tag:blogger.com,1999:blog-91823723339696191442024-02-20T20:54:19.746+05:30पंचायतनामामैं और मेरी पंचायत. चाहे ऑफिस हो, या हो घर हम पंचायत होते हर जगह देख सकते हैं. आइये आप भी इस पंचायत में शामिल होइए. जिदगी की यही छोटी-मोटी पंचायतें ही याद रह जाती हैं - वरना इस जिंदगी में और क्या रखा है.
"ये फुर्सत एक रुकी हुई ठहरी हुई चीज़ नहीं है, एक हरकत है एक जुम्बिश है - गुलजार"Neeraj Singhhttp://www.blogger.com/profile/15090702370346257018noreply@blogger.comBlogger4913tag:blogger.com,1999:blog-9182372333969619144.post-72423114362861912592020-05-10T22:23:00.001+05:302020-05-10T22:23:13.418+05:30कोविड - एक वायरस है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
कोविड कर के एक वायरस है. वो कहाँ से आया है, किसी को नहीं पता है. वो बेचारा क्या खता पीता है. ये, भी किसी को नहीं पता.<br />
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पर उसके आने से देश दुनिया में एक समता सी आ गई है. बस सब लोग बहुत शांति से रहने लगे हैं. सभी गरीब और कमजोर लगने लगे. अमेरिका को अब ऐसा कोई नया सिनेमा बनाने की जरूरत नहीं, जिसमे वो पूरे विश्व को बचा रहे हो.<br />
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सब लोग मास्क लगते है. कोई बहार नहीं जाता है. ५ साल का बच्चा अब वायरस का मतलब समझने लगा है. हम तो जब कंप्यूटर चलना सीखे तब समझे क्वारंटाइन क्या होता है. उस वक़्त कंप्यूटर के वायरस को एंटी वायरस क्वारंटाइन करता था. कंप्यूटर के मालिक को नहीं. पर अभी ये वाला जो वायरस है, उसमे वायरस को धारण करने वाले को भी क्वारंटाइन करते हैं.<br />
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लोगों को मरना पड़ रहा है. बहुत ही हड़बड़ाहट है. लॉक डाउन है. स्कूल बंद है. पुलिस और डॉक्टर जो फ्रंट पे रह के हम सबको बचा रहे हैं, उनको भी अपने जान देनी पड़ रही है. ऐसा पहले नहीं हुआ.<br />
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आशा करते हैं, आने वाले समय में ईश्वर की कृपा से सब ठीक हो जाएगा. </div>
<div class="blogger-post-footer">http://panchayatnama.blogspot.com</div>Neeraj Singhhttp://www.blogger.com/profile/15090702370346257018noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9182372333969619144.post-2870112755812018402020-05-10T22:15:00.002+05:302020-05-10T22:15:15.271+05:30सम्पत की उलझन <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<span style="font-family: "verdana" , sans-serif;">जब उस दिन रास्ते में संपत से भेंट हुई, तो वो जल्दी में कन्नी काटता हुआ दिखाई दिया। मैंने भी कहाँ छोड़ना था उसे। अरे हम कोई फेसबुक थोड़े ही न हैं कि देखो न देखो तुम्हारी मरजी। बस सस्ती काफी की दूकान के आगे बैठ के शुरू कर दी पंचायत। थोडा खंगाला तो पता चला कि बन्धु इसलिए मुहं लटकाए हैं, कि उनको लगता है,कि कोई उनकी बात नहीं समझता और वो जो भी कुछ करते हैं, उससे किसी न किसी को दुःख जरूर पहुंचता है। </span></div>
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<span style="font-family: "verdana" , sans-serif;">संपत कोई अकेला नहीं है. बहुत से आपको मिल जायेंगे। </span><span style="font-family: "verdana" , sans-serif;">ये बड़ी ही विडम्बना है, कि हमें खुद ही नहीं पता कि आखिर हमें क्या चाहिए। ये ही सबसे बड़ी समस्या की जड़ है। ये मैं नहीं कह रहा, बल्कि कुछ दार्शनिकों ने कहा है, कि बस बढ़ते चलो रास्ता मिल जायेगा. स्थिरता किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकती है. जब भी कभी लगे कि आप दोराहे पे खड़े हैं, तो बस एक रास्ता चुनो और तेजी से उस रास्ते पे चल पड़ो। और इस भागम दौड़ में मिली १० असफलता, वहीँ पुरानी जगह खड़े रह के बेहतर विकल्प की आशा से लाख गुना बेहतर है।</span></div>
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<span style="font-family: "verdana" , sans-serif;">इस हडबडी में अगर कुछ सही या गलत हुआ और अगर कोई दूसरा इससे आहात होता है, तो होने दो. जो आहत होता है, कसूर उसी का है. किसी विद्वान् ने सही कहा है - 'कोई बिना आपकी मर्जी के आपको परेशान नहीं कर सकता'. लेकिन अगर आपको ये लगता है, कि आप इसके लिए जिम्मेदार है, तो इसका मतलब ये है, कि आपको अपने ऊपर भरोसा नहीं है. जब भरोसे की कमी होती है, तो हजार समस्याएं जन्म लेने लगती है। और फंस जाते हैं आप इस गड़बड़ झाले मे। </span><br />
