मैं और मेरी पंचायत. चाहे ऑफिस हो, या हो घर हम पंचायत होते हर जगह देख सकते हैं. आइये आप भी इस पंचायत में शामिल होइए. जिदगी की यही छोटी-मोटी पंचायतें ही याद रह जाती हैं - वरना इस जिंदगी में और क्या रखा है. "ये फुर्सत एक रुकी हुई ठहरी हुई चीज़ नहीं है, एक हरकत है एक जुम्बिश है - गुलजार"


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Thursday, September 25, 2008

माँ तुमको नमन

The five principal characters during an argume...
The five principal characters during an argument. Episode: "The Can Opener" (Photo credit: Wikipedia)

माँ के पास हर समस्या की कुंजी होती है. हम चाहे जितने भी बड़े हो जाएँ, हमारी शादी हो जाए, बच्चे हो जाएँ - पर हमारी जिंदगी के हर मोड़ पे माँ हमेशा उसी तरह हमारी सहायता को तैयार रहती है, जैसे जब हम छोटे थे. उसके बच्चे उसके लिए दुनिया के सबसे अच्छे बच्चे होते हैं. यही से बच्चों में अपने पर विश्वास होता चला जाता है. जब भी कभी हम हारा और थका हुआ महसूस करते हैं. माँ का सहारा सबसे बड़ा सहारा बनता है.

माँ पता नहीं किस मिटटी की बनी होती है. कभी बच्चे उसका दुःख न भी पूछें तो भी वो कभी पलट के बच्चों पे अपना हक नहीं जताती. बस वो तो दूर से ही बच्चों को खुश और तरक्की करते देख के खुश होती है. खास बात ये है की कभी मैंने शिकायत करते नहीं सुना है. ऐसा नहीं की बच्चो में कोई कमी नहीं होती है. बस माँ की आँखें हमेशा अच्छी चीजें ही देखती हैं. ये एक बहुत ही बड़ा 
गुण् है.

माँ के बारे में एक और ख़ास बात ये है, की चाहे आप किसी भी नस्ल के हों, दुनिया के किसी भी भाग में हों. माँ कहने पे लोगों में उसी प्रकार का आदर भाव प्रकट होता है. मेरे को याद है, की मैं एक सीरियल देख रहा था. ये एक अमेरिकन फॅमिली का कॉमेडी ड्रामा था. मेरे को बहुत ही पसंद है. धारावाहिक का नाम है - 'Everybody Loves Raymond' - इसी की एक कड़ी में नायक को दिखाया जाता है, की वो बहुत ही परेसान है,. कारण कि - शहर कि एक हस्ती है, और वो उससे hate (घृणा) करता है. तो ये एकदम कॉमेडी सीन है. दिखाया जाता है, कि किस तरह से उसकी बीवी और दोस्त उसको कंसोल (समझाने ) की कोशिश कर रहे हैं. फिर सीन आगे बढ़ता है. बगल में ही उसके माँ बाप का भी घर है. अगले सीन में वो हताश सा अपने माता - पिता के घर में बैठा है. अब देखिये - उसकी माँ लगातार पूछती है, बोलो Ray (नायक का नाम रे है ) , क्या बात है. अब नायक सोच रहा है, कि मैं माँ को क्या बताऊँ - वो क्या समझेगी. पर नहीं .. माँ को तो जैसे संतोष ही नहीं, जब तक वो ये जान न ले. अरे भाई जबकि नायक कोई छोटा बच्चा तो है नहीं. फिर वो बताता है, कि फलां आदमी है, और उसको पता चला है कि वो उसको घृणा करता है, और वो इस बात को सोच के बहुत ही परेसान है. माँ बोलती है, बस! ले आ, मेरे को नम्बर दे मैं २ मिनट उससे बात करुँगी और सब ठीक हो जायेगा. नायक कहता है, नहीं माँ रहने दो.. माँ फ़ोन तक पहुँच के एकदम बेझिझक फ़ोन उठा भी लेती है. पर फिर अपने लड़के के जोर देने पे माँ जाती है. पर फिर भी वो अपने बच्चे को बताती है, कि बेटा कोई तुमसे घृणा कर ही नहीं सकता है. तू परेसान मत हो. अब आप ही बताइये, न तो उसकी माँ अपने बच्चे के ऑफिस के बारे में जानती है, न तो वो किससे बात करने जा रही है, उसी को जानती है, पर वो हर तरह और हर परिस्थितियों के लिए तैयार है. है न माँ एकदम अलग.

ध्यान देने कि बात ये है, कि ये एक अमेरिकन फॅमिली के घर का चित्रण है. हमें अपने देश में ऐसे सीन हमेशा देखने को मिल जाते हैं. तो माँ हमेशा हर जगह एक है. बस महसूस करिए. माँ का दिल वही है. अब आपने देखा होगा, कि माँ किसी भी हद तक जा सकती है, अपने बच्चों के दुःख को दूर करने के लिए. अपने बच्चों का उतरा हुआ चेहरा देख कर ही माँ को सबसे ज्यादा दुःख होता है. अगर हम खुश रहें - तो शायद माँ खुश रहेगी.

एक और किताब पढ़ रहा था, जो एक सफल व्यक्ति कि जीवनी पे आधारित थी. एक जगह लिखा है - लेखक, जो कि एक प्राइवेट कंपनी में काफी बड़े ओहदे पे काम करता है, वो फ़ोन पे अपने बॉस से बात कर रहा है, और इतना उखड जाता है, कि बस वो सोच लेता है, कि अब बस और नहीं हो पायेगा. आगे कभी वो अब वहां काम नहीं कर पायेगा. वहीँ उसकी माँ भी रहती है, वो उसको समझाती हैं, और वो उनकी सलाह पे काम करता है. उन्होंने आगे लिखा कि, वो अगले दिन बॉस से मिलते हैं और फिर से 
नई शुरुवात होती है. और माँ कि सलाह उनके बहुत काम आती है. आगे जा के उन्होंने एक किताब लिखी जिसमें उन्होंने अपनी माँ के ऊपर २-३ चैप्टर में बहुत ही बढियां वर्णन किया है. उनके संघर्स और हार न मानाने कि पूरी कहानी है.

ऐसे ही न जाने कितने ही किस्से हैं - माँ के बारे में. बस जो समझ में आया लिख दिया.

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विचारों को पढने और वक्त निकाल के यहाँ कमेन्ट छोड़ने के लिए आपका शुक्रिया

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