मैं और मेरी पंचायत. चाहे ऑफिस हो, या हो घर हम पंचायत होते हर जगह देख सकते हैं. आइये आप भी इस पंचायत में शामिल होइए. जिदगी की यही छोटी-मोटी पंचायतें ही याद रह जाती हैं - वरना इस जिंदगी में और क्या रखा है. "ये फुर्सत एक रुकी हुई ठहरी हुई चीज़ नहीं है, एक हरकत है एक जुम्बिश है - गुलजार"


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Friday, December 12, 2008

अगर आप अपने को अप-टू-डेट नहीं रखेंगे तो आपकी भी दिवाली, ईद और क्रिसमस खट्टा हो सकता है

Newsweek 2008 06 16
Newsweek 2008 06 16 (Photo credit: sdobie)


आज यहाँ माहौल थोड़ा अलग है. सुबह से ही थोड़ा सूनापन महसूस हो रहा था, पर असलियत तब पता चली जब हमारे क्लाइंट ने हमें एक कमरे में ले जा के गुफ्तगू की. श्रीमान ने बताया कि, १२% लोग कंपनी से निकाल दिए गए हैं. मैं इस कंपनी के जिस ग्रुप के लिए एक कंसलटैंट की हैसियत से यहाँ काम कर रहा हूँ, उसके करीब १०० में से २५ लोग नप गए.

मैंने जब से काम शुरू किया है, तब से लगभग सब कुछ ठीक ही था. पर अभी विगत कुछ दिनों से जिस प्रकार से इकोनोमी ख़राब हुई है, उसका असर इतने करीब से पहली बार देख रहा हूँ. इतनी चका-चौंध है इस देश में हर तरफ़. अपने देश से देखो तो लगता है कि बस सपनों की नगरी है. अभी मैं जब ये लिख रहा हूँ, तो बस समझ में नहीं आता कि अपनी भावनाओं को किस प्रकार से काबू में करूं. जिनको निकाला गया, वो मेरे कोई नहीं थे, पर मन तो नहीं न मानता है. अभी क्रिसमस का टाइम है, लोग उत्सव के माहौल में हैं. और आज जब वो सुबह ऑफिस आते हैं, तो उनको बता दिया जाता है, कि बस अब कंपनी को आपकी सेवा की जरूरत नहीं है.

मैं तो बस चंद दिन और हूँ यहाँ पर. कल जब देश में लौट जाऊँगा तो फिर से रोज-मर्रा की जरूरतों और समस्याओं में उलझ जाऊँगा. फिर शायद इतना सोच न पाऊँ. पर अभी जो दिल में है, लिख दे रहा हूँ. दोस्तों, बाहर से देखने में वो जो दीखता है, वो हमेशा ही उतना उजला नहीं होता है. यहाँ भी, इस देश में भी लोगों को कष्ट और दुःख उसी तरह होता है. मन थोड़ा इसलिए भी मेरा कुछ ज्यादा खट्टा हो गया, क्योंकि जिन लोगों की नौकरी गई है, उनमें से एक मेरे सीट के बगल वाली सीट पे बैठने वाले भी थे.. अभी पिछले ३ वीक से मैं प्रोजेक्ट के काम से उनसे टच में था. वो थोड़ा उमर दराज थे, और प्रोग्रम्मिंग का काम करते थे. हमेशा मुस्कुराते रहते थे. अभी जब उनकी सीट पे देख रहा हूँ, तो बड़ा अजीब लग रहा है.

बहुत जरूरी है, कि आप अपना काम बहुत ही मन लगा के करें. देश और दुनिया की पंचायत जरूरी है, पर अगर आप अपने को अप-टू-डेट नहीं रखेंगे तो आपकी भी दिवाली, ईद और क्रिसमस खट्टा हो सकता है. दोस्तों, ये चंद लाइनें मैंने लिखीं हैं, इसके पीछे मेरा एक ख़ास मकसद है. आप सभी लोगों से निवेदन है, कि दुनिया की, अपने देश की समस्याओं और बाकी दिक्कतों पे ज्यादा ध्यान दे के अपना वक्त न बरबाद करें. आतंकवादी, नेता, क्रिकेट, फूटबाल, सिनेमा और नाच गाना की चर्चा कर के अपना वक्त जाया न करें. न तो इनके बारे में पढ़ें और न ही चिंतित हो और न ही चर्चा करें. अगर चिंता करनी ही है तो अपने करियर और व्यावसाय को ले के चिंतन करें. वरना एक दिन हमारा भी आ सकता है.

Friday, December 5, 2008

एक चिट्ठी - शादी की शुभकामनाओं के साथ

MarriageImage via photobucket.com
जैसे जैसे तुम्हारे विवाह का दिन करीब आ रहा है, न जाने मेरा दिल क्यों बहुत ही घबरा रहा है. वैसे जबकि ऐसा तब होता है, जब लडकी की शादी होती है, और उसकी विदाई का समय आता है. पर क्या करें इतने दोस्तों की शादी और उसके बाद मित्र मंडली से उनकी विदाई देख चुके हैं, कि लगता है, कि तुम्हारी भी विदाई ही हो रही है. जैसे जब लडकी ससुराल जाती है, तो उसको लगता है, कि लोग कैसे होंगे, नई जगह कैसी होगी .. वगैरह वगैरह.. यहाँ भी बात कुछ ऐसी ही है.

तुमने अपनी शादी को एक प्रोसेस की तरह लिया ('एक शादी हमने भी की' - तुम्हारी वो यादगार लाइन). सब कुछ बड़ी ही संजीदगी से handle किया है. जितनी मेहनत की है, वो सब कुछ बता देती है. मैं तुम्हारी लगन और कभी न हार मानाने वाली कला का कायल हूँ. तुमने अपनी जिंदगी को हमेशा ही लड़ा है - खूब प्यार किया है अपनी जिंदगी से. मैं शुरू में समझ नहीं पाया था. न जाने क्यों आज जब तुम्हारी शादी की डेट इतनी नजदीक है .. तो मेरा दिल धक्-धका रहा है. बस ईश्वर से ये ही प्रार्थना है, कि तुमको तुम्हारी मेहनत और लगन का सही फल मिले.

मैंने पिछले कई महीने, जब तक मैं यहाँ काफी दूर था, तेरे को काफी टोर्चेर किया है. तमाम तरह के सवाल कर के. तो कभी अनायास की सलाह दे के. तो कभी ऐसी फिजूल और दकियानूसी बातें कर के जिसको कि , आम समय में तुम जगह भी नहीं देते. पर तुमने बहुत ही प्यार से ये कह के टाल दिया कि तुमको अच्छा लगता है. मैं जनता हूँ, कि मेरे को झेलना बहुत ही मुश्किल काम है. तुमने बहुत सालों तक मेरे को झेला है. मैं भी बिना बदले हुए उसी तरह १९९१-९२ की गर्मियों की तरह अभी भी न जाने किस दुनिया में जी रहा हूँ.

