनचर्या में एक अहम् जगह बना ली है. 

वो पुरानी 'सरिता' की कहानी का एक पन्ना

I've got a Monkey on my back.....Image by law_keven via Flickr
जय बजरंग बली ...और सब खतरे टल गए ...बजरंग बली पे याद आया एक मस्त किस्सा हुआ पिछले दिनों राज -राजेश्वरी नगर, बनारस में ...मेरे आगे वाले नए किरायेदार ने दरवाजा खुला छोड़ दिया तो एक बन्दर शाम को पहले किचेन में घुस गया तो जो लेडी है उन्होंने बच्चों को बेडरूम में बंद कर दिया और वेट करने लगी कि बन्दर बाहर निकल जाये.

थोडी देर में 20-25 बन्दर घर में घुस गए और उन्होंने भयानक उत्पात मचाया ...तोड़फोड़ की किचेन में ...

1 घंटे चला ये खेल ..किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि क्या करें ..कोई जेंट्स नहीं था - मम्मी ऊपर घर में और किरायेदार कमरे में बंद ...फिर लल्लन भैया के साले  साहेब जो सामने वाले आशु के मकान में रहते है उन्होंने हिम्मत की. डंडा लेकर घुमाया और घर में आकर सारे बंदरो को भगाया ....सच बहुत हिम्मत वाला काम था ...फिर बन्दर खीज कर, मम्मी ऊपर से झांक रही थी तो उन्हें काटने दौड़ा ..तो मम्मी किसी तरह दौड़ के बची ..इस तरह राज राजेश्वरी नगर में बंदरो का आतंक बढ़ता रहा.

बात ऐसे बनी - बच्चो के मुख से - दिन दहाड़े - वो पुरानी सरिता की कहानी का एक पन्ना -  (आभार - बंटी )

Saturday, October 3, 2009

रोचक वार्तालाप - कुछ कड़ियाँ आपके लिए - कुछ मिठास हो जाए

Open Box: Poetry Anthology by Neighbourhood Di...


करीब एक वर्ष पूर्व काम के सिलसिले में प्रथम बार देश के बाहर जाना हुआ था. उन दिनों कुछ बेहद ही रोचक बाते हुई थीं हमारे और हमारे तथाकथित शुभचिंतकों के बीच में. बस उन्ही में से कुछ हीरे आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ. कुछ मिठास हो जाए.

[1] जब मैं यहाँ बोस्टन पहुँचा तब मेरे साथ ऐसे सहानुभूति जतायी गई

कि वहाँ तुम्हारे पास रूम तो है पर रूम पार्टनर नहीं है ..,कार तो है पर ड्राईवर नहीं है ...,पड़ोस में रूम और घर हैं पर अपने वतन का कोई नहीं है ..........किचेन तो है पर कुक नहीं है ...... : -)

खैर इसका भी मज़ा लो ....हमे तुम्हारी प्रतिभा पे पूरा भरोसा है ....जल्दी ही तुम गोरों के साथ भी BC (खूब बकर - बकर करने को उधर की तरफ बकरचोदी - BC करना कहा जाता है.. कृपया इसे गाली न समझें) करने कि कम्युनिटी बना लोगे ...

वैसे जल्दी से जल्दी ड्राइविंग वाला काम और रास्ता बताने वाली मशीन (G.P.S) का function समझ लो ....साथ वाले लडके के इंडिया वापस आने से पहले .. फिर तो बस मौज होगी ....और तुम वहाँ की मस्त रोड पे कार चला के song गाना ..( क्यों ...चलती है पवन ....क्यों मचलता है मन ....न तुम जानो न हम ...) हा ......हा ......हा ......

[2] एक बार जब बहुत दिनों से दोस्तों के मेल नहीं आ रहे थे तब

और माहौल ठीक है इधर. मैं ही बस अपडेट देता रहता हूँ और बाकी जबाब में आप सब लोग मेरे को सलाह देते हैं और उस पर विद्वान - टिप्पणी करते हैं..

