मैं और मेरी पंचायत. चाहे ऑफिस हो, या हो घर हम पंचायत होते हर जगह देख सकते हैं. आइये आप भी इस पंचायत में शामिल होइए. जिदगी की यही छोटी-मोटी पंचायतें ही याद रह जाती हैं - वरना इस जिंदगी में और क्या रखा है. "ये फुर्सत एक रुकी हुई ठहरी हुई चीज़ नहीं है, एक हरकत है एक जुम्बिश है - गुलजार"


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Saturday, November 8, 2008

शंका का कोई समाधान नहीं

Friends discussing on some topicImage by Google via Images
सोहन: यार, दुनिया में ये इतने विभिन्न प्रकार के इंसान क्यों होते हैं.

निर्मल: क्या मतलब है तुम्हारा?

सोहन: अरे, वो कल तिमालू के यहाँ गया था, वो बड़ा परेशान था. उनके घर में अजीब परिस्थिति है, बच्चे बात नहीं सुनते हैं, इस बात को ले के बहुत परेशान था. कह रहा था, इस बदलती दुनिया में सब बहुत ही स्वार्थी होते जा रहे हैं.

निर्मल: हं, तो ये बात है, मैंने तेरे से कितनी बार कहा है, कि यार शाम के वक्त इस तरह से घरेलू समस्या का जिक्र मत किया करो. जिसके घर की समस्या है, वो अपना समझे, तू इतना टेंशन मत लिया कर.

सोहन: पर यार, अगर तेरे से बात नहीं करूँगा, तो आख़िर दिमाग में जो भी प्रश्न उठते हैं, उसको ले के कहाँ जाऊं.?


निर्मल: अबे, बहुत भोले बन रहे हो.. मैं तेरे को कोई बाबा दिखाई देता हूँ. भाई, मेरी तो कोई सुनता नहीं है, और अगर कोई सुने तो भी मैं भला क्यों बोलूं. वैसे, तू हमेशा से ही जनता है, कि तेरे और मेरे विचार कभी मिलते नहीं हैं... फिर वही बहस हो जायेगी और कोई फायदा नहीं है.

सोहन: हाँ, पर एक बात है, कि आख़िर ऐसा क्यों है, कि मेरी तेरे साथ न जाने कितनी बार बहस हुई है, पर हम लोग फिर बहुत ही जल्दी से वापस उसी तरह से दोस्त बन जाते हैं.

निर्मल: एकदम सही पकडी है बात तुने.. परफेक्ट. बस यही है सारे चीजों का सार.

सोहन: यार, कुछ समझ में नहीं आया... भला मैंने ऐसी कौन सी ज्ञान की बातें कर डाली.

निर्मल: देख, कभी ऐसा होता है, कि अगर जिसे हम प्यार करते हैं, तो अगर वो कभी कुछ ख़राब भी बोल दे, या कभी ग़लत भी कर दे तो हम उसे बड़ी ही आसानी से नजरअंदाज कर देते हैं, है कि नहीं? पर वही बात अगर कभी कोई अनजान या फिर कोई ऐसा जिसके लिए हमारे दिल में वो जगह नहीं है, कह दे, तो फिर देखो.. कैसा भूचाल आता है भीतर.

सोहन: हाँ, सो तो है...

निर्मल: तेरे और मेरे बीच वही होता है. हमारे में वैचारिक विभिन्नता हो सकती है, पर हम जानते हैं, कि हम एक दूसरे का बुरा नहीं चाहते हैं, तो इसीलिए हमारे बीच कभी वो उस तरह का टकराव नहीं होता है. पर हो सकता है कि तिमालू के घर में इस तरह की बात न हो.

सोहन: मैं समझ रहा हूँ, तू फिर से शायद 'शंका का कोई समाधान नहीं' की ओर अपनी बात ले जा रहा है.


"लोग आपकी मान्यता का विरोध कर सकते हैं पर आपके प्रेम का नहीं।"



निर्मल: वाह! यार... एकदम सही... अगर किसी भी तरह से हम लोग, हर दूसरे के लिए अच्छे विचार रखें, और किसी भी तरह की शंका को न बसने दें, तो ये सारी दिक्कतें यूँ ही ख़त्म हो जायेंगी. जब एक बार शंका पैदा हुई, तो सामने वाला एकदम अलग दिखाई देने लगता है. इसका नुकसान भी सबसे ज्यादा हमीं को होता है. क्योंकि असल में आपने अगर शंका पाल बैठी है, तो भइया वो सामने वाले को कैसे पता चलेगा... उसको तो आपको ही निकाल के फेंकना पड़ेगा....