मैं ये मेल क्यों लिख रहा हूँ, ये मेरे को भी नहीं मालूम है. पर हाँ, शादी में तो मैं आ नहीं पाऊँगा. तो शायद इसी तरह से कुछ लिख कर के अपने को संतोष दे रहा हूँ. अब मैं वहाँ हूँ नहीं, पर फिर भी मन तो वहीँ रहेगा... मेरी ढेर सारी शुभकामनाएं. मैं हमेशा दुःख और परेशानियों के समय तुम्हारे साथ हूँ. जब सब कुछ मस्त - तभी मैं मोहल्ला बदलूँगा


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Saturday, November 29, 2008

ठहरें, जरा आतंकियों के बारे में भी सोचें....

The Taj Mahal hotel where suspected gunmen are holed up in Mumbai, India, Friday, Nov. 28, 2008.Image by perezhilton.com via Googel Image Search
ठहरें, जरा आतंकियों के बारे में भी सोचें. सब लोग सिर्फ़ उनकी बुराई के बारे में ही सोच रहे हैं. आख़िर हमारे देशवासी और हमारे देश के नेताओं ने उनको इस हद तक हताश कर दिया कि..... नहीं समझ में आई बात... ठीक है.. मैं थोड़ा और लिखता हूँ..

उन्होंने हिंदू - मुस्लिम दंगे कराने की सोची - इसके लिए कभी हिंदू बहुल आबादी में विस्फोट किए तो कभी बाजार में... सैकड़ों लोग मारे जाते रहे. सरकार कमीशन बैठाती रही- वो इन्तेजार करते रहे .. कि कब उनको पकड़ा जाए और कब वो शहीद कहलायें और उनको कामयाबी मिले. पर कहाँ कोई उनके बारे में सोच रहा था..

मुंबई में लोकल ट्रेन में विस्फोट किया, अगले दिन से ट्रेन फिर चालू. गजब है भाई.. बड़ी जनसंख्या के ये सब बड़े फायदे हैं.... थोड़ी बहुत आवाज हुई - कि ये मुस्लिम अतिवादी हैं - पर सिर्फ़ इतना कहने से क्या होगा.. दंगे होने चाहिए थे - कोई और देश होता. अरे, और क्यों, आप अपने पड़ोसी मुल्क को ही ले लें, इसका आधा प्रयास भी वहाँ करें, तो वहाँ ऐसे जातीय दंगे हो जाएँ कि सरकार को मिलिटरी बुलानी पड़े.. पर भईया अपना देश तो निराला है. मेरे को तो समझ में नहीं आता है... थोड़ा दंगे हो गए होते, तो उनको भी शांती मिल गई होती और आगे होने वाले इन विस्फोटों से भी हम बच जाते. पर कौन है, जो इतना सुने..

जब बात इससे भी न बनी, तो मुस्लिम धर्म - स्थलों पे भी धमाके हुए, दिल्ली हो या जयपुर. पर पता नहीं क्या हुआ है आज की नस्ल को. एक वो हमारा बचपन था, कि एक लडकी छेड़ दो, या क्रिकेट मैच में हार जीत हो जाए - और ऐसे और भी कई छोटे मोटे मसले को ले के अच्छे स्तर पे दंगे हो जाया करते थे. पर अब कहाँ लोगों में वो पहले सा जोश रहा. सबको साला, अपने रोटी की चिंता है - धर्म की तो चिंता रही न किसी को अब. बड़ा घोर कलयुग है भाई. अब ये भी नहीं कह सकते कि दंगे न होने सिर्फ़ बड़े शहरों की समस्या थी - याद नहीं आपको, बनारस में मन्दिर में विस्फोट हुए - कुछ नहीं हुआ...फिर हजारों लोग काश्मीर में मारे गए - देश ने इसे देश का आतंरिक मामला माना तो वहीँ देशवासियों ने उसे काश्मीर का आंतरिक मसला मान लिया. मूए आतंकी सोच रहे थे, कि देश हिल जायेगा. बेवकूफ. ये बेचारे आतंकवादी - न जाने किन चिरकुटों के चंगुल में फँस गए हैं - पता नहीं काहे अपनी जान दिए जा रहे हैं. फिर आसाम, नक्सल और न जाने कितनी ही जगह उन्होंने अलग हट के प्रयास किया.. पर किस्मत ही ख़राब है...

ये आतंकी भाई लोग अगर दंगे और नफरत के जरिये भारतीय सामाजिक सिस्टम को एकदम ब्रेक कर देना चाहते हैं, तो उनकी लाटरी एक ही जगह लग सकती है, और वो है, राज-नेताओं और सामाजिक ठेकेदारों की शरण में जा के. जी हाँ, उनके पास अनुभव भी है और उनकी जरूरत भी. हाँ एक बार उन्होंने पार्लियामेंट के बाहर पहुँच के उनसे संपर्क साधने की कोशिश की थी, पर नेता लोग बुरा मान गए. वो समझे की देश पे हमला है. लगे सेना को युद्ध के लिए तैयार करने. अगर थोड़ी समझ रही होती, तो वही बात सलट गई होती. अब सारे देश के नेताओं से एक साथ मीटिंग करने की इससे अच्छी जगह कौन सी हो सकती थी.. पर हाँ, वो आतंकी लोग, गोला बारूद ले के आए थे, तो नेता लोग बुरा मान गए और बात बिगड़ गई.

अब जब कहीं बात नहीं बनती दिख रही थी तो मजबूर हो के उन्होंने वही किया जो कारपोरेट वर्ल्ड में होता है, एस्क्लेट कर दिया नेक्स्ट लेवल पर. जी हाँ, उन्होंने कहा, जब ससुरी कश्मीर पूरी जला दी, पर भारत सरकार को चिंता ही नहीं. तो चलो, अब अपनी बात और ऊपर ले जाएँ, कि बाहर से भारत पे दबाव आए कि वो आतंकियों पे सख्ती बरते - और भाई, ये आतंकी लोग और कुछ नहीं चाहते हैं - यही तो उनकी छोटी सी इच्छा है - अगर उनको हजारों लोगों को मारने की इच्छा होती तो वो चले गए होते किसी झुग्गी - झोपडी में, एक ग्रेनेड मारते १ हजार मरते. लेकिन नहीं, वो थक चुके हैं, गरीब, लोअर मिडल क्लास और मिडल क्लास को मार मार के.. बड़ी मोटी चमड़ी होती है - कुछ असर ही नहीं होता है. कुछ भी कर लो, अगले दिन फिर लगेंगे, क्रिकेट देखने तो शाहरुख का सिनेमा देखने तो कुछ रियलिटी शो देखने और कुछ तथाकथित चिन्तक लोग जो ये सब नहीं कर सकते वो ब्लॉग्गिंग करने लगते हैं... पर समस्या का क्या.. जो तो रही जस की तस्...