आख़िर मेरा नम्बर कब आएगा.. जब मैं दूसरे को सलाह दूँ.. और वो तब आएगा जब आप लोग मेल करेंगे और अपने बारे में पंचाईत सुनायेंगे ... अब ऐसा तो हो नहीं सकता कि लाइफ में कुछ हो ही न रहा हो .... बस नोटिस करना चाहिए... बिना किसी कारण के कोई घटना घटित नहीं होती है ... लाइफ को बड़े perspective में देखना चाहिए. रोज रोज की च्हिल पों से परेशान नहीं होना चाहिए

बस अब मैं नहीं चाहता कि कोई टिप्पणी हो इसके ऊपर (ये मेरा अनमोल ज्ञान है )... बजाय इसके थोड़ा वक्त लीजिये और मेल करिए :)

3) मेरी तबियत का ख्याल रखते हुए एक सलाह

बाबा, ये चिंता का विषय है. आप ठण्ड के प्रति सेंसिटिव हैं. हम आपको बीमार होते हुए नहीं देख सकते विदेश में. कडुआ तेल कि बोतल अगर ले जाना भूल गए हो तो तुंरत वहां से ले लीजियेगा. साले सब ओलिव आयल use करते हैं. आप वाला तेलवा सस्ते में मिल जायेगा हमको लगता है. अपना ख्याल रखिये बाबा. कम्बल गमछा सब लपेट कर रहा करिए.

4) मेरे को मेरी ताक़त का एहसास कराती हुई एक दहकती मेल

*बड़ी पियरी वाले बाबा
**बनारस वाले बाबा
***बंगलुरु वाले बाबा
****बोस्टन वाले बाबा

ये चमतकारी और अपरं अलंकारी बाबा की कहानी है विदेशी पानी से भी बाबा को कुछ फरक नहीं होता जो एक अलग मति के इंसान हैं

एक बाबा भक्त बम्बई से

*बड़ी पियरी (बनारस का मोहल्ला जहाँ मेरा शुरुवाती बचपन बीता है )
**बनारस (हिंदुस्तान में एक शहर जहाँ का मैं हूँ)
***बंगलुरु जहाँ मैंने १ साल पढ़ाई की और करीब ३ साल से आजिव्कोपर्जन कर रहा हूँ.
****बोस्टन - अमेरिका का एक शहर जहाँ मेरे को ऑफिस के काम से कुछ वक्त के लिए आना पड़ा.

5)जब एक पुराने मित्र को पता चला मेरी इस यात्रा के बारे में - एक बधाई संदेश ऐसे आया

बधाई हो भाई,आख़िर बरसों की तपस्या रंग लायी .Now do one thing,don't act like uncle in that dream land. Do all the activities wat a youngster does. hope your .............

6) एक विचार और मेरे को उत्साहित करने के लिए

बाबा बाबा बाबा आपने चमत्कार कर रखा है. पूरी टीम को अकेले टक्कर दे रहे हैं बाबा.
नए मुल्क में कुछ नया करने का .
जय भारत,

7) जब दोस्त को गुस्सा आता है तो वो क्या लिखते हैं - मैं बेक़सूर हूँ.

साला बाबा की तो.....दुनिया बदल गई, कहाँ से कहाँ पहुँच गई, साला ख़ुद बाबा बड़ी पियरी से बोस्टन पहुँच गए.साला अभी भी नाटक है. पकड़ के दो लगाये सुबह रोज नास्ते में, सारी चर्बी उतर जायेगी साला बाबा की ऐसी की तैसी हल्ला बोल.

8) मेरे ब्लॉग के बारे में प्यार भरे दो शब्द

कैसा लग रहा है वहां? आपका ब्लॉग पढ़ के तो समझ लीजिये कि हम भी USA में ही विचरण कर रहे हैं.

कवि कालिदास भी इतना बेहतरीन नहीं लिख पाते.

जुग जुग जियो मेरे लाल.

9) कुछ लोग मेरी काबिलियत पे भरोसा नहीं करते -- ऐसे ही एक सज्जन मेल में लिखते हैं

Coooool!!!
Enjoy your stay and behave yourself :D (खूब मजे करो - पर अपनी हद मत भूलना )

मैंने जबाब दिया...

Yep… that’s a very useful piece of advice…. (जी हाँ, ये बहुत ही अहम् सलाह है...)