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<div class="blogger-post-footer">http://panchayatnama.blogspot.com</div>Neeraj Singhhttp://www.blogger.com/profile/15090702370346257018noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9182372333969619144.post-26494604341365448562013-01-20T14:10:00.000+05:302013-01-20T23:43:28.481+05:30'का गुरु! हो गईला न बड़ा - मजा आवत ह'<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<table cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container zemanta-img" style="float: right; margin-right: 1em; text-align: right;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><div class="zemanta-img">
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<a href="http://images.zap2it.com/images/tv-EP00569218/cast-of-all-grown-up-5.jpg" imageanchor="1" style="margin-bottom: 1em; margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: clear:right;"><img alt="grown up" border="0" class="zemanta-img-inserted" height="180" src="http://images.zap2it.com/images/tv-EP00569218/cast-of-all-grown-up-5.jpg" style="border: none; font-size: 0.8em;" width="240" /></a></div>
</div>
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</div>
</td></tr>
<tr><td class="tr-caption zemanta-img-attribution" style="text-align: center;">Grown up (Photo credit: <a href="http://images.zap2it.com/images/tv-EP00569218/cast-of-all-grown-up-5.jpg" target="_blank">tvlistings.zap2it.com</a>)</td></tr>
</tbody></table>
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</div>
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<span style="font-family: Verdana, sans-serif;">तब हम बड़े न हुए थे, छोटे बच्चे थे, लम्बाई भी कोई ज्यादा नहीं थी कि लोग बाग़ छोटा न समझें. बहुत जल्दी थी, बड़ा होने की. क्योंकि, अक्सर ऐसा होता था - कि उमर में बड़े भइया, चाचा या फिर पड़ोस में देख के लगता था, कि बड़ा हो जाऊं, तो बस फिर कभी डांट नहीं पड़ेगी.. <b>राय देने की लत तो शुरू से ही थी</b>, पर कभी किसी ने भाव नहीं दिया, छोटा होने के ये सब नुकसान समझ में आते थे... कोई भी काम पड़ा, तो सबसे छोटा होने की वजह से सीधे सबके आर्डर का भरपूर पालन करना पड़ता था.. बड़ी खीज होती थी... लगता था, कब बड़े होंगे.. समय मानो कितना धीरे - धीरे बीत रहा था... </span></div>
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<span style="font-family: Verdana, sans-serif;">और अब बड़े हो गए हैं। बड़े होने का एहसास होते ही वो पुराना बचपन मानो दूर से मुह चिढ़ा के कह रहा हो। <i><b>'का गुरु! हो गईला न बड़ा - मजा आवत ह'</b> - </i>अरे काहे का मजा यार - "जब आप छोटे होते हैं तो बड़े होना चाहते हैं, जब बड़े होते हैं तो छोटे होना चाहते हैं।" मन करता है, कि फिर से कोई डांटे - काम कैसे सही तरह से किया जाता है बताये। और जब गलती हो, तो साथ में खड़ा हो और फिर उसी बचपन की तरह कहे -<b> "गिरते हैं शाह सवार ही मैदाने जंग में, वो तिफ़्ल क्या गिरे जो घुटने के बल चले " </b>अब तो छोटी सी गलती पे मजा लेने वाले ज्यादा हैं और हितैषी कम। कम उम्र में हमारी हर बात पे ध्यान दिया जाता था। बड़े हो जाने पे जब तक आप गलती नहीं करते तब तक कोई आपकी और ध्यान नहीं देता। वाह रे दुनिया का बड़प्पन! जैसे <b>नींबू के शरबत में आर्टीफीशियल फ्लेवर होता है जबकि बर्तन धोने के लिक्विड में असली नींबू डालने का दावा करते हैं</b>। अरे मैं कहता हूँ, कहे किसी की गलती पे हंसिये मत, उसे शर्मिंदा मत करिये बल्कि गले लगा लिजीए । <i style="font-weight: bold;">किसी को गले लगाना </i><i style="font-weight: bold;"> सर्वोत्तम उपहार है - एक ही साइज़ सभी को फिट आता है और एक्सचेंज करने में भी कोई समस्या नहीं होती। </i>और याद रखिये लोग आपकी मान्यता का विरोध कर सकते हैं पर आपके प्रेम का नहीं। भगवान हमारे हांथों से ही अपने बच्चों को गले लगाता है।</span></div>
