
वो तो आज उन लौंडों का दिन ख़राब था, की दरोगा जी अपने कारिंदों के साथ बगल में पुरानी चुंगी पे अपनी जीप किनारे लगा के चाय की चुस्कियां ले रहे थे. अब जीप धीरे -धीरे करीब आई और दो चार सिपाही उतरे और दो लोग दबोचा गए. वो बेवकूफ लोग सेंटी हो के आपस में ऐसे उलझे हुए थे कि उनको पता ही नहीं चला कि कब वो थाने पहुँच गए. अब बात मोहल्ले वालों से उनके घर वालों तक पहुँची. पुलिस में जाना अच्छा नहीं समझा जाता है. वैसे भी पुलिस के पास थाने में इतनी जगह नहीं होती कि वो लोगों को वहाँ ले जाए. दूसरी बात ये कि वो आम जनता को तकलीफ में नहीं डालना चाहती है. क्योंकि आम थाने की बनावट ऐसी होती है, कि उसमें हवालात के अन्दर और बाहर बाहर रहने में ज्यादा अन्तर नहीं होता है. और पुलिस में होकर वैसे ही वो परमानेंट सरकारी सजा भोग रहे होते हैं. अब जनता वहाँ जायेगी और उनकी हालत पे तरस खायेगी - ये उनको अच्छा नहीं लगेगा.
एक बार मैं अपनी रामप्यारी को सरपट दौड़ा रहा था, कि तभी मेरे को हाथ दिखा के रोक दिया गया. ये बंगलोर था और अपनी स्पीड नापने वाली मशीन से लैस नागरिकों की सुविधा के लिए तत्पर पुलिस फोर्स का एक दल था. जो दोपहर के वक्त अपने मिशन पे लगा हुआ था. मुझे गाड़ी किनारे खड़ी करने का निर्देश मिला और एक सिपाही ने तत्परता से मेरे गाड़ी की चाभी निकाल के अपने पास रख ली और मुझे उस मशीन की तरफ़ भेजा गया, जहाँ एक पुलिसवाला उस दूरबीन जैसे मशीन में कुछ तांक-झाँक कर रहा था. उसने कहा - 'देखो'. मैंने अपनी गर्दन अन्दर घुसाई तो दिखा की मेरी रामप्यारी जो कि 48 कि.मी. प्रति घंटे की रफ़्तार से मेरे को बैठा के रोड पे दौड़ रही थी - ये उसकी और मेरी तस्वीर थी. मेरे को बताया गया, की मैंने ४५ कि.मी. प्रति घंटे के ट्रैफिक नियम का उल्लंघन किया है. मैंने कहा सर - थोड़ा सा ही तो ज्यादा है.. प्लीज़ - पर बात न बनी तो मैंने ३०० रुपये सरकारी खाते में जमा करा के आगे बढ़ा. मैंने मन ही मन सोचा की वाह भाई.. क्या तत्परता है... बहुत जल्दी ही बंगलोर से सारी ट्रैफिक समस्या ख़त्म हो जायेगी. लोग बिना बात का ही पुलिस को दोष देते हैं.
अगर आपको हमारी पुलिस और उसकी दिलेरी पे संदेह हो तो आप - ये तस्वीर जरूर देखें. एक अकेला पुलिसवाला अकेले एक डंडा और एक ईंट का पत्थर लिए पूरी भीड़ का अकेले ही सामना कर रहा है - कोई शक ?