जबाब आता है ...

Hahaha…As long as you ensure you don’t show up on any news channel, I will assume you are behaving yourself :) (जब तक कि तुम ये भरोसा दिलाते हो, कि तुम वहां के किसी न्यूज़ चैनल पे नहीं दिखाए जाते हो, तो मैं मान लूँगा कि तुम वहां अपनी हद में ही हो...)

10) कुछ लोग ये कहते हैं

ग्राहक को थोड़ी हिन्दी सिखा देना. :D:D

तो मैंने कहा - ये ग्राहक बड़ा ही तकनीकी ज्ञान वाला है, पहले तो मैं उनकी ये तकनीकी भाषा समझने कि कोशिश कर रहा हूँ. इसके पहले कि मैं उन्हें हिंदी सिखाने के बारे में सोचूँ

जबाब आता है....

हां हा सही है..!!! तो कम से कम उनको राजा राजेश्वरी नगर (बंगलोर) के बारे में ही बता दो... उनको कह देना कि जब भी वे बंगलोर आयें, तो राजा राजेश्वरी नगर जरूर भ्रमण करें. (मैं राजराजेश्वरी नगर, बंगलोर में ही रहता हूँ, और लोगों को हमेशा ही वहां की खासियत के बारे में इस हद तक प्रेरित करता हूँ, कि लोग खिसिया जाते हैं.. महोदय की ये उपरोक्त सलाह उसी पे एक चुटकी है..)

11) एक पुराने मित्र ने ऐसे अपनी शुभकामनाएं दीं

हे चंगू बाबा उर्फ़ नीरज भाई उर्फ़ मुखिया जी !!!

आदमी एक और नाम अनेक :)

सुन कर काफ़ी अच्छा लगा की भाई साहब के पासपोर्ट की वर्जिनिटी अब ख़त्म हो गई है... लेकिन मियाँ अपना बचा के ही रखना :)

हमें आपके ऊपर पूरा विश्वास है. आप जाके वहां भी rocking performance दीजियेगा और विजयी हो के लौटियेगा !!!

12) ये अंदाजे बयाँ भी कुछ कम नहीं...

हेलो सर जी..

यहाँ का हाल चाल मजे में है.. finally आपका भी गदहा जनम छूट ही गया मतलब देश से बाहर हो ही लिए.. :)

वैसे कहाँ गए हैं .. कोई detail तो भेजिए .. पाकिस्तान या अफगानिस्तान तो नहीं चले गए, जो आपको हमारे देश का कोई नहीं दिखा.. :))

Saturday, February 7, 2009

धैर्य

Open Box: Poetry Anthology by Neighbourhood Di...
Image by guardian.co.uk via Google image search
आज बहुत दिनों के बाद हाथ में इन्टरनेट कनेक्शन आया है. तो बस बहुत दिनों से कई बातें जो अन्दर थीं अब उनको बाहर आने का मौका मिला है. तो मैं आज धैर्य के ऊपर आपको अपना एक अनुभव बताता हूँ. वैसे इसपे बड़े बड़े विद्यानों ने बखान दिए हैं, पर मेरा अनुभव हमारे एक मित्र से सम्बंधित है. तो हुआ यूँ, कि हमारे मित्र ने बताया कि, धैर्य न होने की वजह से वो टाइपिंग न सीख सके. मैंने पूछा धैर्य और टाइपिंग का आपस में भला क्या सम्बन्ध है? उन्होंने जिस मासूमियत से समझाया कि पूछिए मत. वो बताने लगे कि, जब वो टाइपिंग की क्लास में जाते थे, तो उनमें इतना धैर्य नहीं था कि वो बताये अनुसार एक पंक्ति के अक्षरो को टाइप करें जैसे (a s d f j k l) फिर (q w e r t y u i o p) वगैरह वगैरह... बस जब भी होता वो, a b c d ले के शुरू कर देते थे टाइप करना. और बस इसी अधीरपन की वजह से वो आज तक टाइपिंग नहीं सीख सके. बड़ा ही सरल और व्यावहारिक ज्ञान था. आसानी से समझ में आ जाने वाला .

भगवान् हम सब को धैर्य प्रदान करें.

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