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पहिये के बाद, दूसरा सबसे बड़ा आविष्कार..ईमेल
जी ये न्यूयार्क टाईम्स की रिपोर्ट या फिर किसी नोबेल प्राइज़ विजेता की किताब के पन्नों से लिया गया वक्तव्य नहीं है.. ये पूर्णतया देशी पंचायतनामा की पेशकश है... जब हम पढ़ाई करते थे, तो एक बार माट्साब ने एक सवाल पूछा - कि बताओ, अभी तक की सबसे बड़ी खोज क्या है... बहुतों ने जबाब दिया.. हमने माट्साब के जबाब का इन्तेजार किया .. उन्होंने कहा.. 'पहिया'. तब तो मैं जबाब नहीं दे पाया था.. पर अभी मैं पूरी तरह से तैयार हूँ. कि अगर पहिया के बाद का कोई दूसरा सबसे बड़ा आविष्कार है, तो वो है ईमेल.
ईमेल एक ऍप्लिकेशन नहीं है, बल्कि, एक नशा है. हमें याद है - १९९९ में मैंने अपना पहला ईमेल आईडी बनाने का प्रयास किया था. कंप्यूटर की पढ़ाई थी और उसी की लैब क्लास थी. हमें अभी भी याद है, कि जब क्लास में सर ने पहली बार ईमेल क्या है और कैसे काम करता है, के बारे में बताया था.. तो जान कर बड़ी हैरानी हुई थी. फिर उन्होंने बड़ी ही अदा से अपने पर्स में से अपना विजिटिंग कार्ड निकाला और दिखाया कि उनका एक ईमेल आई-डी है. हम आगे बैठते थे और उन चंद खुशनसीबों में थे, जिन्होंने पहली बार कोई ईमेल आई-डी देखा था.
जी ये न्यूयार्क टाईम्स की रिपोर्ट या फिर किसी नोबेल प्राइज़ विजेता की किताब के पन्नों से लिया गया वक्तव्य नहीं है.. ये पूर्णतया देशी पंचायतनामा की पेशकश है... जब हम पढ़ाई करते थे, तो एक बार माट्साब ने एक सवाल पूछा - कि बताओ, अभी तक की सबसे बड़ी खोज क्या है... बहुतों ने जबाब दिया.. हमने माट्साब के जबाब का इन्तेजार किया .. उन्होंने कहा.. 'पहिया'. तब तो मैं जबाब नहीं दे पाया था.. पर अभी मैं पूरी तरह से तैयार हूँ. कि अगर पहिया के बाद का कोई दूसरा सबसे बड़ा आविष्कार है, तो वो है ईमेल.
ईमेल एक ऍप्लिकेशन नहीं है, बल्कि, एक नशा है. हमें याद है - १९९९ में मैंने अपना पहला ईमेल आईडी बनाने का प्रयास किया था. कंप्यूटर की पढ़ाई थी और उसी की लैब क्लास थी. हमें अभी भी याद है, कि जब क्लास में सर ने पहली बार ईमेल क्या है और कैसे काम करता है, के बारे में बताया था.. तो जान कर बड़ी हैरानी हुई थी. फिर उन्होंने बड़ी ही अदा से अपने पर्स में से अपना विजिटिंग कार्ड निकाला और दिखाया कि उनका एक ईमेल आई-डी है. हम आगे बैठते थे और उन चंद खुशनसीबों में थे, जिन्होंने पहली बार कोई ईमेल आई-डी देखा था.
फिर लैब की क्लास में ऐसा मजमा लगा कि लोग पिल पड़े. http://www.yahoo.com/ जी हाँ, आज भी याद है, पूरा क्लास अगले ३ लैब क्लास्सेस में अपना ईमेल आई-डी बनाने में जुटा रहा. क्या लगन थी - हमारा भी पहला ईमेल-आई-डी तीन दिन के अथक प्रयास के बाद बना. कारण ये कि, १९९९ में एक तो स्लो इन्टरनेट कनेक्शन और उसमें पूरा क्लास एक ही वेबसाइट के पीछे पड़ा था.. भाई.. माट्साब ने कोई दूसरी वेबसाइट बताई ही नहीं, तो लोग खोलते कैसे.
थोड़े दिनों, के बाद जब थोड़ी और समझ आई, तो पहला सवाल मैंने ये पूछा (याद नहीं है कि किससे पूछा था ) कि भाई ये मेल में CC और BCC क्यो होता है. जबाब आया, कि अगर किसी का ईमेल आई-डी CC/BCC में रखेंगे तो वही मेल सारे लोगों को चली जायेगी. उस वक्त के मेरे ज्ञान के हिसाब से मेरे को ये बात बहुत ही अटपटी लगी.. कि ये क्या समझदारी की बात हुई, भला हम एक ही बात पहले तो कई लोगों से क्यों कहेंगे.. और अगर कहेंगे तो फिर TO में ही रख के भी तो कह सकते हैं, ये एक्स्ट्रा पंचायत करने की क्या जरूरत है. बहुत दिनों तक इसकी महिमा का पता नहीं चला.