पढ़े-लिखे लोगों की अपनी सिरदर्दी है, कोई इस ऑफिस में काम कर रहा है, तो कई उस ऑफिस में। अपने बड़े अधिकारियों की फटकार से ही ये लोग भी सबकुछ भूल जाएंगे, और जो बचा-खुचा याद रहेगा वो इनकी बीवियों या तो चुम्मे लेकर या फिर लड़ कर भूला देंगी। हर राष्ट्रीय आपदा के बाद यही भारतीय चरित्र है। - अलोक नंदन की लिखी एक पोस्ट से

तो इस बार आतंकियों ने कहा, कि हम अमीरों और बड़े बड़े लोगों को मारेंगे... जो कि बड़े प्रभावशाली हैं, वो लोगों को निशाना बनाओ जिनके पैसे से राजनेताओं की राजनीति चलती है. कुछ विदेशियों को भी घेरे में लो जिससे कि अमेरिकी, ब्रिटिश और इजराइल सरकार अपने जासूस और जांच - एजेन्सी भेजें.. आख़िर किसी ने सोचा कि अगर उनको नुक्सान ही करना होता तो वो कब का पूरा होटल उड़ा देते... बगल में गेटवे आफ़ इंडिया  था, उसको भी उड़ा देते.. नहीं नहीं... वो तो बस छोटी से बात कहना चाहते थे कि - देखो हमने इतना कुछ नुक्सान किया... कम से कम कुछ तो दुखी हो... अब भारत सरकार तो दुखी होने से रही... चलिए आशा करते हैं, कि इस बार आतंकियों कि बात ऊपर तक जरूर जायेगी....

Sunday, November 16, 2008

और गुरु, ... हमारी तो ये कहानी है... तुम अपना सुनाओ

Ice Hockey Hair album coverImage via Wikipedia
जब तक हमें ससुरा dating और affair का मतलब समझ में आता, तब तक बहुत देर हो गई थी. फिर जब थोड़ा और हिम्मत दिखाई तो जीतू भाई टाइप के दोस्तों के साथ दोस्ती हो गई.. जो बड़े ही to-the-point विचार रखते थे. थोड़ा जीतू भाई की इस पोस्ट को पढिये - बाकी आप ख़ुद ब ख़ुद समझ जायेंगे. यदि ऐसे लक्षण है तो समझो आपको प्यार हो गया है..

मेरे दोस्त कुछ तो जीतू भाई जैसे थे, जिन्होंने ख़ुद तो आजमा लिया था.. और फिर सारे अनुभवों को इस कदर सामने रखते थे (जैसे जीतू भाई ने अपनी पोस्ट में रखा है ), कि आदमी प्यार करने के पहले इतने सारे साइड इफेक्ट पढ़ - सुन ले कि फिर बाकी हिम्मत ही न हो.

दूसरी श्रेणी में काफी द्रुत गति वाले थे.. जिनकी कहानी इतने जल्दी शुरू और ख़तम हुई कि साला इस मोहब्बत की स्पीड से ही थोड़ा भय लग गया. अरे यार, मेरे कुछ समझने के पहले ही शादी भी कर डाली और बच्चे भी हो गए.. हम हैं कि अभी सोच ही रहे थे कि ये सब कैसे हुआ.. जब थोड़ा करीब जा के मैंने कभी उन दोस्तों से उनके प्यार के बारे में कुछ टिप्स लेने की कोशिश की, तो उनका चेहरा ऐसा बना रहता था, कि जैसे अब मैं इस पुरानी बात की फिर से ( जान-बूझ कर ) चर्चा कर के कोई बहुत बड़ा गुनाह कर रहा हूँ

फिर किसी ने इतने पापड बेले कि जब कभी देखता तो लगता कि यार इतनी मेहनत में तो सिविल परीक्षा निकल जायेगी. उतना परिश्रम और लगन मेरे भीतर न थी. कमी मेरे ही अन्दर थी. आख़िर आलस से कुछ नहीं होता.. पर ये तो बड़ा ही काम मालूम हुआ. तो दूर से ही नमस्कार कर के आगे बढे.

फिर ग़ज़ल सुनने की उमर आई.. तो ऐसे ऐसे दर्द भरे गीत सुनने को मिले कि एक एक लाईन सुन के कलेजा मुहं को आ जाता था.. हर शायर ने इश्क को गम से ऐसे जोड़ा कि दोनों में फर्क ही भूल जाए सीधा-साधा इंसान. फिर कोई मैं गालिब के खानदान से तो तालुक्कात रखता नहीं था...तो बस यहाँ भी बात नहीं बनती दीख पड़ रही थी. तभी... पंकज उधास जी की एक ग़ज़ल हाथ लगी... 'किसी दिल में जगह पाने को शर्माना जरूरी है...' - अब भगवान् ने ये शर्माने की कला भी नहीं दी - थोड़ा दुःख हुआ... बस मुहं निपोर के हंस देना ... इससे कहीं दाल गलने वाली नहीं थी.

फिर वक्त गुजरता गया.. और वक्त गुजरा.. दोस्तों और गप्पों का सिलसिला चलता रहा.. एक से एक पंचायती लोगों से पाला पड़ा... पर अपना स्टेटस वही रहा. वैसे.. बाकी टाइम तो चल जाता है.. पर जब कभी महफ़िल में लोग बाग़ अपनी अपनी कहानियाँ सुना के आपकी तरफ़ सवाल करती निगाहें घुमाते हैं... ' और गुरु, ... हमारी तो ये कहानी है... तुम अपना सुनाओ... ' - तो थोड़ा बात बनाना मुश्किल हो जाता है..

तभी एक जबरदस्त आशावादी मित्र से मित्रता हुई.. प्रगाढ़ होती गई. वो भी अपने पंचायती बिरादरी के थे - घंटो, किसी भी मुद्दे पे... हाँ तो ख़ास बात ये थी, कि उनको अपनी इस उमर में भी मोहब्बत हो जाने के ऊपर प्रबल विश्वास था.. सही कहा है, विद्वानों ने अगर आत्म-विश्वास हो तो क्या कहना... तो मैं भी उनके साथ समय बिता रहा हूँ, कि शायद साथ रहते - रहते.. शायद मेरी किस्मत भी खुल जाए.


