अभी मैं जात-पात के बारे में कुछ लिखना चाह रहा था। मेरे दिमाग में ये ख्याल काफी दिनों से है, की आख़िर ये जात-पांत के नियम कानून हर धर्म में इतने कड़े क्यों बनाये गए हैं। मेरे पास कुछ जबाब नहीं है, बल्कि कुछ प्रश्न हैं।
मैंने ध्यान दिया है, की अगर आप हिंदू हैं और अगर आपको किसी ने ईसाई बना दिया है, यानी की आपका धर्म - परिवर्तन कर दिया है, तो तमाम ऐसे नियम कानून हैं, हिंदू धरम में , और वो कुछ पूजा पाठ करते हैं, और फिर बस आप वापस हिंदू बन जाते हैं। हमारा संविधान भी शायद इस पंचायत के बारे में ज्यादा कुछ नहीं कर सकता है।
मैं सवाल ये कर रहा हूँ, की क्या कोई ऐसा नियम - कानून है, की अगर मैं एक जाती का हूँ, तो कुछ पूजा पाठ करवा के अपनी ज़ाति बदल दूँ। काश की ऐसा हो पाता, तो न जाने इस देश ही नहीं, बल्कि इस विश्व से एक बहुत बड़ी समस्या का अंत हो जाता। सवाल बहुत ही सीधा है, अगर धरम को बदल का एक इंसान वापस आ सकता है। धर्म इसकी इजाज़त देता है, तो आख़िर जाति - परिवर्तन क्यों नहीं स्वीकार सकते हैं हम लोग। बड़ा अजीब नियम है ये भाई। मेरी समझ में तो नहीं आता है। बस अपनी सुविधा-अनुसार लोगों ने बना रखा है। न जाने कितनी बार, संहार हुआ है, लड़ाईयां हुई हैं , एक नस्ल को मिटने में। और न जाने अभी ये सब कब तक चलेगा.
मैं हमेशा एक पंक्ति दोहराता हूँ।
जिंदगी बहुत छोटी है मोहब्बत के लिए,
न जाने लोग कैसे निकाल लेते हैं वक्त नफरत के लिए
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