मैं और मेरी पंचायत. चाहे ऑफिस हो, या हो घर हम पंचायत होते हर जगह देख सकते हैं. आइये आप भी इस पंचायत में शामिल होइए. जिदगी की यही छोटी-मोटी पंचायतें ही याद रह जाती हैं - वरना इस जिंदगी में और क्या रखा है. "ये फुर्सत एक रुकी हुई ठहरी हुई चीज़ नहीं है, एक हरकत है एक जुम्बिश है - गुलजार"


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Monday, December 21, 2009

कुछ चीजें ध्यान रखने की, जब आप किसी को खाने पे घर बुलाये

The Gynecologist Dinner Guest [cartoon]
The Gynecologist Dinner Guest [cartoon] (Photo credit: methodshop.com)


  1. आपने किसी को बुलाया खाना बनाने में मदद करने में - वो आपके मित्र हैं - उन्होंने अपनी सबसे कीमती चीज़ दी है. उनके साथ आपने कैसे आदान प्रदान किया. यहाँ से शुरुवात होती है. मेहमानों के सामने तारीफ़ को अपने सभी सहयोगियों से बांटना कभी नहीं भूलना चाहिए.
  2. मेहमान ने घर में प्रवेश किया. तो आप जो भी कर रहे हैं, या तो किचेन में हैं या कहीं और - आप किस तरह से मुस्कुरा के .. अपने हाव - भाव से किस तरह से उनका अभिवादन करते हो. एक गहरी मुस्कराहट और नजरों से नजरों को मिला के.
  3. आपके मेहमान अगर अपने बच्चों के साथ आये हैं, तो उनके बच्चों के बारे में पूछना चाहिए. वो क्या कर रहे हैं. और आपको कोशिश करनी चाहिए कि आप उनके बच्चों को उनके नाम से बुलाएं.. अगर आपको मालूम हैं, कि बच्चे छोटे हैं, तो घर के टूटने वाले सामानों को पहले ही हटा दे - जिससे कि बच्चे के माँ बाप को कोई सामन ना टूट जाए इस डर से बच्चे के पीछे - पीछे ना भागना पड़े. 
  4. अगर डिनर पर बुलाया है, तो ये ज़रूर ध्यान दें कि बहुत देर ना हो जाए खाने में - सबका खाने का एक समय होता है. कोशिश ये रहे कि खाना समय पे रेडी रहे और आप भी सबके साथ हंसी मजाक में बातचीत में सम्मिलित हो सकें. अच्छा हो कि पहले ही पूछ ले कि कब खाना ठीक रहेगा सबी सहूलियत के अनुसार. 
  5. खाने के पहले चाय - कॉफ़ी के वक़्त कोशिश करिए कि रोजाना से हट के हो कुछ . बहुत भारी ना हो वरना खाना नहीं खा पायेंगे लोग. कोशिश करिए कि कुछ बहुत ही हल्का डिश हो, जो कि आपने खुद बनाया है - थोडा ही हो.. पर लोग जरूर पसंद करेंगे, क्योंकि आपने बनाया है. मेहमान लोग भी इससे प्रभावित होंगे और बातचीत में आपका इस विशेषता पे भी चर्चा हो जायेगी. आखिर आप ख़ास हैं. आप इन्टरनेट या मैगजीन से देख के कुछ ट्राई कर सकती हैं. 
  6. अपने बारे में ही बात नहीं करनी चाहिए. आपको अपने मेहमानों के शौक़ और पसंद के बारे में चर्चा करनी चाहिए. अगर मेहमान आपके पति के बॉस हैं, तो काम काज के बारे में ज्यादा चर्चा करने से या फिर अनायास की प्रशंशा करने से बचना चाहिए.
  7. अपने पति के बारे में - वो घर पे क्या करते हैं क्या नहीं करते हैं - हल्का फुल्का मजाक वगैरह पूरी सूझ बूझ के ही साथ करना चाहिए. कोशिश कीजिये की ऐसी कोई चर्चा ना हो जो कि आपके पति को पसंद नहीं है. बाहरी लोगों के बीच में जबकि लोग आपकी बातों का समर्थन कर रहे हैं - उस वक़्त किसी बहाव में बहने के बजाय, एक दायरे में ही मजाक करना चाहिए. 
  8. खाना खाते वक़्त ये ध्यान दें कि आप भी साथ में सबके साथ खाने बैठी हैं. व्यायवस्था  ऐसी करें कि आप बीच में ही सही पर सबके साथ ही खाना खाएं. 
  9. अच्छा हो कि खाते वक़्त किसी के कम और ज्यादा खाने पे कोई वक्तव्य देने से बचे. खाने में क्या क्या है, शुरू में ही किसी चर्चा के बहाने बता दें - लोग अपनी पसंद के अनुसार तैयार रहेंगे. बहुत चीज़े मेनू में रखने के बजाय क्वालिटी के बारे में सोचें. 
  10. डेजर्ट में थोडा कम स्वीट या फिर स्वीट्लेस - स्वीट ही रखे - आजकल लोग चीनी अवोइड करते हैं. तो कुछ अलग भी हो जाएगा. अंत में सौंफ जरूर रखें.
  11. विदा के वक़्त दरवाजे तक छोड़ने जरूर आयें - और ये कहना ना भूलें कि बहुत अच्छा लगा उनके आने से और आपका भी दिन अच्छा बीता. 