सोहन: हाँ, और इस तरह से वो जो कभी हमारा करीबी था, अब हम उसके बारे में शंकालु निगाह रखने लगते हैं. परिणाम क्या होता है? उसकी कही कोई भी छोटी बात, टेंशन का विषय बन जाती है.

निर्मल: और तुम ही बताओ, अगर तिमालू को लगता है, कि उसे ये समस्या है, तो आख़िर उसका इलाज भी तो उसी के पास है. आख़िर रोग तो उसी का पाला हुआ है. अब अगर उसे कहोगे, कि अपने भीतर से ये सब निकाल दे.. तो पहली बात, कि ये समझाना बहुत मुश्किल है, वो समझेगा या नहीं पर ये तो पक्का है कि तेरा चाय-पानी बंद हो जायेगा... तिमालू के यहाँ.

सोहन: सही कहा यार! वैसे किसी ने कहा है... कि "चीज़ों के उजले पक्ष की तरफ़ देखने से आज तक किसी की भी आँखें ख़राब नहीं हुईं। " बात है, छोटी सी, पर आख़िर समझाए कौन....

निर्मल: बहुत सही कहा सोहन तुने... इसी पे मेरे को याद आता है.. "लोग आपकी मान्यता का विरोध कर सकते हैं पर आपके प्रेम का नहीं। " बात है, छोटी सी, पर आख़िर समझाए कौन....

सोहन: प्रेम से एक बात दिमाग में आती है. यार, लोग कहते हैं कि वो 'प्रेम' करते हैं... पर अगर आप वास्तव में प्रेम करते हैं तो फिर वहां शंका की कोई जगह नहीं होती है.

निर्मल: पर वास्तविकता तो ये है दोस्त, कि हम लोग इसी प्रेम की ढाल बना के 'शंका' को अपने घर में आमंत्रित करते हैं. मन के भीतर शंका अपना खेल दिखाता है, और बाहर हम ऐसा प्रतीत कराते हैं, हाय! कोई मेरा प्रेम, मेरा समर्पण, मेरा सामने वाले के लिए दर्द नहीं समझता !!! शंका हमें नचाती है, हम बेचैन होते हैं, और शंका को बाहर निकाल कर, प्रेम को अन्दर लाने के बजाय हम सामने वाले के बदलने का इन्तेजार करते हैं.

सोहन: ये थोड़ा कठिन हो गया दोस्त...

निर्मल: देख, अगेर तेरे को बहुत ही detail में समझना है तो भगत जी के पास जा. मैं बस यही कह रहा हूँ, कि जैसा गांधी जी ने कहा था.. उसी कि तर्ज पे मैं ये कहता हूँ..

अगर आप मन में बना लो, कि किसी की बुराई न सुनो, न देखो, न कहो. इसी के साथ, न तो किसी के प्रति किसी तरह की शंका अपने मन में लाओ, न तो किसी को शंका की दृष्टी से देखो. सिर्फ़ अच्छाई देखो यार.. बाकी ऊपर वाला सम्भाल लेगा. क्योंकि, हम जैसा देखेंगे, वैसा दिमाग और मन हो जाता है.. सब चीज में अच्छा बुरा दोनों होता है, बस ज़रूरत है सही पहलू की तरफ़ देखने की.

सोहन: तो ऐसे में कोई क्या करे, कि जब आप किसी को बहुत प्यार करें, उसका बहुत ही ख्याल रखें, उसके बारे में हमेशा अच्छा ही सोचें. पर आपको ऐसा लगे कि शायद दूसरा इन चीजों को समझ नहीं पा रहा है. मैंने ऐसा इसलिए कहा, क्योंकि चाहे वो मां- बाप और बच्चे हो, दोस्त हों, आपके प्रेमी-प्रेमिका हों, आपके पारिवारिक सगे -संबन्धी हों, सब जगह लागू होती है. और शायद यही तिमालू के यहाँ की भी समस्या है.

