A book scanner at the Internet Archive headquarters in San Francisco, California. (Photo credit: Wikipedia) |
कुछ लोग कहते हैं कि आजकल का नया जमाना है। लोग किताब नहीं पढ़ते बल्कि वो जानकारियों के लिए इन्टरनेट पे ज्यादा आश्रित हैं। अब इन दोनों जरिये से जानकारी ली जा सकती है। हाँ, ये अब रीडर के खुद के ऊपर निर्भर करता है, कि वो किस जरिये से किस तरह की जानकारी लेता है।
इन्टरनेट पे तमाम जानकारियां ऐसी हैं, जिसको लोगो ने अपने अनुभव के आधार पे लिख डाला है। अब अनुभव सही और गलत भी हो सकते हैं। अब जैसे मैं जब इस ब्लॉग को लिख रहा हूँ, तो ये एक प्रकार से इन्टरनेट पे मेरे अनुभव से जुड़ा हुआ ही है। वहीँ पर किताब एक ऐसी चीज़ है, जिसे पूरी तरह से रिसर्च के बाद लिखा जाता है। कई लोग उसका रिव्यु करते हैं और तब कहीं जा के कोई किताब मार्किट में आती है।
किताब को पब्लिश करने से लेकर स्टोर तक पहुँचाने की प्रक्रिया बहुत ही जटिल और अत्यधिक समय लेने वाली है। वहीँ एक नुक्सान और होता है - कि ऐसे वो तमाम विषय जो बहुत ही जल्द बदल जाते हैं, उनके ऊपर किताब लिख कर बुक स्टोर में पहुँचाना बहुत घाटे का सौदा साबित हो सकता है। जैसे एक उदहारण है, टूरिस्ट गाईड का। एक जनाब ने एक टूरिस्ट किताब बुक स्टोर से खरीदी और उसमे बताये अनुसार पहुँच गए एक तालाब के किनारे जो नार्थ ईस्ट चीन में नार्थ कोरिया के सीमा के समीप था। अब किताब में लिखा था की वहां कोई समस्या नहीं है। पर वो क्षेत्र निषिद्ध क्षेत्र निकला और जनाब को सैनिकों ने पकड़ के 1 महीने की कैद में डाल दिया। बाद में गाइड ने उनसे क्षमा माँगी।
वहीँ इन्टरनेट की ख़ास बात ये है, कि उसके जरिये हम जानकारी को बहुत ही जल्दी उसके रीडर तक पहुंचा सकते है। ऐसे तमाम सब्जेक्ट (उदाहरण - ट्रेवल गाइड etc.) के लिए इन्टरनेट एक अच्छा साधन साबित हो सकता है। आपने अभी पढ़ा भी होगा कि अब कुछ किताबे भी हैं जो कि सीधे सीधे डिजिटल फॉर्म में ही रिलीज़ हो रही हैं। इसका प्रमुख कारण है - सुगमता। ये बहुत ही अच्छी बात है। उन सारी परखी हुई जानकारियों को अगर कोई हमें डिजिटल माध्यम से पहुंचा रहा है, तो बहुत अच्छी बात है। धीरे धीरे इसका महत्व बढेगा ही। पर मैं उन तमाम जानकारियों को लेके चिंतित हूँ, जो कि हम आप जैसे तमाम पार्ट टाइम स्वयम्भू लेखक और एडिटर्स इन्टरनेट पे प्रतिदिन पब्लिश कर रहे हैं। नहीं-नहीं मैं क्वालिटी को लेके चिंतित नहीं हूँ। पर होता क्या है, कि सभी जानकारियां पूर्ण नहीं होती। आपस में जुडी नहीं होती। और इन्टरनेट सर्च हमको ऐसी ही तमाम अधूरी कड़ियों की एक सूची देता है और हम उसी में खो जाते हैं। सर्च सुविधा की वजह से हम इन्टरनेट पे ज्यादा आसानी से सर्च करते हैं बावजूद इसके कि हमारे पास उस सब्जेक्ट की एक बेहतरीन किताब घर में है।
मेरा मानना है कि हमको किताबों की अहमियत को नहीं भूलना चाहिए। जहाँ तक हो सके इन्टरनेट का उपयोग एक इंडेक्स की तरह करना चाहिए और फिर संपूर्ण विस्तृत जानकारी के लिए किताब (हार्ड कॉपी ये डिजिटल कॉपी) पे ही निर्भर होना चाहिए। इन्टरनेट की सुविधा का सही उपयोग करना चाहिए। ये एक साधन है पर साध्य नहीं।
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ReplyDeleteयार समझ मे नी आया
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