Pardon Us (Photo credit: Wikipedia) |
एक दिन की बात है, 'क्षमा' मेरे सपने में आई. उसको मुझसे कई शिकायत थी. मैंने कहा ठीक है, कहो तुम भी, मैं क्या कर सकता हूँ. जरूरी होगा तो माफी मांग लूँगा. बस बात वहीँ बिगड़ गई. क्षमा ने गरजते हुए कहा की बस मेरी सारी शिकायत की जड़ यही है की तुमने मेरे को अपने बाप का माल समझ रखा है - जहाँ जरा सी बात बिगड़ते देखते हो - तुंरत 'क्षमा' मांग लेते हो. ये क्या बात हुई? मैंने उसे प्यार से समझाने की कोशिश की -देखो! गुस्सा मत हो, मुझको 'क्षमा' कर दो. बात कुछ बनती नहीं दिख रही थी. थोडी देर शांती बनी रही. फिर मैंने थोड़ा साहस दिखाते हुए पुछा - और बताओ मैं तुम्हारी कैसे मदद कर सकता हूँ. क्या कोई जरीया है, जिससे मैं तुम्हारी उलझन दूर कर सकूं? 'क्षमा' उसी प्रकार चुप रही. फिर मैंने चुप्पी तोड़ते हुए कहा. देखो मैं हिसाब किताब का बहुत पक्का हूँ. मैंने जितनी बार क्षमा ली है, उससे न जाने कितनी बार दूसरों को बिना मांगे क्षमा दी भी है. तो हिसाब बराबर हुआ की नहीं?
मेरी बात सुनकर 'क्षमा' ने मुस्कुराते हुए कहा - वाह! गुरु, मुझे गणित मत समझाओ. आख़िर मैं इतनी भी बेवकूफ नहीं हूँ. मैं तुम्हारा खाता देख के बता सकती हूँ, तुमने मेरे ('क्षमा') नाम पे न जाने कितनो को क्षमा किया है. और ज्यादातर समय तुमने बड़ी ही चालाकी से बिना सामने वाले को प्रकट किए ही मन ही मन उसको क्षमा कर दिया है. वाह! भाई वाह! तुमने ये काम न जाने कितनी बार, इतने सफाई से किया है, की किसी को कभी पता ही नहीं चला - और उसकी गिनती तुम्हारे हिसाब - किताब के बहीखाता में भी नहीं है.
और तुम क्या सोचते हो? की मैं बेवकूफ हूँ. तुम इस तरह से मेरे ('क्षमा') को दूसरों को दे के अपना खूब भला कर रहे हो. और मेरे को अपनी इमानदारी के किस्से सुना रहे हो. अपने मानसिक शांती का तुमने बड़ा ही बढियां तरीका खोज निकला है. आज मैं उसी सब का हिसाब किताब करने आई हूँ. अब मैं बुरी तरह फंस चुका था. अच्छा हुआ तभी मेरी नींद खुल गई. वरना आज तो 'क्षमा' से जीतना मुश्किल था.
मेरी बात सुनकर 'क्षमा' ने मुस्कुराते हुए कहा - वाह! गुरु, मुझे गणित मत समझाओ. आख़िर मैं इतनी भी बेवकूफ नहीं हूँ. मैं तुम्हारा खाता देख के बता सकती हूँ, तुमने मेरे ('क्षमा') नाम पे न जाने कितनो को क्षमा किया है. और ज्यादातर समय तुमने बड़ी ही चालाकी से बिना सामने वाले को प्रकट किए ही मन ही मन उसको क्षमा कर दिया है. वाह! भाई वाह! तुमने ये काम न जाने कितनी बार, इतने सफाई से किया है, की किसी को कभी पता ही नहीं चला - और उसकी गिनती तुम्हारे हिसाब - किताब के बहीखाता में भी नहीं है.
और तुम क्या सोचते हो? की मैं बेवकूफ हूँ. तुम इस तरह से मेरे ('क्षमा') को दूसरों को दे के अपना खूब भला कर रहे हो. और मेरे को अपनी इमानदारी के किस्से सुना रहे हो. अपने मानसिक शांती का तुमने बड़ा ही बढियां तरीका खोज निकला है. आज मैं उसी सब का हिसाब किताब करने आई हूँ. अब मैं बुरी तरह फंस चुका था. अच्छा हुआ तभी मेरी नींद खुल गई. वरना आज तो 'क्षमा' से जीतना मुश्किल था.
सुधीश पचौरी से बच कर रहियेगा।
ReplyDeleteशुक्रिया
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