Friday, December 18, 2009

हमारा शौक़ और काम ऐसा होने का है, कि दूसरों को भी खुशी हो उसमें.

Binnenhof
आज अनायास ही मन थोडा अजीब हो गया. एक तो ससुरा जुखाम है कि ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है. और दूसरा ये कि मैं दुनिया में जिस से भी मिलता हूँ उसके पास टाइम की बड़ी ही समस्या होती है. बड़े ही व्यस्त लोगों के बीच में उठना - बैठना है. सौभाग्य है कि दुर्भाग्य.

कभी इस तरह के मुस्कुराते चहरे को देखता हूँ और सोचता हूँ कि उनकी हालत कैसी है, फिर भी क्या मुस्कराहट है. और वहीँ एक तरफ थोडा नमक और चीनी कम हो जाने से मन खट्टा करने वाले भी लोग हैं. भाई, अगर बहाना बना के दुखी रहना है, तो कोई कुछ नहीं कर सकता है. टाईम निकाल के थोडा खुश भी हो जाइए - हमारे मास्टर कहते थे, कि इससे कुछ घट नहीं जाएगा.


मैंने एक चीज़ गौर की है, कि अगर हम दूसरे काम की तरफ अपना ध्यान नहीं लगायेंगे, तो हमेशा हमारा ध्यान एक तरफ ही खिंचा रहता है. अब ये दूसरी तरफ ध्यान लगाने के लिए बस एक चीज़ की ज़रुरत है, और वो है, कि एक छोटा सा चिरकुट सा काम और शौक ढून्ढ लेने का. जैसे हो सकता है, कि आपने सोचा है, कि बहुत दिन हुआ मंदिर नहीं गए, कोई नई किताब नहीं पढी, या फिर किसी दोस्त को फ़ोन नहीं किया या फिर कुछ भी. बस सोचना क्या है, कर डालिए. येही सब दूसरा काम है.

दूसरी एक बात और जो कि गौर करने कि है, वो ये कि, अगर आप सिर्फ ऐसे काम करेंगे जिससे कि आपको ही सुख मिलता हो, तो बात नहीं भी बन सकती है. हमारा शौक़ और काम ऐसा होने का है, कि दूसरों को भी खुशी हो उसमें. जैसे कि अगर हम किसी की तरफ देख कर जब मुस्कुराते हैं, तो दूसरे भी स्वतः: मुस्कुराने लगते हैं , उसी तरह से कई बार हमारे अच्छे और रोचक व्यावहार से दूसरों को गजब का मजा आता है. और आप भी मस्त हो जाते हैं.



