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जब तक हमें ससुरा dating और affair का मतलब समझ में आता, तब तक बहुत देर हो गई थी. फिर जब थोड़ा और हिम्मत दिखाई तो जीतू भाई टाइप के दोस्तों के साथ दोस्ती हो गई.. जो बड़े ही to-the-point विचार रखते थे. थोड़ा जीतू भाई की इस पोस्ट को पढिये - बाकी आप ख़ुद ब ख़ुद समझ जायेंगे. यदि ऐसे लक्षण है तो समझो आपको प्यार हो गया है..
मेरे दोस्त कुछ तो जीतू भाई जैसे थे, जिन्होंने ख़ुद तो आजमा लिया था.. और फिर सारे अनुभवों को इस कदर सामने रखते थे (जैसे जीतू भाई ने अपनी पोस्ट में रखा है ), कि आदमी प्यार करने के पहले इतने सारे साइड इफेक्ट पढ़ - सुन ले कि फिर बाकी हिम्मत ही न हो.
दूसरी श्रेणी में काफी द्रुत गति वाले थे.. जिनकी कहानी इतने जल्दी शुरू और ख़तम हुई कि साला इस मोहब्बत की स्पीड से ही थोड़ा भय लग गया. अरे यार, मेरे कुछ समझने के पहले ही शादी भी कर डाली और बच्चे भी हो गए.. हम हैं कि अभी सोच ही रहे थे कि ये सब कैसे हुआ.. जब थोड़ा करीब जा के मैंने कभी उन दोस्तों से उनके प्यार के बारे में कुछ टिप्स लेने की कोशिश की, तो उनका चेहरा ऐसा बना रहता था, कि जैसे अब मैं इस पुरानी बात की फिर से ( जान-बूझ कर ) चर्चा कर के कोई बहुत बड़ा गुनाह कर रहा हूँ
फिर किसी ने इतने पापड बेले कि जब कभी देखता तो लगता कि यार इतनी मेहनत में तो सिविल परीक्षा निकल जायेगी. उतना परिश्रम और लगन मेरे भीतर न थी. कमी मेरे ही अन्दर थी. आख़िर आलस से कुछ नहीं होता.. पर ये तो बड़ा ही काम मालूम हुआ. तो दूर से ही नमस्कार कर के आगे बढे.
फिर ग़ज़ल सुनने की उमर आई.. तो ऐसे ऐसे दर्द भरे गीत सुनने को मिले कि एक एक लाईन सुन के कलेजा मुहं को आ जाता था.. हर शायर ने इश्क को गम से ऐसे जोड़ा कि दोनों में फर्क ही भूल जाए सीधा-साधा इंसान. फिर कोई मैं गालिब के खानदान से तो तालुक्कात रखता नहीं था...तो बस यहाँ भी बात नहीं बनती दीख पड़ रही थी. तभी... पंकज उधास जी की एक ग़ज़ल हाथ लगी... 'किसी दिल में जगह पाने को शर्माना जरूरी है...' - अब भगवान् ने ये शर्माने की कला भी नहीं दी - थोड़ा दुःख हुआ... बस मुहं निपोर के हंस देना ... इससे कहीं दाल गलने वाली नहीं थी.
फिर वक्त गुजरता गया.. और वक्त गुजरा.. दोस्तों और गप्पों का सिलसिला चलता रहा.. एक से एक पंचायती लोगों से पाला पड़ा... पर अपना स्टेटस वही रहा. वैसे.. बाकी टाइम तो चल जाता है.. पर जब कभी महफ़िल में लोग बाग़ अपनी अपनी कहानियाँ सुना के आपकी तरफ़ सवाल करती निगाहें घुमाते हैं... ' और गुरु, ... हमारी तो ये कहानी है... तुम अपना सुनाओ... ' - तो थोड़ा बात बनाना मुश्किल हो जाता है..
तभी एक जबरदस्त आशावादी मित्र से मित्रता हुई.. प्रगाढ़ होती गई. वो भी अपने पंचायती बिरादरी के थे - घंटो, किसी भी मुद्दे पे... हाँ तो ख़ास बात ये थी, कि उनको अपनी इस उमर में भी मोहब्बत हो जाने के ऊपर प्रबल विश्वास था.. सही कहा है, विद्वानों ने अगर आत्म-विश्वास हो तो क्या कहना... तो मैं भी उनके साथ समय बिता रहा हूँ, कि शायद साथ रहते - रहते.. शायद मेरी किस्मत भी खुल जाए.
मेरे दोस्त कुछ तो जीतू भाई जैसे थे, जिन्होंने ख़ुद तो आजमा लिया था.. और फिर सारे अनुभवों को इस कदर सामने रखते थे (जैसे जीतू भाई ने अपनी पोस्ट में रखा है ), कि आदमी प्यार करने के पहले इतने सारे साइड इफेक्ट पढ़ - सुन ले कि फिर बाकी हिम्मत ही न हो.
