१९८६ की मई-जून की गर्मियां, ...... वो ननिहाल की कुछ धुंधली यादें... तब हम पांचवीं की परीक्षा दे के पहली और आखिरी बार ननिहाल गए थे...
वो गाँव का कच्चा घर... मिटटी का बना चूल्हा ... नानी, मौसी और मम्मी का खुशी से वहीं खाना बनाना...
बिजली का न होना, फिर भी कभी मम्मी या मौसी से ये न कहना कि कोई दिक्कत हो रही है.
वो खुले में निपटने जाना...
हमारा और हमारे बब्बू भइया के साथ, बैल की सहायता से गन्ने का रस निकालना. बैलों का हांकना...
वो नाना का अपने घर की भैंस दुहना...और कड़क आवाज में हमें निर्देश देना...
वो नाना का हुक्का पीना... घर के बरामदे में...
वो नानी का, ताजे ताजे गन्ने के रस से गुड का ताजा गरम गरम खांड तैयार करना और हमारा उसको मजे ले के खाना.
मम्मी का उस दौरान फोटो लेना, सभी की फोटो में कभी सर तो कभी दाहिना कान, तो कभी आधा मुहं, तो कभी सिर्फ़ गर्दन की नीचे का ही फोटो आना.. पर फोटो देख के सभी का हँसना ... किसी को भी इसकी शिकायत न होना...
और फिर कई कोस चल के कच्चे रास्ते से बस पकड़ने जाना..और हमारा वो भोलापन - कि लौटते वक्त, हमारा और बब्बू भइया (हमारे मौसी के लड़के ) का रुक - रुक के रास्ते में पड़ने वाले हर पेड़ की छाल को कुरेच के निशाँ बनाना - कि जब फिर लौट के आयेंगे तो रास्ता याद रहेगा....
वो गाँव का कच्चा घर... मिटटी का बना चूल्हा ... नानी, मौसी और मम्मी का खुशी से वहीं खाना बनाना...
बिजली का न होना, फिर भी कभी मम्मी या मौसी से ये न कहना कि कोई दिक्कत हो रही है.
वो खुले में निपटने जाना...
हमारा और हमारे बब्बू भइया के साथ, बैल की सहायता से गन्ने का रस निकालना. बैलों का हांकना...
वो नाना का अपने घर की भैंस दुहना...और कड़क आवाज में हमें निर्देश देना...
वो नाना का हुक्का पीना... घर के बरामदे में...
वो नानी का, ताजे ताजे गन्ने के रस से गुड का ताजा गरम गरम खांड तैयार करना और हमारा उसको मजे ले के खाना.
मम्मी का उस दौरान फोटो लेना, सभी की फोटो में कभी सर तो कभी दाहिना कान, तो कभी आधा मुहं, तो कभी सिर्फ़ गर्दन की नीचे का ही फोटो आना.. पर फोटो देख के सभी का हँसना ... किसी को भी इसकी शिकायत न होना...
और फिर कई कोस चल के कच्चे रास्ते से बस पकड़ने जाना..और हमारा वो भोलापन - कि लौटते वक्त, हमारा और बब्बू भइया (हमारे मौसी के लड़के ) का रुक - रुक के रास्ते में पड़ने वाले हर पेड़ की छाल को कुरेच के निशाँ बनाना - कि जब फिर लौट के आयेंगे तो रास्ता याद रहेगा....
अरे भई, बड़ी पुरानी यादों में डुबो दिया..हमें तो आपसे एक आलेख का मैटर मिल गया..आपके साभार जल्दी ही आयेगा. :) धन्यवाद!!
ReplyDeletewaah nanihaal yaad dila diya badi sundar yaadein hai
ReplyDeletemaja aa gaya dost....infact jab in concrete k juncle me rahte hue jada din ho jata hai to mujhe yahi sab cheejen (gaon...nanihaal) yaad aane lagti hai....
ReplyDeletenice article
-on behalf of manish...
हमारी पुरानी यादें भी ताज़ा हो गई आपके संस्मरण पढ़ कर।
ReplyDelete