निर्मल: हाँ, वो तो है, कभी-कभी हम लोग किसी से बहुत ही ज्यादा लगाव करने लगते हैं. ये ठीक नहीं है. लगाव की भी अति ठीक नहीं है. हमारा मन स्वार्थी हो जाता है. फिर धीरे धीरे प्रेम का स्थान शंका ले ने लगती है.. डर बैठ जाता है.. किसी को भी अपने जैसा बनाने की कोशिश न करें। भगवान जानता है कि आप जैसा एक ही काफी है।

सोहन: अरे यार, उस दिन, वो हम लोग बात कर रहे थे न....

निर्मल: कौन सी बात यार... दिन भर में छत्तीस तरह की तो पंचायत करते हो.. अब कितना याद रखें...

सोहन: अरे यार ख्वाम्खा गरमा रहे हो मियां... मैं तो बस थोड़ा प्रेम की बात हुई तो उसी से जुडी हुई अपनी पुरानी बात याद दिला रहा था. वो, एक बार खूब बहस हुई थी.. कि अगर हम किसी से प्रेम करते हैं, mind it, सच्चा प्रेम... और कई सालों के बाद, किसी वजह से... हमें एक बार और प्रेम करना पड़ता है... अरे, जीतू भाई का ही ले लो..,(पहला प्यार, वो फ़ुर्सत मे छतियाना, वो फ़ुर्सत मे छतियाना - 2) क्या अदा से उन्होंने अपने प्रथम प्रेम की कहानी लिखी है...

तो सिनेमा और असल जिंदगी, दोनों में यही दिखाया जाता है, कि अगर सच्चा प्रेम है, तो वो जीवन भर नहीं भूलेगा... जीवन-पर्यंत जलना पड़ेगा.. वरना हम ख़ुद ही अपनी नजर में झुक जायेंगे.. क्योंकि, पुराने कवि, शायर, इतिहासकार, सभी ने यही बताया है.. और हम कोई चाँद से तो आए नहीं हैं, अब हम भी तो भूल नहीं न सकते... वैसे मैं कुछ अनुभवी नहीं हूँ, पर.... विचार रखने में बुराई क्या है..... ही ही ही.... वैसे किसी ने सच कहा है.. अगर आपकी कोई प्रेमिका नहीं है तो आपके जीवन में कुछ कमी है। अगर आपकी कोई प्रेमिका है तो आपके जीवन में कुछ नहीं है।

निर्मल: अब यही बात है, तो देखो, हमारे पास दो रस्ते होते हैं, एक तो आप ये कर सकते हैं, कि अपने लोगों के साथ बीताया हुआ अच्छा समय याद करें ... या वर्तमान में साथ न होने का गम मनाएं. यही बात लागू होती है, जब हम अपने परिवार या किसी निकट हितैषी को खो देते हैं.. अक्सर लोग गम इतना ज्यादा मानाने लगते हैं, कि ये भी भूल जाते हैं, कि -- अरे भाई, ये वर्तमान है, इसकी भी अपनी कुछ खुशियाँ हैं, यही कल बीत जायेगा.. और जब चला जायेगा.. तो क्या करोगे... फिर बैठ के गम मनाओगे -- अगर इस वक्त कुछ अच्छा नहीं करोगे... कुछ अच्छे पल को नहीं गुनोगे, तो कल किस सहारे... किन यादों के सहारे जियोगे... हाँ... तुम तो पश्चात्ताप करोगे.. दुःख करोगे...

सोहन: हाँ, यार, इसीलिए बहुत जरूरी है, कि ये वर्तमान जैसा भी है, हमें सिर्फ़ प्रेम करने का संदेश दे रहा है.. किसी कि बुराई मत करो.. किसी भी चीज की शिकायत मत करो.. अगर कुछ उल्टा भी है, जो हमें समझ में नहीं आ रहा है, और अपने पास दो रस्ते हैं, - कि दुखी हो, या फिर, सामने वाले को समझाएं, या फिर ... बस एक ही चीज़ सोचें, कि अगर हमारे साथ कुछ उल्टा भी हो गया है, तो कल जब हमारी समझ में सुधार आएगा, तब यही उल्टी चीजें हमें सीधी दिखने लगेंगे... तो अभी, अपनी नासमझी पे ज्यादा शोक न मानते हुए.. एक उज्जवल कल के लिए.. आज मस्त रहें..

निर्मल- वाह यार, तू तो भगत जी टाइप बातें करने लगा है...

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1 comment:

  1. बिल्कुल सही है..उजला पक्ष देखें और मस्त रहें.

    बहुत उम्दा आलेख.

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