दूसरी श्रेणी में काफी द्रुत गति वाले थे.. जिनकी कहानी इतने जल्दी शुरू और ख़तम हुई कि साला इस मोहब्बत की स्पीड से ही थोड़ा भय लग गया. अरे यार, मेरे कुछ समझने के पहले ही शादी भी कर डाली और बच्चे भी हो गए.. हम हैं कि अभी सोच ही रहे थे कि ये सब कैसे हुआ.. जब थोड़ा करीब जा के मैंने कभी उन दोस्तों से उनके प्यार के बारे में कुछ टिप्स लेने की कोशिश की, तो उनका चेहरा ऐसा बना रहता था, कि जैसे अब मैं इस पुरानी बात की फिर से ( जान-बूझ कर ) चर्चा कर के कोई बहुत बड़ा गुनाह कर रहा हूँ
फिर किसी ने इतने पापड बेले कि जब कभी देखता तो लगता कि यार इतनी मेहनत में तो सिविल परीक्षा निकल जायेगी. उतना परिश्रम और लगन मेरे भीतर न थी. कमी मेरे ही अन्दर थी. आख़िर आलस से कुछ नहीं होता.. पर ये तो बड़ा ही काम मालूम हुआ. तो दूर से ही नमस्कार कर के आगे बढे.
फिर ग़ज़ल सुनने की उमर आई.. तो ऐसे ऐसे दर्द भरे गीत सुनने को मिले कि एक एक लाईन सुन के कलेजा मुहं को आ जाता था.. हर शायर ने इश्क को गम से ऐसे जोड़ा कि दोनों में फर्क ही भूल जाए सीधा-साधा इंसान. फिर कोई मैं गालिब के खानदान से तो तालुक्कात रखता नहीं था...तो बस यहाँ भी बात नहीं बनती दीख पड़ रही थी. तभी... पंकज उधास जी की एक ग़ज़ल हाथ लगी... 'किसी दिल में जगह पाने को शर्माना जरूरी है...' - अब भगवान् ने ये शर्माने की कला भी नहीं दी - थोड़ा दुःख हुआ... बस मुहं निपोर के हंस देना ... इससे कहीं दाल गलने वाली नहीं थी.
फिर वक्त गुजरता गया.. और वक्त गुजरा.. दोस्तों और गप्पों का सिलसिला चलता रहा.. एक से एक पंचायती लोगों से पाला पड़ा... पर अपना स्टेटस वही रहा. वैसे.. बाकी टाइम तो चल जाता है.. पर जब कभी महफ़िल में लोग बाग़ अपनी अपनी कहानियाँ सुना के आपकी तरफ़ सवाल करती निगाहें घुमाते हैं... ' और गुरु, ... हमारी तो ये कहानी है... तुम अपना सुनाओ... ' - तो थोड़ा बात बनाना मुश्किल हो जाता है..
तभी एक जबरदस्त आशावादी मित्र से मित्रता हुई.. प्रगाढ़ होती गई. वो भी अपने पंचायती बिरादरी के थे - घंटो, किसी भी मुद्दे पे... हाँ तो ख़ास बात ये थी, कि उनको अपनी इस उमर में भी मोहब्बत हो जाने के ऊपर प्रबल विश्वास था.. सही कहा है, विद्वानों ने अगर आत्म-विश्वास हो तो क्या कहना... तो मैं भी उनके साथ समय बिता रहा हूँ, कि शायद साथ रहते - रहते.. शायद मेरी किस्मत भी खुल जाए.
तभी एक जबरदस्त आशावादी मित्र से मित्रता हुई.. प्रगाढ़ होती गई. वो भी अपने पंचायती बिरादरी के थे - घंटो, किसी भी मुद्दे पे... हाँ तो ख़ास बात ये थी, कि उनको अपनी इस उमर में भी मोहब्बत हो जाने के ऊपर प्रबल विश्वास था..
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कोहिनूर हीरा कहां से पा गये आप!
मित्र मिला,तक़दीर वाले हो।बधाई
ReplyDeleteकुछ समझने के पहले शादी भी कर डाली और बच्चे भी हो गए! तो गोया शोले के ठाकुर हो गए।
ReplyDeleteआपके दोस्तों ने बडी तेज गति पाई है भाई । गोया 'किस्सा-ए-इश्क' न हुआ, हिन्दी फिल्म हो गई - ढाई घण्टों में तीन जनम निपट गए ।
ReplyDeleteबहरहाल, लिखा ऐसा है कि शुरु करने के बाद खतम होने पर ही अगली सांस आती है ।
आपकी पोस्ट पढने के बाद जीतू भाई की पोस्ट 'यदि ऐसे लक्षण है तो समझो आपको प्यार हो गया' अभी-अभी पढी । 'उर्दू न समझ में आने पर भी गजलें अच्छी लगने लगें' वाला वाक्य पढकर, अकेले में ही हंसते-हुसते दुहरा हो गया । यह 'धांसू' लक्षण पहली ही बार जानकारी में आया । आनन्द आ गया । दिन भर की थकान दूर हो गई । ऐसी झन्नाटेदार पोस्ट पढवाने के लिए अतिरिक्त धन्यवाद ।
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