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Monday, November 10, 2008

वो ननिहाल की कुछ धुंधली यादें.

Desert herdsman (India)Image by Ahron de Leeuw via Flickr
१९८६ की मई-जून की गर्मियां, ...... वो ननिहाल की कुछ धुंधली यादें... तब हम पांचवीं की परीक्षा दे के पहली और आखिरी बार ननिहाल गए थे...

वो गाँव का कच्चा घर... मिटटी का बना चूल्हा ... नानी, मौसी और मम्मी का खुशी से वहीं खाना बनाना...

बिजली का न होना, फिर भी कभी मम्मी या मौसी से ये न कहना कि कोई दिक्कत हो रही है.

वो खुले में निपटने जाना...

हमारा और हमारे बब्बू भइया के साथ, बैल की सहायता से गन्ने का रस निकालना. बैलों का हांकना...

वो नाना का अपने घर की भैंस दुहना...और कड़क आवाज में हमें निर्देश देना...

वो नाना का हुक्का पीना... घर के बरामदे में...

वो नानी का, ताजे ताजे गन्ने के रस से गुड का ताजा गरम गरम खांड तैयार करना और हमारा उसको मजे ले के खाना.

मम्मी का उस दौरान फोटो लेना, सभी की फोटो में कभी सर तो कभी दाहिना कान, तो कभी आधा मुहं, तो कभी सिर्फ़ गर्दन की नीचे का ही फोटो आना.. पर फोटो देख के सभी का हँसना ... किसी को भी इसकी शिकायत न होना...

और फिर कई कोस चल के कच्चे रास्ते से बस पकड़ने जाना..और हमारा वो भोलापन - कि लौटते वक्त, हमारा और बब्बू भइया (हमारे मौसी के लड़के ) का रुक - रुक के रास्ते में पड़ने वाले हर पेड़ की छाल को कुरेच के निशाँ बनाना - कि जब फिर लौट के आयेंगे तो रास्ता याद रहेगा....
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Saturday, November 8, 2008

शंका का कोई समाधान नहीं

Friends discussing on some topicImage by Google via Images
सोहन: यार, दुनिया में ये इतने विभिन्न प्रकार के इंसान क्यों होते हैं.

निर्मल: क्या मतलब है तुम्हारा?

सोहन: अरे, वो कल तिमालू के यहाँ गया था, वो बड़ा परेशान था. उनके घर में अजीब परिस्थिति है, बच्चे बात नहीं सुनते हैं, इस बात को ले के बहुत परेशान था. कह रहा था, इस बदलती दुनिया में सब बहुत ही स्वार्थी होते जा रहे हैं.

निर्मल: हं, तो ये बात है, मैंने तेरे से कितनी बार कहा है, कि यार शाम के वक्त इस तरह से घरेलू समस्या का जिक्र मत किया करो. जिसके घर की समस्या है, वो अपना समझे, तू इतना टेंशन मत लिया कर.

सोहन: पर यार, अगर तेरे से बात नहीं करूँगा, तो आख़िर दिमाग में जो भी प्रश्न उठते हैं, उसको ले के कहाँ जाऊं.?


निर्मल: अबे, बहुत भोले बन रहे हो.. मैं तेरे को कोई बाबा दिखाई देता हूँ. भाई, मेरी तो कोई सुनता नहीं है, और अगर कोई सुने तो भी मैं भला क्यों बोलूं. वैसे, तू हमेशा से ही जनता है, कि तेरे और मेरे विचार कभी मिलते नहीं हैं... फिर वही बहस हो जायेगी और कोई फायदा नहीं है.

सोहन: हाँ, पर एक बात है, कि आख़िर ऐसा क्यों है, कि मेरी तेरे साथ न जाने कितनी बार बहस हुई है, पर हम लोग फिर बहुत ही जल्दी से वापस उसी तरह से दोस्त बन जाते हैं.

निर्मल: एकदम सही पकडी है बात तुने.. परफेक्ट. बस यही है सारे चीजों का सार.

सोहन: यार, कुछ समझ में नहीं आया... भला मैंने ऐसी कौन सी ज्ञान की बातें कर डाली.

निर्मल: देख, कभी ऐसा होता है, कि अगर जिसे हम प्यार करते हैं, तो अगर वो कभी कुछ ख़राब भी बोल दे, या कभी ग़लत भी कर दे तो हम उसे बड़ी ही आसानी से नजरअंदाज कर देते हैं, है कि नहीं? पर वही बात अगर कभी कोई अनजान या फिर कोई ऐसा जिसके लिए हमारे दिल में वो जगह नहीं है, कह दे, तो फिर देखो.. कैसा भूचाल आता है भीतर.

सोहन: हाँ, सो तो है...

निर्मल: तेरे और मेरे बीच वही होता है. हमारे में वैचारिक विभिन्नता हो सकती है, पर हम जानते हैं, कि हम एक दूसरे का बुरा नहीं चाहते हैं, तो इसीलिए हमारे बीच कभी वो उस तरह का टकराव नहीं होता है. पर हो सकता है कि तिमालू के घर में इस तरह की बात न हो.

सोहन: मैं समझ रहा हूँ, तू फिर से शायद 'शंका का कोई समाधान नहीं' की ओर अपनी बात ले जा रहा है.


"लोग आपकी मान्यता का विरोध कर सकते हैं पर आपके प्रेम का नहीं।"



निर्मल: वाह! यार... एकदम सही... अगर किसी भी तरह से हम लोग, हर दूसरे के लिए अच्छे विचार रखें, और किसी भी तरह की शंका को न बसने दें, तो ये सारी दिक्कतें यूँ ही ख़त्म हो जायेंगी. जब एक बार शंका पैदा हुई, तो सामने वाला एकदम अलग दिखाई देने लगता है. इसका नुकसान भी सबसे ज्यादा हमीं को होता है. क्योंकि असल में आपने अगर शंका पाल बैठी है, तो भइया वो सामने वाले को कैसे पता चलेगा... उसको तो आपको ही निकाल के फेंकना पड़ेगा....

सोहन: हाँ, और इस तरह से वो जो कभी हमारा करीबी था, अब हम उसके बारे में शंकालु निगाह रखने लगते हैं. परिणाम क्या होता है? उसकी कही कोई भी छोटी बात, टेंशन का विषय बन जाती है.

निर्मल: और तुम ही बताओ, अगर तिमालू को लगता है, कि उसे ये समस्या है, तो आख़िर उसका इलाज भी तो उसी के पास है. आख़िर रोग तो उसी का पाला हुआ है. अब अगर उसे कहोगे, कि अपने भीतर से ये सब निकाल दे.. तो पहली बात, कि ये समझाना बहुत मुश्किल है, वो समझेगा या नहीं पर ये तो पक्का है कि तेरा चाय-पानी बंद हो जायेगा... तिमालू के यहाँ.

