पंचायत बैठ चुकी थी मेरे घर पे. सारे फुरसतिया लोग जिनको शनिवार - रविवार को सड़कों और शौपिंग सेण्टर के बजाय अपने या किसी के घर, या चाय की दुकाने ज्यादा रास आती हैं, वो अपनी जगह ले चुके थे. मैंने भी चाय पानी का इंतजाम कर के माहौल बनने में कोई कसर नहीं रख छोडी थी. महफ़िल धीरे - धीरे रंग में आ रही थी. आज चर्चा का विषय था - बदलता समय और उसकी चुनौतियां. सभी हम उम्र लोग ही थे और सबके अपने - अपने विचार. मैंने भी अपने अनुभव के आधार पे कुछ बातें रखीं. जब लोग एकदम चुपचाप होके मेरी बात सुन रहे होते हैं, तो मैं बीच में अक्सर पूछ लिया कहता हूँ, कि जनाब! बताएं अभी - अभी मैंने क्या कहा. ये लोगों को नींद से जगाये रखने के लिए बहुत ही जरूरी है.
इस तरह की मीटिंग का कोई अंत नहीं होता है. सभी सम्मिलित लोग जानते हैं कि ये एक पूरा टाइम पास का जरिया है. पर फिर भी ये एक ऐसा नशा है, कि एक बार लग जाए तो बस पूछो मत. अक्सर हमारे अन्दर का समझदारी का कीडा किसी को काटने के लिए बेचैन रहता है. ऐसे मंच पे कही गई बात को कभी कोई सीरियसली नहीं लेता है, पर फिर भी कई बार ऎसी बातें हो जाती हैं जो आपके जीवन को बदल सकती हैं.
हिन्दी चिट्ठाजगत में स्वागत है।
ReplyDeleteस्वागत है मित्र..नियमित लिखिये.
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