फिर १ वर्ष की पढ़ाई के लिए बंगलोर आना हुआ.. वहां लोगों ने लैब में लाइनक्स (LINUX) रखा था. तो ईमेल की एक रेडीमेड सुविधा थी - नाम था उसका 'पाइन' (PINE). ये टेक्स्ट आधारित ईमेल प्रोग्राम था. क्या सुपर स्पीड थी.. वहीँ से नशा लगा ईमेल का तो अभी आज तक नहीं छूटा है. ईमेल - आई-डी (d0253102@ncb.ernet.in) बड़ी ही चिरकुट थी. पर क्या बला की स्पीड थी. लोग दो लाइन प्रोग्राम लिखते तो ४ बार बीच में मेल खोलते थे. शुरुवाती तीन महीने मानो काले पानी की सजा माफिक सिर्फ़ कीबोर्ड और काली स्क्रीन. न तो माउस दिया गया और न ही विन्डोज़..जब चौथे महीने विन्डोज़ के दर्शन हुए तो लगा कि स्वर्ग में आ गए हैं. पर फिर भी ईमेल का ये मजेदार दौर पूरे एक वर्ष चला. फिर वहीँ से नौकरी लग गई.. फिर ईमेल का सबसे रोचक दौर चालू हुआ.
अब ऑफिस की एक हमारे नाम की ख़ुद की ईमेल आई-डी थी. क्या सही लगा देख के. पहली बार मेरा फर्स्ट और लास्ट नेम पूरा लिखा था ईमेल आईडी में. जितनी बार देखो मन नहीं भरता था. आपको आश्चर्य हो रहा है. अरे कभी आपने मेरा दर्द देखा होता, तो न जानते.. जब मैंने अपने पहली ईमेल - आई-डी बनाई थी, तो तीन दिन के अथक प्रयास के बाद जो निकल के आई, कि उसमें 'नीरज' - की जगह मैंने 'नीरा_सिंग' से काम चलाया था. कितना दर्द होता था.. जब मैं नीरज से नीरा बना था.. तो मैं कह रहा था, कि बड़ा मुश्किल था कोई ऐसा ईमेल होना जिसमें आपका पूरा नाम आराम से आ जाए.. तो बड़ा सम्मान महसूस हुआ.. शायद उतना ही.. जितना हमारे माट्साब को किसी ज़माने में हुआ होगा, जब उन्होंने सारी क्लास के सामने अपना ईमेल आई-डी अंकित विजिटिंग कार्ड लहराया था..
जैसे जैसे दौर आगे बढ़ा.. लोगों का ईमेल का जूनून बढ़ता गया.. अब धीरे - धीरे मुझे CC/BCC का मतलब समझ में आने लगा. बाकी कुछ तो ऐसा समझ में आया, कि अगर CC/BCC न होता तो ऑफिस में लोग मेल कैसे करते. ऑफिस में बड़ा महत्व है कि आप किसको सीसी में रख के मेल करते हैं, उसी के हिसाब से मेल की वेलू घटती - बढ़ती रहती है. जैसे अगर आपने सीसी में बड़े ओहदे के साहब का ईमेल आई-डी दाल दिया तो मायने बदल जाया करते हैं. हमारे कितने बड़े बड़े ओहदे पे बैठे हुए लोग हैं, जो कि दिन भाई बस मेल के जरिये ही संवाद करते हैं और वही उनका सारा काम चलाता है.. ईमेल चला गया, तो वो बाकी अपनी जीविका कैसे चलाएंगे.. फिर ईमेल के अपने बहुत से फायदे हैं, वो आपको पता हैं.
बहुत जल्दी ही ईमेल ने हमारी दिनचर्या में एक अहम् जगह बना ली है.
कुछ सालों पहले विश्व के बहुत सारे चिंतकों, वैज्ञानिकों, आदि से सबसे महान आविष्कार के बारे में पूछा गया. जानते हैं किस चीज़ को सबसे महान अविष्कार माना गया?
ReplyDelete'कंटीले तारों की बाड़ को' जिसने विश्व का अरबों टन अनाज अब तक चरे जाने से बचाया है.
धन्यवाद् निशांत जी. इसी बहाने ये महत्वपूर्ण जानकारी हाथ लगी. वास्तव में, न जाने कितना टन अनाज बचाया होगा, इस सरल से आविष्कार ने... कंटीले तार.. समाज के हित में..
ReplyDeleteउसी तरह से मेरे को याद आता है, कि अभी तक का सबसे नुक्सान पहुचाने वाला कोई बारूद है, तो वो है, बारूदी सुरंग...एटम बम तो सदी में एक बार गिरता है, पर जानकार बताते हैं, कि बारूदी सुरंग युद्घ ख़त्म हो जाने के अर्सों बाद भी अनगिनत जाने लेती रहती है. बड़ा ही मुश्किल काम है, इन सुरंगों से निजात पाना..