मैं और मेरी पंचायत. चाहे ऑफिस हो, या हो घर हम पंचायत होते हर जगह देख सकते हैं. आइये आप भी इस पंचायत में शामिल होइए. जिदगी की यही छोटी-मोटी पंचायतें ही याद रह जाती हैं - वरना इस जिंदगी में और क्या रखा है. "ये फुर्सत एक रुकी हुई ठहरी हुई चीज़ नहीं है, एक हरकत है एक जुम्बिश है - गुलजार"


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Monday, September 22, 2008

मैं पंचायत नहीं कर पा रहा हूँ.

My PanchyatnamaImage via Google Image Search
मैं अब और नहीं रोक सकता. पता नहीं क्या हुआ है, जब से देश से कुछ समय के लिए बाहर आना हुआ है. नहीं, नहीं, मेरे को देश निकाला नहीं दिया गया है. पर ये कुछ कम टोर्चेर नहीं है मेरे साथ. साला एक होटल के कमरे में बंद कर के रख छोडा है, मेरी सारी रचनात्मत्कता (creativity) की वाट लगा दी. मैंने भी इसका करार जबाब देने की सोची है. आख़िर कब तक मैं पंचायत से दूर रह सकता हूँ.

लोगों ने सलाह दी, अंग्रेजों को फंसाओ. अरे यार, उन लोगों का नाम मत लो. एकदम मुश्किल काम है. उन लोगों के मजाक करने के तरीके या यूँ कहिये की पंचायत करने के तरीके थोड़ा अलग हैं. पर अगर पानी सर के ऊपर से निकल गया तो मैं उसे भी अपनाऊंगा. अभी तो मैं एक काम कर रहा हूँ, वो ये है की, सबसे पहले हिन्दी में लिख कर ही अपने देशी भाइयों और .... से संपर्क साबित करना चाहता हूँ. फिर आख़िर मैं भी इंसान हूँ.

पंचायत बैठ चुकी थी मेरे घर पे. सारे फुरसतिया लोग जिनको शनिवार - रविवार को सड़कों और शौपिंग सेण्टर के बजाय अपने या किसी के घर, या चाय की दुकाने ज्यादा रास आती हैं, वो अपनी जगह ले चुके थे. मैंने भी चाय पानी का इंतजाम कर के माहौल बनने में कोई कसर नहीं रख छोडी थी. महफ़िल धीरे - धीरे रंग में आ रही थी. आज चर्चा का विषय था - बदलता समय और उसकी चुनौतियां. सभी हम उम्र लोग ही थे और सबके अपने - अपने विचार. मैंने भी अपने अनुभव के आधार पे कुछ बातें रखीं. जब लोग एकदम चुपचाप होके मेरी बात सुन रहे होते हैं, तो मैं बीच में अक्सर पूछ लिया कहता हूँ, कि जनाब! बताएं अभी - अभी मैंने क्या कहा. ये लोगों को नींद से जगाये रखने के लिए बहुत ही जरूरी है.

इस तरह की मीटिंग का कोई अंत नहीं होता है. सभी सम्मिलित लोग जानते हैं कि ये एक पूरा टाइम पास का जरिया है. पर फिर भी ये एक ऐसा नशा है, कि एक बार लग जाए तो बस पूछो मत. अक्सर हमारे अन्दर का समझदारी का कीडा किसी को काटने के लिए बेचैन रहता है. ऐसे मंच पे कही गई बात को कभी कोई सीरियसली नहीं लेता है, पर फिर भी कई बार ऎसी बातें हो जाती हैं जो आपके जीवन को बदल सकती हैं.

तो ये रही मेरी इस ब्लॉग की शुरुवात. मैं वैसे काफी समय से इंग्लिश में ब्लॉग्गिंग कर रहा हूँ. और अब आज से सिर्फ़ हिन्दी में ब्लॉग के लिए मैंने इसे मध्यम बनाया है. देखिये - कैसा रहता है ये सफर.
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2 comments:

  1. हिन्दी चिट्ठाजगत में स्वागत है।

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  2. स्वागत है मित्र..नियमित लिखिये.

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विचारों को पढने और वक्त निकाल के यहाँ कमेन्ट छोड़ने के लिए आपका शुक्रिया

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