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<span style="font-family: Verdana, sans-serif;">उम्र के साथ साथ प्रेमिका और शादी की बाते भी उठाने लगती हैं। अगर आपकी कोई प्रेमिका नहीं है तो आपके जीवन में कुछ कमी है, लोग ऐसा आपको बताएँगे। और अगर आपकी कोई प्रेमिका है तो आपके जीवन में कुछ नहीं है ऐसा आपको एहसास होगा। पर सौ बात की एक बात है, कि आप परेशान न हों और <b>अपनी परेशानियों से दूर न भागें, क्योंकि जब वे आपको पकड़ेंगी तब आप उनसे भागते-भागते थक चुके होंगे</b>। </span><span style="text-align: left;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">अब्राहम लिंकन ने कहा है कि यदि किसी व्यक्ति के चरित्र की दृढ़ता आंकना चाहते हों तो उसे शक्तियां और अधिकार दे दें। - मैं कहता हूँ, कि यदि आपको किसी का कुछ भी आंकना है तो उसको एक प्रेमिका दे दें जो कि बाद में उसकी बीवी बने। <b>शादी </b></span></span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><b>वह क्षण है जहाँ आप यह नहीं कह सकते - "चलो सब कुछ भूल जाते हैं".</b></span></div>
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<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br /></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><b>योग्यता आपको शिखर तक ले जा सकती है पर आपका चरित्र आपको वहां बनाये रखता है</b>। </span><span style="text-align: left;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">किसी भी संवाद में सबसे ज़रूरी है वह सुनना जो कहा नहीं जा रहा हो। अपने कार्यस्थल पर हमें उनके प्रति आदर और समर्पण दिखाना चाहिए जो उपस्थित नहीं हैं, इस प्रकार हम उनका विश्वास प्राप्त कर लेते हैं जो उपस्थित हैं। इसका मतलब ये नहीं कि आप झूठी प्रशंशा कीजिये। </span></span></div>
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<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br /></span></div>
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<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><b>इन दिनों हम ऐसी चीज़ों को खरीदना चाहते हैं जिनकी हमें ज़रूरत नहीं हैं, ऐसे धन से खरीदना चाहते हैं जो हमारे पास नहीं है, और उन लोगों को दिखाने के लिए खरीदना चाहते हैं जिन्हें हम पसंद नहीं करते।</b> वाह रे मुर्खता! </span><span style="text-align: left;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">मूर्ख लोग जब एक समूह बनाकर खड़े हों तो उनकी ताक़त को कम न आंकें। और हाँ </span></span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">किसी को भी अपने जैसा बनाने की कोशिश न करें। भगवान जानता है कि आप जैसा एक ही काफी है। फिर भी कहूँगा कि</span></div>
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<span style="font-family: Verdana, sans-serif;">चीज़ों के उजले पक्ष की तरफ़ देखने से आज तक किसी की भी आँखें ख़राब नहीं हुईं और जैसा कि </span><span style="text-align: left;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">एलिअनोर रूजवेल्ट ने कहा है कि आपकी </span></span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">अनुमति के बिना कोई भी आपको छोटा नहीं बना सकता तो बस बड़े होने पे इतना भी गम मत करिए। जरा उस </span><span style="text-align: left;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">शराबी के बारे में विचार करिए जो कि वही सब बकता है जो शराब न पीनेवाले सोचते हैं।</span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="text-align: left;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">मस्त रहिये। </span></span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">एक दिन आएगा जब आपकी ज़िंदगी आपकी आंखों के सामने एक फ़िल्म की तरह दिखेगी, इसलिए एक बेहतर ज़िंदगी जियें। इटालियन कहावत है कि -<b> शतरंज का खेल ख़त्म हो जाने पर राजा और पैदल सिपाही एक ही डब्बे में चले जाते हैं</b>। अतः हमें सदैव उदार और दयालु होना चाहिए - चार चींटियाँ जंगल से गुजर रही थीं। उन्होंने एक हाथी को आते देखा। पहली चींटी बोली - "इसे ख़त्म कर देते हैं"। दूसरी चींटी बोली - "इसकी टांग तोड़ देते हैं"। तीसरी चींटी बोली - "इसे उठाकर फेंक देते हैं"। चौथी चींटी बोली - "इसे जाने दो यार, ये अकेला है और हम चार"।</span></div>
</div><div class="blogger-post-footer">http://panchayatnama.blogspot.com</div>Neeraj Singhhttp://www.blogger.com/profile/15090702370346257018noreply@blogger.com2