मैं और मेरी पंचायत. चाहे ऑफिस हो, या हो घर हम पंचायत होते हर जगह देख सकते हैं. आइये आप भी इस पंचायत में शामिल होइए. जिदगी की यही छोटी-मोटी पंचायतें ही याद रह जाती हैं - वरना इस जिंदगी में और क्या रखा है. "ये फुर्सत एक रुकी हुई ठहरी हुई चीज़ नहीं है, एक हरकत है एक जुम्बिश है - गुलजार"


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Thursday, February 4, 2010

छोटी छोटी खुशी के वो पल दो पल

Dinodia.com
Lottery (Photo credit: Internet - Dinodia.com)

अब लाटरी चाहे चार डालर की लगे या चार रूपये की - पर मन तो खुश होता है ही. मेरे को भी याद है, कि जब हम बनारस के बड़ी पियरी मोहल्ले में रहा करते थे तो एक बार पापा ने मेरे नाम से २ रूपये की लाटरी खरीदी थी, और उसमें शायद १० रुपये निकले थे - वो पापा का उस मोहल्ले के नुक्कड़ के पान वाले को (जो कि लाटरी विक्रेता भी था) अपना लकी लाटरी का टिकेट दिखा के वो १० रूपया लेना आज भी याद है. इस घटना को बीते बाईस साल हो गए.

फिर एक बार दैनिक जागरण की बाल प्रतियोगिता के लाटरी से चुने हुए विजेता के तौर पे मनीआर्डर से भेजे हुए वो २० रुपये का वही  नोट आज भी बनारस में घर में मेरी किसी डायरी में सुरक्षित रखा है. जबकि इस घटना को शायद सत्रह साल हो गया है. अब इसे सनक कहो या पागलपन - ये तो बस ऐसे ही होता है. आदमी कितना भी बड़ा हो जाए - पर दिल तो बच्चा है. वो तो बस अपने अन्दर की ना जाने कौन सी उधेड़बुन में हमेशा उलझा रहता है. उसको कभी पैसे रुपये या आराम शौक ... वगैरह.. से नहीं .. बल्कि बस कुछ भी ऐसा करने में मजा आता है.. बस जिसका कोई कारण नहीं होता है. 

तो जब आदमी खुश होता है, तो वो अपनी खुशी अपने सबसे नजदीकी इंसान से बांटना चाहता है. वो शायद कभी ये बता ना पाए कि उसमें ऐसा क्या ख़ास बात है, कि वो इस ख़ुशी को सबसे बांटने के लिए इस तरह से उत्सुक है. ये इंसान का वो भोला और मासूम रूप होता है. हमको अपने को खुशनसीब समझना चाहिए कि कम से कम हम किसी एक इंसान के इतने करीबी तो बन सके. वरना साथ रहने और ढेर सारा समय साथ गुजरने से भी कभी कभी हम दूर रहते हैं. "कभी दूर कभी पास" - और कभी कुछ लोग दूर रह के भी काफी पास पास और करीब महसूस करते हैं.  - ये कुछ उसी प्रकार से है, जैसे कि बच्चा जब छोटा होता है, तो वो कोई एकदम साधारण सी चीज़ देखता है, और अपने माँ बाप को उस चीज़ की तरफ इशारा कर के उनका ध्यान उस तरफ खींचना चाहता है.. और माँ  बाप उस बात पे खूब खुश हो के उसकी खुशी में शामिल होते हैं. बच्चा और भी खुश हो जाता है. 

6 comments:

  1. सच कहा..बिना बांटे खुशी का क्या मजा!!

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  2. सही बात है खुशी बाँटने से दोगुनी होती है और दुख बाँटने से आधा रह जाता है धन्यवाद्

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  3. Ander ka bachcha jab tak zinda hai...zindgi hai samajhiye

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  4. कहाँ हो भैया! इतने दिन हो गए नई पोस्ट लिखे हुए!
    पहले तुम्हारी चौखट तक आकर बिना बोले चले जाते थे, इसी की नाराज़गी है क्या?

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विचारों को पढने और वक्त निकाल के यहाँ कमेन्ट छोड़ने के लिए आपका शुक्रिया

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