सोहन: सही कहा यार! वैसे किसी ने कहा है... कि "चीज़ों के उजले पक्ष की तरफ़ देखने से आज तक किसी की भी आँखें ख़राब नहीं हुईं। " बात है, छोटी सी, पर आख़िर समझाए कौन....

निर्मल: बहुत सही कहा सोहन तुने... इसी पे मेरे को याद आता है.. "लोग आपकी मान्यता का विरोध कर सकते हैं पर आपके प्रेम का नहीं। " बात है, छोटी सी, पर आख़िर समझाए कौन....

सोहन: प्रेम से एक बात दिमाग में आती है. यार, लोग कहते हैं कि वो 'प्रेम' करते हैं... पर अगर आप वास्तव में प्रेम करते हैं तो फिर वहां शंका की कोई जगह नहीं होती है.

निर्मल: पर वास्तविकता तो ये है दोस्त, कि हम लोग इसी प्रेम की ढाल बना के 'शंका' को अपने घर में आमंत्रित करते हैं. मन के भीतर शंका अपना खेल दिखाता है, और बाहर हम ऐसा प्रतीत कराते हैं, हाय! कोई मेरा प्रेम, मेरा समर्पण, मेरा सामने वाले के लिए दर्द नहीं समझता !!! शंका हमें नचाती है, हम बेचैन होते हैं, और शंका को बाहर निकाल कर, प्रेम को अन्दर लाने के बजाय हम सामने वाले के बदलने का इन्तेजार करते हैं.

सोहन: ये थोड़ा कठिन हो गया दोस्त...

निर्मल: देख, अगेर तेरे को बहुत ही detail में समझना है तो भगत जी के पास जा. मैं बस यही कह रहा हूँ, कि जैसा गांधी जी ने कहा था.. उसी कि तर्ज पे मैं ये कहता हूँ..

अगर आप मन में बना लो, कि किसी की बुराई न सुनो, न देखो, न कहो. इसी के साथ, न तो किसी के प्रति किसी तरह की शंका अपने मन में लाओ, न तो किसी को शंका की दृष्टी से देखो. सिर्फ़ अच्छाई देखो यार.. बाकी ऊपर वाला सम्भाल लेगा. क्योंकि, हम जैसा देखेंगे, वैसा दिमाग और मन हो जाता है.. सब चीज में अच्छा बुरा दोनों होता है, बस ज़रूरत है सही पहलू की तरफ़ देखने की.

सोहन: तो ऐसे में कोई क्या करे, कि जब आप किसी को बहुत प्यार करें, उसका बहुत ही ख्याल रखें, उसके बारे में हमेशा अच्छा ही सोचें. पर आपको ऐसा लगे कि शायद दूसरा इन चीजों को समझ नहीं पा रहा है. मैंने ऐसा इसलिए कहा, क्योंकि चाहे वो मां- बाप और बच्चे हो, दोस्त हों, आपके प्रेमी-प्रेमिका हों, आपके पारिवारिक सगे -संबन्धी हों, सब जगह लागू होती है. और शायद यही तिमालू के यहाँ की भी समस्या है.

निर्मल: हाँ, वो तो है, कभी-कभी हम लोग किसी से बहुत ही ज्यादा लगाव करने लगते हैं. ये ठीक नहीं है. लगाव की भी अति ठीक नहीं है. हमारा मन स्वार्थी हो जाता है. फिर धीरे धीरे प्रेम का स्थान शंका ले ने लगती है.. डर बैठ जाता है.. किसी को भी अपने जैसा बनाने की कोशिश न करें। भगवान जानता है कि आप जैसा एक ही काफी है।

सोहन: अरे यार, उस दिन, वो हम लोग बात कर रहे थे न....

निर्मल: कौन सी बात यार... दिन भर में छत्तीस तरह की तो पंचायत करते हो.. अब कितना याद रखें...

सोहन: अरे यार ख्वाम्खा गरमा रहे हो मियां... मैं तो बस थोड़ा प्रेम की बात हुई तो उसी से जुडी हुई अपनी पुरानी बात याद दिला रहा था. वो, एक बार खूब बहस हुई थी.. कि अगर हम किसी से प्रेम करते हैं, mind it, सच्चा प्रेम... और कई सालों के बाद, किसी वजह से... हमें एक बार और प्रेम करना पड़ता है... अरे, जीतू भाई का ही ले लो..,(पहला प्यार, वो फ़ुर्सत मे छतियाना, वो फ़ुर्सत मे छतियाना - 2) क्या अदा से उन्होंने अपने प्रथम प्रेम की कहानी लिखी है...

तो सिनेमा और असल जिंदगी, दोनों में यही दिखाया जाता है, कि अगर सच्चा प्रेम है, तो वो जीवन भर नहीं भूलेगा... जीवन-पर्यंत जलना पड़ेगा.. वरना हम ख़ुद ही अपनी नजर में झुक जायेंगे.. क्योंकि, पुराने कवि, शायर, इतिहासकार, सभी ने यही बताया है.. और हम कोई चाँद से तो आए नहीं हैं, अब हम भी तो भूल नहीं न सकते... वैसे मैं कुछ अनुभवी नहीं हूँ, पर.... विचार रखने में बुराई क्या है..... ही ही ही.... वैसे किसी ने सच कहा है.. अगर आपकी कोई प्रेमिका नहीं है तो आपके जीवन में कुछ कमी है। अगर आपकी कोई प्रेमिका है तो आपके जीवन में कुछ नहीं है।

निर्मल: अब यही बात है, तो देखो, हमारे पास दो रस्ते होते हैं, एक तो आप ये कर सकते हैं, कि अपने लोगों के साथ बीताया हुआ अच्छा समय याद करें ... या वर्तमान में साथ न होने का गम मनाएं. यही बात लागू होती है, जब हम अपने परिवार या किसी निकट हितैषी को खो देते हैं.. अक्सर लोग गम इतना ज्यादा मानाने लगते हैं, कि ये भी भूल जाते हैं, कि -- अरे भाई, ये वर्तमान है, इसकी भी अपनी कुछ खुशियाँ हैं, यही कल बीत जायेगा.. और जब चला जायेगा.. तो क्या करोगे... फिर बैठ के गम मनाओगे -- अगर इस वक्त कुछ अच्छा नहीं करोगे... कुछ अच्छे पल को नहीं गुनोगे, तो कल किस सहारे... किन यादों के सहारे जियोगे... हाँ... तुम तो पश्चात्ताप करोगे.. दुःख करोगे...

