आज अनायास ही मन थोडा अजीब हो गया. एक तो ससुरा जुखाम है कि ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है. और दूसरा ये कि मैं दुनिया में जिस से भी मिलता हूँ उसके पास टाइम की बड़ी ही समस्या होती है. बड़े ही व्यस्त लोगों के बीच में उठना - बैठना है. सौभाग्य है कि दुर्भाग्य.
कभी इस तरह के मुस्कुराते चहरे को देखता हूँ और सोचता हूँ कि उनकी हालत कैसी है, फिर भी क्या मुस्कराहट है. और वहीँ एक तरफ थोडा नमक और चीनी कम हो जाने से मन खट्टा करने वाले भी लोग हैं. भाई, अगर बहाना बना के दुखी रहना है, तो कोई कुछ नहीं कर सकता है. टाईम निकाल के थोडा खुश भी हो जाइए - हमारे मास्टर कहते थे, कि इससे कुछ घट नहीं जाएगा.
मैंने एक चीज़ गौर की है, कि अगर हम दूसरे काम की तरफ अपना ध्यान नहीं लगायेंगे, तो हमेशा हमारा ध्यान एक तरफ ही खिंचा रहता है. अब ये दूसरी तरफ ध्यान लगाने के लिए बस एक चीज़ की ज़रुरत है, और वो है, कि एक छोटा सा चिरकुट सा काम और शौक ढून्ढ लेने का. जैसे हो सकता है, कि आपने सोचा है, कि बहुत दिन हुआ मंदिर नहीं गए, कोई नई किताब नहीं पढी, या फिर किसी दोस्त को फ़ोन नहीं किया या फिर कुछ भी. बस सोचना क्या है, कर डालिए. येही सब दूसरा काम है.
दूसरी एक बात और जो कि गौर करने कि है, वो ये कि, अगर आप सिर्फ ऐसे काम करेंगे जिससे कि आपको ही सुख मिलता हो, तो बात नहीं भी बन सकती है. हमारा शौक़ और काम ऐसा होने का है, कि दूसरों को भी खुशी हो उसमें. जैसे कि अगर हम किसी की तरफ देख कर जब मुस्कुराते हैं, तो दूसरे भी स्वतः: मुस्कुराने लगते हैं , उसी तरह से कई बार हमारे अच्छे और रोचक व्यावहार से दूसरों को गजब का मजा आता है. और आप भी मस्त हो जाते हैं.
ये तो फख्र की बात है।
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जिसपर हमको है नाज़, उसका जन्मदिवस है आज।
कोमा में पडी़ बलात्कार पीडिता को चाहिए मृत्यु का अधिकार।
बहुत बढ़िया पोस्ट लिखी है।आभार।
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