मैं और मेरी पंचायत. चाहे ऑफिस हो, या हो घर हम पंचायत होते हर जगह देख सकते हैं. आइये आप भी इस पंचायत में शामिल होइए. जिदगी की यही छोटी-मोटी पंचायतें ही याद रह जाती हैं - वरना इस जिंदगी में और क्या रखा है. "ये फुर्सत एक रुकी हुई ठहरी हुई चीज़ नहीं है, एक हरकत है एक जुम्बिश है - गुलजार"


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Thursday, November 26, 2009

जय जवानी बाबा !

Modern Bishwamitra with Menkazz
Modern Bishwamitra with Menkazz (Photo credit: http://www.everestuncensored.org)

ये बाबा प्रकट नहीं हुए थे. जवानी बाबा का अवतार नहीं हुआ था. कलयुग में बड़ा ही महत्त्व है जवानी का. जवानी बाबा कहते हैं, कि हमें अपनी जवानी का घमंड नहीं होना चाहिए. कुछ लोग जवानी के जोश में पूरी दुनिया को बदल देना चाहते हैं. तो वहीँ जब एक बार जवानी चली जाती है, तो कुछ लोगों का तबका है, जो कि बड़ा ही शोक मनाता है जवानी जाने का. पर जवानी बाबा का कहना है, कि वो आपका साथ तब तक नहीं छोड़ते हैं, जब तक कि आप खुद उनको जाने के लिए नहीं कहते हैं. बोलिए जय जवानी बाबा की.


जो बुरा काम करता है, उससे जवानी बाबा रूठ जाते हैं. कुछ लडकियां अपनी जवानी में बहुत से जवान लड़कों को फांस्ती हैं - वैसे कुछ मनचले भी हवा में बह जाते हैं. जवानी बाबा का आदेश है कि अपने फायदे के लिए जवानी का प्रयोग नहीं करना चाहिए. अगर आप अपनी जवानी का सही उपयोग करते हैं, तो जवानी बाबा आपको बोनस में लम्बे समय तक जवान रहने का आशीर्वाद देते हैं.

कुछ बूढ़े लोग अपने अगल-बगल की जवानी को देख के इर्ष्या करते हैं - जवानी बाबा का सख्त आदेश है कि अगर वो ऐसा करना बंद नहीं करेंगे तो अगले जन्म में से उनकी जवानी काट ली जायेगी. कुछ लोग अपनी सारी जवानी किसी दूसरे की कहानी सुनने में बिता देते हैं, और उनको पता ही नहीं चलता कि समय कब निकल गया. जवानी बाबा का कहना है, कि ये जवानी का दुरूपयोग है.

सिनेमा में जवानी शब्द को बदनाम किया जा रहा है. इसका जवानी बाबा समर्थक पुरजोर विरोध करते हैं. जवानी को बड़े ही छिछोरे तरीके से प्रस्तुत किया जाता है. इससे जवानी में लोग बहक जाते हैं. एक गाने में तो हद ही हो गई है. गाने के बोल कुछ ऐसे हैं - 'निगोड़ी कैसी जवानी है, ये बात सुने ना मेरी .... बड़ी हरामी है.. ' जवानी बाबा अपनी कसम दिलाते हुए उनके नाम का दुरूपयोग किये जाने को सामजिक पतन की संज्ञा देते हैं.

आइये हम सब मिलकर सच्चे मन से कसम खाएं कि हम जीवनपर्यत्न जवानी बाबा के बताये रास्ते पे चलेंगे. जय जवानी बाबा की.

Monday, November 16, 2009

हमारी समझ और हमारी सोचने की ताक़त और क्षमता हमारी धारणा बनाती है

Robert Fludd, Utriusque cosmi maioris scilicet...Image via Wikipedia

मैं यहाँ कुछ बातें लिख रहा हूँ, कृपया इसे शिक्षा न समझें - और ये बस यूं ही कही जा रही है.. इसमें से जो लगे की आपके काम का है, ले लो.. बाकी समझो कि लिखा ही नहीं गया है. 

टाइम निकाल के थोडा इन्टरनेट पे कुछ अच्छे अंगरेजी और हिन्दी के अर्टीकील पढ़ा करो.. इससे दिमाग का पूरा विकास होता है. जैसे हमें खाना की ज़रुरत होती है, उसी तरह से अच्छी - अच्छी बातों की ज़रुरत होती है पढ़ते लिखते रहने की. ये दिमाग का आहार होता है. अगर उसे आहार न दिया जाए तो वो सही दिशा में सोचना बंद कर देता है. इसीलिए हमेशा कुछ न कुछ पढने की आदत डालो.