सोहन: हाँ, यार, इसीलिए बहुत जरूरी है, कि ये वर्तमान जैसा भी है, हमें सिर्फ़ प्रेम करने का संदेश दे रहा है.. किसी कि बुराई मत करो.. किसी भी चीज की शिकायत मत करो.. अगर कुछ उल्टा भी है, जो हमें समझ में नहीं आ रहा है, और अपने पास दो रस्ते हैं, - कि दुखी हो, या फिर, सामने वाले को समझाएं, या फिर ... बस एक ही चीज़ सोचें, कि अगर हमारे साथ कुछ उल्टा भी हो गया है, तो कल जब हमारी समझ में सुधार आएगा, तब यही उल्टी चीजें हमें सीधी दिखने लगेंगे... तो अभी, अपनी नासमझी पे ज्यादा शोक न मानते हुए.. एक उज्जवल कल के लिए.. आज मस्त रहें..

निर्मल- वाह यार, तू तो भगत जी टाइप बातें करने लगा है...

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Friday, October 31, 2008

एक कुत्ता मेरी बाइक के समाने फिदायीन हमला कर बैठा

Stray DogImage by Image Search via Google

'दिन वैसे ही ख़राब चल रहा था, उसी में एक कुत्ता मेरी बाइक के समाने फिदायीन हमला कर बैठा, लेकिन मुझे मामूली सी खरोंच आई... चिंता की कोई बात नहीं है.'

ये लो कर लो बात, आख़िर चिंता की कोई बात क्यों नहीं है - उस कुत्ते के बारे में तो कुछ बताया ही नहीं मेरे दोस्त ने जिन्होंने अपनी मेल में हमको इस घटना की जानकारी दी थी. हाँ वैसे हमारे देश में कुत्ते हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग हो गए हैं. बड़ा ही चिंतनशील जीव है कुत्ता. अगर वो कुत्ता पालतू हो तो कह नहीं सकते, उसके तो छततीस पैंतरे होते हैं जी. मैं तो अपने गली और सड़क के कुत्तों की बात कर रहा हूँ.

और अगर आपको हमारे देश के आवारा कुत्तों की काबिलियत पे शक है, तो दोबारा सोचिये. या रहने दीजिये शायद आप समझ नहीं पायेंगे. वो जूनून जो उनके भीतर है, अगर आपने कभी देखा नहीं है तो मैं आपको बताता हूँ. वो उनका सड़क के किनारे दूर से आते किसी स्कूटर का इन्तेजार करना और फिर एकदम सही टाइमिंग सेट कर के एकदम एंगल बना के, रफ़्तार में आ रहे स्कूटर के दोनों पहियों के बीच से सुरक्षित पार कर होते हुए निकल जाना आसान नहीं है गुरु. वाकई कुत्ता बड़ा daring जीव है.

विदेशों में साला कुत्तों को आदमी बना के पालते हैं. मेरे को बताया गया कि वहाँ कभी किसी कुत्ते को नाम ले के मत बुलाना. मैंने कहा - क्या? तो बताया गया कि कुत्ता मत कहना उधर.. लोग लोड ले लेते हैं. मैं जब किसी काम से एक सज्जन के घर गया उधर तो वो अपने कुत्ते के बारे में इतने इमोशनल थे , कि मैं जितनी देर था , बार बार मन में दोहरा रहा था.. कि कहीं गलती से कुत्ता न बोल दूँ.

अब आइये मैं आपको बताता हूँ कि कुत्ते कितने शालीन होते हैं. बस गली हो या पड़ोसी का बालू हो, बस पड़े रहते हैं, कभी मन किया तो भूंक लिए.... दिल तो इनका इतना बड़ा होता है, कि बस कभी हड्डी भी पड़ी है तो हाथ (मेरा मतलब है मुंह ) भी नहीं लगायेंगे. लालची नहीं होते साब, हमारे यहाँ के कुत्ते.. दिन भर किसी भी गली में निकल जाएँ भगवान् की इतनी दया है कि हर गली में इतना खाने को मिल जाता है, कि वो किसी एक घर के मोहताज नहीं होते हैं.

कुछ कुत्ते बहुत इज्जतदार होते हैं, साला बगल के गली के आवारा कुत्ते अगर उनके इलाके की कुतिया पे ग़लत नजर डाले तो बस जान पे खेल जाते हैं. इतना भून्केंगे .. इतना भूकेंगे .. कि पूरा मोहल्ला जाग जाए.. हां जी, यहाँ तक तो ठीक. पर आप पूछेंगे कि वो हर गली का कुत्ता पालतू कुत्ते को देख के क्यों भूंकता है.. ऐसे भून्केंगे मानो आसमान सर पे उठा लेते हैं.... अब सारा सवाल हमसे क्यों पूछ रहे हैं आप... आपको मेरे इंसान होने पे शक है क्या???



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Sunday, October 26, 2008

हम सब इस देश की ट्रेन में सुरक्षित हैं

Indian train and panchayatImage via Wikipedia
'आज वक्त बदल रहा है. एक वो समय था जब हम इतने धूम धाम से दिवाली और ईद मानते थे कि मजा जाया करता था.' गफ्फूर भाई ने जैसे ही ये बात कही मेरा मन हुआ कि मैं ... उन्होंने मेरे दिल की बात कह डाली थी. अब ट्रेन का सफर हो और इस तरह की पंचायत हो, तो लगता नहीं कि ट्रेन में किराया दे के बैठे हैं. शाम के बज रहे थे और ट्रेन अपनी ही धुन में चली जा रही थी. कोई लोड नहीं ले रहा था.

'हिन्दुस्तान में रहने के ये सब अपने ही फायदे हैं. जब विदेश जाइयेगा तब पता चलता है कि क्या सुकून हैं अपने देश में.' - हमारे बगल में बैठे एक नौजवान ने अपने प्रथम उदगार व्यक्त किए.

मैंने कहा - 'सही है गुरु, आख़िर ऐसा कैसे कह सकते हो? वहाँ कभी ट्रेन इतनी लेट से चलती है?'