Sunday, December 6, 2009

सब कुछ आपके अच्छे और भले के लिए ही हो रहा है.

Playground in Firehouse Mini Park and, in back...Image via Wikipedia
हम हमेशा से करना चाहते हैं. जैसे कोई किताब लिखना चाहता है, तो कोई कुछ जगहों पे घूमना चाहता है. तो किसी की ख्वाइश होती है, कि वो समाज-सेवा करे, वगैरह-वगैरह.  मेरे एक मित्र है, वो हमेशा जब भी वक़्त मिलता है, कहीं घूमने निकल जाते हैं. मेरे को बड़ा आश्चर्य होता है, कि भला आज की भागती-दौड़ती जिन्दगी में जबकि लोग हमेशा यही शिकायत करते हैं, कि समय नहीं है. भीड़ बहुत है. वहीँ ये जनाब है, कि बस मनमौजी की तरह जैसे ही वक़्त मिला - बस निकल लेते हैं. मैं बहुत कुछ सीखता हूँ उनसे. ऐसा नहीं कि उनके पास ऑफिस में काम कम है, या फिर वो बहुत ही फालतू है. जी नहीं. बहुत ही जिम्मेदारी वाला काम है ऑफिस में उनका भी. काफी दौड़ -धूप भी है. पर शायद अपने लिए इस तरह कुछ वक़्त निकाल लेने से वो काफी तरोताज़ा महसूस करते हैं. और बस वो वही करते हैं. और इससे उनको जो ताकत मिलती है, वो ही उनको खड़ा रखती है.

हम सब लोग हमेशा यही सोचते हैं, कि बस किसी तरह बस आज की समस्या से बाहर आ जाएँ, बाकी बाद में देखेंगे. लगता है कि हम ये मान के बैठे हैं, कि हमारे पास बहुत ही लम्बी ज़िंदगी है. और पूरा विश्वास है, कि कल कोई और समस्या अपना चौड़ा सा मुहं फैलाए उनके सामने नहीं आके खड़ी होगी . जी ये तो एकदम टॉप का सच है, कि समस्या कभी ख़त्म नहीं होती है, बस उसका स्वरुप बदल जाता है. तो ज़रुरत इस बात की है, कि समस्या को नजरंदाज कर के अपने जीने के लिए जो बहुत ही जरूरी है, उसके लिए समय निकालें. वो करें, जो करना आप हमेशा ही चाहते हैं. बड़ी ही शांती मिलती है. किसी ने  सही कहा है , कि अगर हमें ऐसा काम करना हो, जो कि हमें बहुत ही पसंद है, तो हमें उस काम में थकावट का एहसास नहीं होता है. तो अब होता ऐसा है कि हमेशा तो हमें मन माफिक काम मिलेगा नहीं. तो मैं क्या कहुँगा कि जो भी काम और परिस्थितियाँ  बने, बस अपना मन उसके माफिक बना लेना चाहिए. पर अक्सर होता ऐसा नहीं है, हम इसके विपरीत काम करते है. हमें अनायास ही अपनी सारी ऊर्जा उन परिस्थितियों को अपने अनुसार बनाने में खर्च कर देते हैं. और आप ज़रूर मानेंगे कि ऐसा करने से कुछ हासिल नहीं होता है.

एक कड़वा सच है, कि जो भी होता है, वो अच्छे के लिए ही होता है. बस हमें वक़्त लगता है उसे समझने और स्वीकार करने में. और ये वक़्त ज्यादा लगेगा या कम, ये इसपे निर्भर करता है कि हम कितना सकारात्मक सोचते हैं. कोई है, जो कि हमेशा आपके अच्छे के बारे में ही सोच रहा है, ये सारा संसार और आपके अगल-बगल की घटनाएं आपको आपकी सफलता की ओर ले जाने के लिए सारा जुगाड़ कर रही हैं. बस आप एक बार विश्वास भरी नज़र से देखिये तो. सब कुछ आपका अपने है. सब कुछ आपके अच्छे और भले के लिए ही हो रहा है.
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