नौकरी - या कोई भी छोटा मोटा काम करना हो, तो उसके लिए नए जगह पर अपने को एडजस्ट करना बहुत ज़रूरी होता है. वहां की चीज़ों को अपने देश या शहर की चीज़ों से compare नहीं करना चाहिए. वहां की अच्छे चीज़ों को जल्द ही  अपनाना चाहिए. व्यर्थ की बहस से बचना चाहिए. तभी सम्पूर्ण विकास होगा.

सभी कुछ जो तुम वहां महसूस कर रही हो, उसको सकारात्मक लहजे में  व्यक्त करना सीखो. अपनी बातों को, बहुत ही clarity के साथ कहना बहुत ज़रूरी है. क्योंकि जब हम बाहर होते हैं, नए लोगों के बीच में होते हैं, तो कोई ज़रूरी नहीं कि वो हमारे प्यार और गुस्से के इज़हार को उसी तरह से समझें जैसे कि घर वाले समझते हैं. तो ये बहुत ज़रूरी है, कि हम कोई भी बात स्पष्ट रूप से कहें. ये बहुत ही ज़रूरी है. और अच्छे संबंधों को बनाने में बहुत ही मदद करते हैं.

दूसरों से जब भी बात करो, तो ये ध्यान दो कि उनके द्बारा कही गई बातों में त्रुटियों को नजरअंदाज करते हुए, तुम उनमें से कुछ भी अच्छा निकाल कर उनकी प्रशंशा करो. मैं झूठी प्रशंशा करने की हिमाकत नहीं कर रहा हूँ. अपितु, हर किसी की बातों में चाहे वो उम्र और अनुभव में छोटा हो या बड़ा, अच्छा खोजने की आदत डालने की बात कर रहा हूँ. ये अच्छे संबंधों को लम्बे समय तक बनाये रखने में काफी मदद करती है. कोई ज़रूरी नहीं कि हर दूसरा आदमी हमारी बातों से सहमत हो ही जाए. पर ऐसे मौकों पे हमें जिद से और बहस से बचना चाहिए. भले ही आपके अनुसार आपकी बात सहीं हो - और सामने वाला गलत.

जब हम कभी दूसरों से व्यावहार कर रहे होते हैं, तो हम आशा करते हैं, कि सामने वाला भी हमें उसी गर्माहट के साथ treat करे जैसा हमने किया. पर कई बार ऐसा हो जाता है, कि वक़्त और परिस्थितियों की वजह से, वो आपके साथ वैसा व्यावहार नहीं कर पाता है. अतः थोडा मौका और देना चाहिए. और तुंरत ही सामने वाले के बारे में कोई धारणा नहीं बना लेनी चाहिए. कुछ गलतियों को माफ़ कर देना चाहिए, इससे हमारा संतुलन सही रहता है. और हम तमाम ज़रूरी चीज़ों पे एकाग्र कर पाते हैं. दूसरे की मजबूरियों और विषम परिस्थितियों को बिना उनके द्बारा जिक्र किये बगैर समझ कर उनके प्रति अपने वाद - व्यावहार में परिवर्तन लाने से बहुत अच्छा होता है.

कभी अगर तुमसे कोई गलती हो जाए, तो उसे छिपाने के बजाय उसे स्वीकार करना चाहिए. इससे बड़ी ही शांती मिलती है, और संबंधों में कटुता आने से बचती है. अगर कोई हमसे ओहदे में, संबंधों में, पैसे रुपये में, या किसी भी और तरीके से छोटा या बड़ा हो, उसके सामने अपनी गलती के लिए माफी मांग लेने से आपके इज्ज़त कम नहीं होती, बल्की आप और भी मजबूत और विश्वसनीय हो जाते हैं. असल में जब हम अपनी गलती स्वीकार करते हैं, तो उस वक़्त हम अपने आप को उस की गई गलती के भार से मुक्त कर रहे होते हैं.

परिवर्तन ही संसार का नियम है. आज जो बातें हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, कल उनका महत्व नगण्य हो जाएगा. और जिन बातों को आज हम एकदम ही ध्यान नहीं देते, कल वो बहुत ज़रूरी हो जायेंगी. इसीलिए, ये बहुत ज़रूरी है, कि हर समय, हर छोटी - बड़ी बातों पे बराबर ध्यान दिया जाए. जीवन में संतुलन बनाने में इससे बड़ी ही मदद मिलती हैं. कुछ चीज़ें जो आज हमें फालतू की लगती हैं, या कुछ लोग जो हमें बिलकुल पसंद नहीं, कल वही महत्वपूर्ण हो सकते हैं. क्योंकि हमारी समझ हमेशा एक जैसी नहीं रहती है. हमारी समझ और हमारी सोचने की ताक़त और क्षमता हमारी धारणा बनाती है.
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