उसने मेरी बात का जबाब देकर उल्टे एक प्रश्न ही दाग दिया - 'हमारे यहाँ बोलो कभी भी ड्राईवर का ध्यान मोबाइल से एस.एम्.एस. करने से क्या कभी इतना बट सकता है कि ट्रेन का एक्सीडेंट ही करवा दे? नहीं ... अमेरिका में अभी पिछले महीने ही ऐसा एक एक्सीडेंट हुआ है '

लोग बाग़ इस ज्ञान भरे रहस्योद-घाटन से बाग़ - बाग़ हो उठे. साइड-अपर २४ पे बैठे भइया ने पेपर से सर बाहर निकाल कर अपनी मूंछ कुछ इस तरह सहलाई मानों गर्व से कह रहे हों - 'सही हुआ, साले अंग्रेज बेवकूफ ही रहेंगे - उनकी ट्रेन जबकि ऐसी होती है, कि सब कुछ ऑटोमेटिक होता है, फिर भी साले कामचोर जरा सा ध्यान नहीं रख सकते'

'अरे यार उनके देश में तो हर ट्रेन में ऑटोमेटिक दरवाजा खुलता बंद होता है, जैसे अपने इधर मेट्रो ट्रेन में. देखा नहीं था दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे में' - कैसे शाहरुख खान ने काजोल का हाथ पकड़ा था, इससे पहले की दरवाजा बंद हो जाए.' मेरे को लगा कि टिल्लू बेवजह ही इस बात को रोमांटिक मोड़ दे रहा है. तभी इतनी तेजी से झटका लगा और भड़ाक!! से टॉयलेट का बिना कुंडी का दरवाजा दो तीन बार कसमसाती आवाज करता हुआ कराहा. भला हो स्लीपर के दरवाजों का बला के मजबूत लोहों से बनते हैं, आदमी झटके से बाहर फेंका जाए, पर दरवाजे की मजाल जो हिल जाए.

मैंने कहा भाइयों, याद है आपको एक बार एक ट्रेन (मालगाडी) बनारस में खड़ी थी. इंजन चालू था और एक काँवरिया ने उस बिना ड्राईवर की ट्रेन को जो चलाया तो ट्रेन ऐसे सरपट भागी कि बस किसी तरह उसको इलाहबाद में ही रोका जा सका. भले उस बेचारे काँवरिया को जेल हो गई हो - पर उसने ये तो साबित कर दिया कि बिना किसी ट्रेनिंग के भी हम हिन्दुस्तानी लोग ट्रेन चला सकते हैं. और ख़ास बात तो ये कि कुल तीन घंटे का सफर सिर्फ़ डेढ़ घंटे में पूरा हो गया था. पूरा माहौल ऐसा हो रहा था मानो सबने चैन की साँस ली कि चलो हम सब इस देश की ट्रेन में सुरक्षित हैं. थोड़ी बहुत दिक्कतें भी हैं.. पर सब सहमत थे कि अपना देश अपना ही है...


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Sunday, October 12, 2008

मोना के पापा की अनमोल चिट्ठी

LetterImage by Google via Images
"पापा की सीख" से लिया है मैंने ये नीचे लिखा हुआ पत्र. एक एक बात कितनी सच्ची है. मेरा प्रयास है, कि ज्यादा से ज्यादा लोग पढ़े इसीलिए पुनः पोस्ट किया है इसे. आज के इस आधुनिक युग की आप धापी में, एक बाप का अपनी बेटी के लिए ये अमूल्य संदेश है.

हर बाप का ये सपना होता है, कि वो अपनी बेटी को सही संस्कार दे के ससुराल विदा करे. धन्य है, इस इंटेरनेट युग का कि इसके जरिये समान विचारधाराएँ बह निकली हैं.

सब कहते हैं, कि उनको सब कुछ पता है. पर असल में कितना पता है ये जरूरी नहीं पर ये जरूरी है, कि हम उन शिक्षाओं को कितना अमल कर पाते हैं.

छोटी - छोटी बातें ही धीरे - धीरे बड़ा असर दिखाती हैं.

बहुत ही उत्तम तरीके से कही गई हैं एक - एक बात. हर बात सोलह आने सच. जरूरत है, तो बस इसपे अमल करने की. पिता को साधुवाद और लेखिका को शुक्रिया....

प्रिय मोना,

आज पहली बार तुम्हारे पापा को तुमसे कुछ कहने के लिए कलम का सहारा लेना पड़ रहा है. लेकिन मुझमें इतनी हिम्मत नहीं कि ये सब मैं तुम्हें उस क्षण बता सकूँ जब तुम अपने पापा को छोड़ नए दुनिया मे कदम रख रही होंगी.


  • बिटिया जब आपका विवाह होता हैं तो आप उस पूरे परिवार से जुड़ जाते हो. हमेशा अपने परिवार का मान सम्मान बनाए रखना. मैने और तुम्हारी मम्मी ने हमेशा तुम्हें अपने से बड़े का आदर करना सिखाया है इसे भूलना नही.


  • मै जानता हूँ कि तुम्हें घर के कार्य ठीक से नहीं आते लेकिन धैर्य व लगन से यदि कार्य करने का प्रयास करोंगी तो निश्चित रूप से सभी कार्य कर पाओंगी. तुम्हें कुछ जरूरी बातें बता रहा हूँ जो तुम्हें मदद करेंगी.


  • प्रातः जल्दी उठने की आदत डाले. इससे कार्य करने मे आसानी होती है साथ ही शरीर भी स्वस्थ रहता है.


  • घर के सभी बड़े लोगो को सम्मान दे व कोई भी कार्य करने से पूर्व उनकी अनुमति ले.


  • भोजन मन लगाकर बनाने से उसमें स्वाद आता है कभी भी बेमन या घबराकर भोजन नही बनाओ बल्कि धैर्य से काम लो.


  • यदि तुम्हें कोई कार्य नही आता तो अपने से बड़े से उसके बारे मे जानकारी लो.और उसे करने की कोशिश करो.


  • गुस्सा आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन है. हमेशा ठंडे दिमाग से काम लो. जल्दबाजी मे कोई कार्य न करो.


  • गलतियाँ सभी से होतीं है. कभी भी कोई गलती होने पर तुरंत उसे स्वीकार करो. क्षमा माँगने से कभी परहेज़ न करो.


  • किसी के भी बारे मे कोई भी राय बनाने के पहले स्वयं उसे जाने,परखे तभी कोई राय कायम करे.सुनी हुई बातों पर भरोसा करने के बजाए स्वविवेक से निर्णय ले.


  • सास ससुर की सेवा करें. उन्हें दिल से सम्मान दे. उनकी बातों को नजर अंदाज न करे. न ही उनकी किसी बात को दिल से लगाए.


  • हमेशा अपने पापा के घर से उस घर की तुलना न करो. न ही बखान करो. वहाँ के नियम वहाँ के रिवाज अपनाने का प्रयास करो.


  • किसी भी दोस्त या रिश्तेदार को घर बुलाने के पहले घर के बड़े या पति की आज्ञा ले.


  • विनम्रता धारण करो. संयम से काम लो.कोई भी बिगड़ी बात बनाने का प्रयास करो बिगाड़ने का नही.


  • कोई भी कार्य समय पर पूरा करे. समय का महत्व पहचानो.हर कार्य के लिए निश्चित समय निर्धारित करो व उसे पूर्ण करो.


  • घर के सभी कार्य मे हर सदस्य की मदद करें. जो कार्य न आए उन्हें सीखे.


ऐसी और भी कई छोटी छोटी बातें है जिनका यदी ध्यान रखा जाएँ तो गृहस्थी अच्छी तरह से चलती है. बिटिया अपनी जिम्मेदारियो से मुँह नही फेरना बल्कि उन्हें अच्छी तरह से निभाना. मुझे तुम पर पूरा भरोसा है. मै जानता हूँ कि तुम अपने ससुराल मे भी अपने मम्मी पापा का नाम ऊँचा रखोंगी व हमे कभी तुम्हारी शिकायत नही आएँगी. तुम सदा खुश रहो और अपनी जिम्मेदारियाँ ठीक से निभाओ यही आशीर्वाद देता हूँ.

तुम्हारा पापा

भगत जी - जो अपना है, वो आपको सब मिलेगा

Kabir Wani - At Kabir Wad
Kabir Wani - At Kabir Wad (Photo credit: ajaytao)

राम राम पंचों. आज भगत जी फिर से गाँव में आए हैं. हमेशा की तरह लोगों की भीड़ उनको घेरे हुए है. अन्तिम बार आए थे तो उन्होंने पंचों को ईमानदारी का अनमोल सबक दिया था. ये दो लाइनें कल्लू को अभी तक याद हैं.

हमको बहुत अच्छा लगा कि तुम बहुत ईमानदार हो, जो सबको होना चाहिए. अपनी ईमानदारी ही अध्यात्म और संसार दोनों में ऊंचाई तक ले जाती है. आपमें वो सब गुण है उसको विकसित करने की जरूरत है.

अब भगत जी सभी को समझाते फिर रहे हैं - और उनकी लोकप्रियता खूब बढ़ती जा रही है. लोग उनकी बात को ध्यान से सुनते थे. इस बार भगत जी, शिर्डी वाले साईं बाबा के यहाँ से हो के आए हैं तो कुछ जिज्ञासा ज्यादा है लोगों में. धीरे - धीरे वहाँ और भीड़ इकठ्ठा हो गई. कल्लू ने हमेशा की तरह सारा इन्तजाम किया और भगत जी ये कहते हुए पाये गए.

जब बच्चा छोटा होता है तो उसको बचाया जाता है हर टेंशन से. कि कहीं बच्चे के विकास में कोई रुकावट आए. हर तरह से मजबूत हो जाए. कि संसार की सभी हवाओं को सहने लायक हो जाए क्योंकि हर किसी को अकेले ही इस संसार में हर परिस्थिति का सामना करना पड़ता है. बच्चे को जीना सीखाना पड़ता है कि वो अपने दिमाग और अपने विवेक का इस्तेमाल करना सीख जाए.

ये सब तो अच्छी बात थी. आख़िर कब से ये गाँव पारिवारिक कलह से जूझ रहा था. लोगों में एक दूसरे के कष्टों को देखने की ताकत ही ख़तम हो गई थी. अब कहाँ बच्चे ये सब समझ पाते हैं. बस भगत जी तो चाहते हैं, कि लोग अपनी जिम्मेदारी समझें. पर नहीं. भगत जी अपने में ही मगन हैं. वो तो बस इस आधुनिक युग में भी अपनी बातों के जरिये लोगों तक अपना संदेश पहुँचा देना चाहते हैं.

भगत जी एक दिन बता रहे थे - मजिल तक के रस्ते में बहुत रुकावट आती है उसको पार करना होता है. पार करने में भगवान् की मदद की जरूरत होती है. जब हम उस मालिक के सहारे होते हैं तो सब पार हो जाता है. एक बार की घटना है - एक संत बहुत ऊंचाई से झील में गिर गए, लोग सोचे अब तो वो आदमी मर गया होगा. बहुत खोजा गया - कहीं पता नहीं चला. कुछ दिन के बाद वो किनारे पर आ के लग गए. बाकी देखने वाले बहुत परेशान हुए, आख़िर ऐसा कैसे हो सकता है. लोगों के पूछने पर भगत जी ने लोगों को समझाते हुए बताया.

आदमी को कुछ करना नहीं होता है. पानी जिधर ले गया संत महाराज चले गए. संत इसीलिए सही सलामत रह गए क्योंकि उन्होंने कोई जबरदस्ती नहीं की. अगर उन्होंने जबरदस्ती की होती तो वो यहाँ नहीं होते. तात्पर्य ये है, हर किसी को वो करना होता है जो ऊपर वाला करता है. जब हम उसके बिधान में छेड़छाड़ करते हैं तो ठीक नहीं होता. हर किसी को अपने हिस्से का सब कुछ मिलता है, मांगने की जरूरत नहीं होती है. आप चलते जाओ, जो अपना है, वो आपको सब मिलेगा. इसी का नाम है श्रद्धा और सबुरी. ये बाबा का मंतर है - येही पर लगा देता है.
  • नासमझ लोग ऐसा ही करते हैं, समझने का प्रयास भी नहीं करते। कोई समझाए भी तो उसको बेवकूफ समझते हैं। दुनिया का कोई पागल अपने आपको कभी पागल नहीं मानता। वह उसी को पागल बताता है जो उसे पागलखाने में भर्ती कराने जाता है या इलाज कराने जाता है। बेवकूफ को बेवकूफ कहो तो उसको करंट लगता है परंतु नासमझ कहने से बात उतनी नहीं बिगड़ती, इसलिए हमेशा इस शब्द का ही इस्तेमाल करना चाहिए। बेवकूफ कहने से नामसझ कहना अच्छा है। थोड़ा 'सम्मानजनक' शब्द है।.


  • ऐसा भी नहीं कि ऐसे नासमझों को समझाने में अपनी उर्जा लगाने वाला व्यक्ति समझदार होता है। अपनी उर्जा को व्यर्थ खर्च करने वाले ऐसे लोगों की गिनती भी नासमझों में ही की जाती है। फिर किया क्या जाए, यह एक यक्ष प्रश्न है जिसका उत्तर सहज ढूंढ पाना कठिन है, प्रयास करना चाहिए। आइये आप हम सब इस यक्ष प्रश्न का उपयुक्त उत्तर तलाशने की कोशिश करें।

उपर्युक्त लाइनें श्रीकांत परासर जी के लिखे लेख नासमझ लोग से ली गई हैं
  • मूर्ख व्यक्ति से बहस न करें। पहले तो वे आपको उनके स्तर तक घसीट लाते हैं, फ़िर अपने अनुभव से आपको परास्त कर देते हैं।
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